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तारा चंडी मंदिर अपने धार्मिक महत्व के कारण बेहद लोकप्रिय है।मान्यता है कि इस स्थल पर माता सती की दाहिनी आंख गिरी थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर जब अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे तब संपूर्ण सृष्टि भयाकूल हो गयी थीं तभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया था। रोहतास किले का दौरा करने के बाद पर्यटक बड़ी संख्या में इस मंदिर में आते हैं। मंदिर एक छोटी गुफा के अंदर चंदन शाहिद पर्वत के पूर्वी किनारे पर स्थित है। यह माता तारा को समर्पित है, जहां उनकी प्रतिमा भक्तों को दर्शन देती है। छोटी गुफा के शीर्ष पर एक नया मंदिर बनाया गया है जहाँ देवी की मूर्ति स्थित है। प्रतिमा के पूर्व की ओर, मंदिर के अंदर एक चट्टान पर महानायक प्रताप धवल का शिलालेख है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह 1173 ई। में लिखा गया था। यहां तक कि एक छोटा तालाब भी है जो मंदिर के दक्षिण की ओर स्थित है।
दिव्य मंदिर की महिमा इतिहास में समय-समय पर देश के विभिन्न कोनों में फैली है और आज यह पूरे क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक माना जाता है।कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था। यहीं पर परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी। इस शक्तिपीठ में मां ताराचंडी बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं। इस धाम पर वर्ष में तीन बार मेला लगता है, जहां हजारों श्रद्धालु मां का दर्शन पूजन कर मन्नते मांगते हैं। यहां मनोकामना पूर्ण होने पर अखंड दीप जलाया जाता है।नवरात्र मे मां के आठवें रूप की पूजा होती है। मां ताराचंडी धाम शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में अखंड दीप जलाने की परम्परा बन गयी है। पहले दो-चार अखंड दीप जलते थे लेकिन अब कुछ सालों से इसकी संख्या हजारों में पहुंच गई है।
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