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वीडियो जानकारी: 17 अगस्त 2019, हार्दिक उल्लास शिविर, कोलकाता
प्रसंग:
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥
भावार्थ: मन और इन्द्रियों सहित शरीर को वश में रखने वाला, आशारहित और संग्रहरहित योगी अकेला ही एकांत स्थान में स्थित होकर आत्मा को निरंतर परमात्मा में लगाए ॥
~ श्रीमद्भग्वदगीता (अध्याय ६, श्लोक १०)
~ षड रिपु माने क्या?
~ काम, क्रोध, लोभ, मोह से ऊपर कैसे उठें?
~ संयमित जीवन कैसे जीयें?
~ कृष्ण को गीता दोबारा क्यों बतानी पड़ी?
~ क्या अर्जुन को गीता समझ में आई थी?
संगीत: मिलिंद दाते
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