अपनी राहें जिंदगी को कुछ यूं संभाला है। कुछ को दिल में रखा कुछ को दिल से निकाला है। देर हो चुकी है अब मुझे जाने दे किसी की शिकायतों का अंबार लगने वाला है। जगनुओं से जब से की मैने दोस्ती अंधेरों में भी मेरे घर में उजाला है। फैसला तो आया था मेरे ही हक में मगर ज़ालिम ने सिक्का दोवरा उछाला है।