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माँ शारदा शरस्वती जगदम्बा के सन्मुख तांत्रिक व तामसी प्रक्रिया की आरती की जाती है माँ शारदा देवी का मन्दिर सिद्ध पीठ है किंतु माँ कुन्देन्दु है जिनका वर्ण स्वेत है माँ स्वेत धामा है जिनकी सात्विक व शांत आरती वेदों के मंत्रोच्चार सहित होनी चाहिए किन्तु पूजा विधि से अनभिज्ञ काबिज परिवार केवल लूट खसोट और पखण्ड में लिप्त रह कर माँ जगदम्बा के तेज को धूमिल करते है साथ ही सनातन धर्म सहित विस्व भर के प्रसिद्ध मन्दिरो में आपने देखा होगा कि पुजारी का सिंघासन देव या देवी प्रतिमा के समक्ष नही लगता पुजारी का आसन देव प्रतिमा से ऊंचा व उनके समतुल्य नही रखा जाता लेकिन अपने आप को व परिवार के समस्त अवैधानिक लोगो को प्रभुत्व साबित करने की मन्सा से व दान में लूट खसोट करने की नीयत से सिद्ध और महात्मा प्रदर्शित करने माँ की प्रतिमा के सन्मुख सिंघासन लगा कर बैठते है, साथ ही दर्शको आपने सम्पूर्ण विस्व के मंदिरो में देखा होगा कि देव व देवी प्रतिमा की आरती खड़े होकर सुद्ध अवस्था मे अंचला व जनेव धारण कर शास्त्रोक्त आरती की जाती है किन्तु माँ शारदा जी की आरती में जिस मुद्रा में बैठ कर और जिन वस्त्रो को धारण कर ये परिवार आरती करता है क्या वास्तव में मूरत जाग्रत होगी और अस्थावन भक्तो को उनका आशीष प्राप्त होगा नही होगा, साथ ही इनके वस्त्र कुर्ता लुंगी और जैकेट का बड़ा रहस्य है कि किस प्रकार से ये वहाँ लूट खसोट करते है यह तथ्य भी आपको वीडियो में दिखाया जा रहा है, ।
दर्शको मैं हिन्दू होने व माँ शारदा जी के प्रति अपनी आस्था के भाव मे इन बदयान्तियो का विरोध कर रहा हु मेरा उद्देश्य माँ शारदा की कीर्ति उनके सत्य और गरिमा को अक्षेपित करन बिल्कुल नही है, अपितु मन्दिर में हो रहे कदाचरण को रोकना मेरा उद्देस्यमात्र है।
जै माँ शारदा।