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मैं लखनऊ हूँ जनाब…‘पहले आप’ वाली हमारी संस्कृति है, मिजाज में नजाकत और अंदाज में नफासत….यह महज एक शहर नहीं…मिजाज है हुज़ूर
अनिल अनूप के साथ ठाकुर बख्श सिंह की एक यात्रा वृत्तांत
“मन तड़पत हरि दर्शन को आज...’, मौसी के कानों में जब भी इस गाने के बोल पड़ते थे, उनका स्थायी सवाल होता, ‘को गा रहा है?’ जवाब में मोहम्मद रफी का नाम बताते ही कह उठतीं, ‘ई गावै-बजावै वाले तर जइहैं’।
इस अमर गीत को संगीत में पिरोने वाले नौशाद लखनऊ में ही जन्मे, पले थे। लाटूश रोड पर आज भी वह दुकान आबाद है, जहां से निकल कर नौशाद ने पूरी दुनिया में अपने फन का डंका बजाया।
यहां की हवाओं में नेह भरा आमंत्रण है। फिजा में संगीत की सुमधुर स्वर लहरियां सुनाई देती हैं। यह दुनिया के उन चुनिंदा शहरों में से एक है, जो गोमती नदी के दोनों किनारों पर आबाद है। लखनऊ की शाम तो विश्वप्रसिद्ध है।