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यह नृत्य भील जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य है को सावन-भादों माह में किया जाता है इस में मांदल ओर थालि के प्रयोग के कारण इसे #राई नृत्य के नाम से जाना जाता है । इसे केवल पुरुषों के दुवारा किया जाता है।
वादन संवाद, प्रस्तुतिकरण और लोग-सस्कृति के प्रतीकों में मेवाड़ की गवरी निराली है। #गवरी का उदभव शिव-भस्मासुर की कथा से माना जाता है। इसका आयोजन रक्षाबंधन के दुसरे दिन से शुरू होता है।
गवरी सवा महीने तक खेली जाती है। इसमें भील संस्कृति की प्रमुखता रहती है। यह पर्व आदिवासी जाती पर पौराणिक तथा सामाजिक प्रभाव की अभिव्यक्ति है। गवरी में मात्र पुरुष पात्र होते है। इसके खेलों में गणपति #काना_गुजरी, जोगी,#लाखा_बजारा इत्यादि के खेल होते है। शिव को ''पुरिया'' कहा जाता है
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