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क्या “न तस्य प्रतिमा अस्ति” (शुक्ल यजुर्वेद माध्यन्दिन संहिता, ३२.३) मन्त्र में ईश्वर के आकार और मूर्ति का निषेध है, जैसा दयानन्द सरवती सदृश आर्यसमाजी और ज़ाकिर नायक जैसे अन्य मतावलम्बी कहते हैं? अथवा क्या यहाँ प्रतिमा का अर्थ मूर्ति नहीं है? आइए जानें सन्दर्भ और अनेक भाष्यों सहित इस मन्त्र के अर्थ को।
न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महद्यशः।
हिरण्यगर्भ इत्येष मा मा हिꣳसीदित्येषा यस्मान्न जात इत्येषः॥ ३२.३॥
00:00 प्रस्तावना
00:56 सन्दर्भ और अर्थ
02:51 प्रतिमा शब्द के अर्थ
04:21 उवट और महीधर का भाष्य
06:20 पण्डित सातवळेकर का भाष्य
08:30 आर्य समाज का भाष्य
11:56 करपात्र स्वामी का भाष्य
13:29 यजुर्वेद में प्रतिमा शब्द
17:47 अन्यत्र वेदों में प्रतिमा और प्रतिमान
20:41 उपसंहार
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