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18 भुजाओं वाली महोबा की देवी प्रतिमा लगभग 12 फीट ऊंची है।
यहां महाबली आल्हा रात को पूजन करने आते हैं। कई बार ताजे फूल देवी के चरणों में दीखते हैं तथा अकस्मात घंटे भी बजने लगते हैं।
इस मंदिर के कपाट रात को बंद होते हैं और मंदिर में कोई नहीं रहता। पुजारी को भी रात में रहने की अनुमति नहीं है।
बताया जाता है कि मैहर की देवी ने आल्हा को अमरत्व का वरदान दिया था।
मूल रूप से आल्हा बुंदेलखंड स्थित महोबा के ही रहने वाले थे।
हजारों साल पूर्व इस मंदिर का निर्माण हुआ था।
12 वीं शताब्दी में आल्हा और उदल तथा पृथ्वीराज चौहान के बीच कई बार युद्ध हुआ।
पृथ्वीराज चौहान को काफी युद्ध में नुकसान झेलना पड़ा था।
तीसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने उदल को मार डाला, तभी से भाई के वियोग में आल्हा घर बार छोड़कर चले गए तब से उनका कोई अता पता नहीं लगा।
लोग मानते हैं कि आल्हा आज भी अमर हैं।
मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार और झारखंड में भी आल्हा गाने और सुनने वालों की संख्या बहुलता में है।
इस मंदिर में 18 भुजाओं वाली देवी प्रतिमा के अलावा नवदुर्गा की प्रतिमाएं अलग-अलग विग्रह के रूप में हैं।
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