सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार = राष्ट्र राज धर्म= जनसेवक/दासधर्म × [(ब्राह्म+क्षात्र+शौद्र+वैश्व धर्म) + (ब्रह्मचर्य+गृहस्थ+वानप्रस्थ+यति आश्रम)] । ब्राह्म धर्म= ब्रह्म वर्ण कर्म (अध्यापन कर्म) । संस्कृत श्लोक विधिनियम - ॐ यथा यथा हि पुरूष: शास्त्रं समधिगच्छति । तथा तथा विजानाति विज्ञानं चास्य रोचते। शास्त्रस्य पारं गत्वा तु भूयो भूयस्तदभ्यसेत् । तच्छास्त्रं शबलं कुर्यान्न चाधीत्य त्यजेत्पुन: ।। पौराणिक वैदिक ऋषि स्मृति धर्मशास्त्र।। भावार्थ- मनुष्य जैसे जैसे विशेष रूप से शास्त्रो का अच्छी प्रकार अध्ययन अभ्यास करता है वैसे वैसे वह विषय ज्ञान जानकर विज्ञान सम्मत विश्लेषण करने लगता है। अपने शास्त्र का पारगामी होकर बार-बार अभ्यास करना चाहिए और ज्ञानवर्धन कर फिर से ज्ञान प्राप्त करना नहीं छोड़ना चाहिए। पांचजन्य चार वर्णिय चार आश्रमिय चार कर्मिय समाज प्रबंधन। विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम्। जय अखण्ड भारत । जय वसुधैव कुटुम्बकम ।। ॐ ।।
चार कर्म = शिक्षा + सुरक्षा + उद्योग + व्यापार। चार वर्ण = ब्रह्म + क्षत्रम + शूद्रम + वैशम। चार आश्रम = ब्रह्मचर्य + गृहस्थ + वानप्रस्थ + यति आश्रम। चार मानव गुण = सत + रज + तप + तम। चार मुख्य शरीर अंग = मुख + बांह + पेट + चरण। चार युग = सतयुग + द्वापर + त्रेतायुग + कलयुग। चार वेद = ऋग्वेद + यजुर्वेद + सामवेद + अथर्ववेद।
@budhprakash9200Ай бұрын
सनातन धर्म -- वैदिक संस्कृत के शब्द अर्थ l ब्रह्म वर्ण - शिक्षा विभाग में शिक्षक / गुरू /पुजारी/आचार्य/अनुदेशक/वैद्य/पुरोहित आदि l मुख समान। क्षत्रम वर्ण - शासन वर्ग में राजनेता /रक्षक / सैनिक / प्रशासक /न्याय करता /रक्षक /चौकीदार आदि l बांह समान। शूद्रम वर्ण - तपस्वी उद्योग विभाग में उत्पादक/ निर्माता/ शिल्पकार/ पेटमध्य समान। वैश्य वर्ण - वित्त लेखाकार /व्यापारी / दुकानदार /वाणिज्यक /आढ़ती /ट्रांसपोर्टर आदि । चरण समान। व्रात्य - बिना यगोपवित जन अशिक्षित / अनपढ व्यक्ति, कोई भी कार्य करने वाला l दास - नौकर /सेवक /वेतन भोगी जन आदि सात प्रकार के दास होते हैं l बुद्ध - मन, वचन और शरीर पर नियंत्रण करने वाला l सिद्ध - मन, वचन, शरीर, काम और क्रोध पर नियंत्रण करने वाला l अशूद्र - व्यभिचारी, अनुत्पादक, चाटुकार और जुआरी l क्षुद्र - पशु तुल्य छोटी सोच रखने वाला l चार वर्ण l पांचज़न l जय जय सनातन दक्ष धर्म l जय अखण्ड भारत । जय वसुधैव कुटुम्बकम। ॐ l सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म - शूद्रन सबसे ज्यादा पवित्र। यह भी जानकार ज्ञान बढाएं। शूद्रन जल छूने मात्र से पवित्र हो जाता है। विप्र (शिक्षक) ह्वदय तक जल जाने पर शुद्ध होता है, कंठ में जल पंहुचने पर क्षत्रिय ( सुरक्षक ) पवित्र होता है। मुख में में जल पहुंचने पर वैश्य ( वितरक) पवित्र होता है लेकिन शूद्रन ( उत्पादक) द्वारा जल को छुने से ही पवित्र हो जाता है। अतः शूद्रन ही सबसे ज्यादा पवित्र तपस्वी उत्पादक निर्माता होता है। चार वर्ण = कर्म चार = शिक्षण ब्रह्म + सुरक्षण क्षत्रम + उत्पादण शूद्रम + वितरण वैशम। संस्कृति श्लोक- ॐ ह्रद्गाभि: पूयते विप्र कण्ठगाभितू भूमिप: । वैश्योऽद्भि: प्राशिताभिस्तु शूद्रण: स्पृष्टाभिरन्ततः। । वैदिक स्मृति शास्त्र। । वेद अनुसार शूद्रन तपस्वी है। तपसे शूद्रम। यजुर्वेद। ॐ ।
@budhprakash9200Ай бұрын
पंचामृत और पंचगव्य कब प्रयोग करना चाहिए? सनातन धर्म संस्कार विधि-विधान नियम अनुसार- पंचामृत पूजा-पाठ व्रत उपवास अनुष्ठान पर्व में प्रसाद के रूप में प्रयोग करना चाहिए और पंचगव्य चोरकर्म करने वाले को अंहिसक दण्ड देकर सुधार करने के लिए प्रयोग करना चाहिए। पौराणिक वैदिक सनातन धर्म संस्कार विधि-विधान नियम अनुसार।
@budhprakash9200Ай бұрын
ब्रह्मण का मतलब अध्यापक गुरूजन पुरोहित चिकित्सक विप्रजन होता है। मुख से ज्ञान शिक्षण अध्यापन होता है इसलिए मुख समान ब्रह्मण माना गया है। ब्राह्म धर्म में शिक्षण प्रशिक्षण प्रदान करना आता है। इसलिए ब्राह्म धर्म कहा करो।