हमारे इतना सामर्थ्यवान ईश्वर निर्गुण निराकार होते हुए भी भक्तों के अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के कारण मूर्ति में भी बिराजमान हो जातें हैं।
@unadpotrarahim2006 Жыл бұрын
🤣🤣
@kafir-e-aazam8499 Жыл бұрын
@@unadpotrarahim2006 अरे दीनदार (अल्लाह के गुलाम) तू भी 🤣🤣
@Ram47988 Жыл бұрын
@Dharma Jigyasa निर्गुण और सगुण को साकार निराकार नही कहते है। अर्थ का अनर्थ नही करे
@Ram47988 Жыл бұрын
@Dharma Jigyasa aapke nirgun ke sath sagun kyo nhi likha.
@harshtiwari9797 Жыл бұрын
पुरुषसूक्त पहला श्लोक । 👏🏻
@kusumsharma2565 Жыл бұрын
प्रणाम नित्यानंद ji ।ऐसी चर्चायें तरुण समाज सुने तो, समाज की अन्य कई समस्याएं भी हाल हो सकती हैं। आप का अभिनंदन व आभार ।
@SahilKhan-g1r7qАй бұрын
'ना तस्य प्रतिमा अस्ति' का शाब्दिक अर्थ है, 'उसकी कोई प्रतिमा नहीं है'. यह श्लोक ईश्वर के निराकार स्वरूप को समझाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह श्लोक यजुर्वेद 32.3 में है. लेकिन दयानंद सरस्वती ने कहा था कि इस श्लोक में प्रतिमा का अर्थ है, 'सदृष्य, समान, जैसा'. उनका कहना था कि ईश्वर जैसा कोई नहीं होता, इसलिए उसकी आकृति कैसे बनाई जा सकती है. दयानंद जी भी तो मूर्ति नहीं बनने के बात में हैं
@nirajbarot9099 Жыл бұрын
What a great comprehensive video. I was in university when those videos of zakir Nayak came out. As a young hindu I was lost, and had no answers to gave to my Muslim friends when it came to these scholarly topics. Continue your great work.
@deepakkumr Жыл бұрын
- 1: अर्जुन ने पूछा - जो आपकीसेवा में सदैव तत्पर रहते हैं, या जो अव्यक्त निर्विशेष ब्रह्म की पूजाकरते हैं, इन दोनों में से किसे अधिक पूर्ण (सिद्ध) माना जाय? 12 - 2: श्रीभगवान् ने कहा - जो लोगअपने मन को मेरे साकार रूप में एकाग्र करते हैं, और अत्यन्त श्रद्धापूर्वकमेरी पूजा करने में सदैव लगे रहते हैं, वे मेरे द्वारा परम सिद्ध मानेजाते हैं | 12 - 5: जिनलोगों के मन परमेश्र्वर के अव्यक्त, निराकार स्वरूप के प्रति आसक्त हैं, उनके लिए प्रगति कर पाना अत्यन्त कष्टप्रद है | देहधारियों के लिए उसक्षेत्र में प्रगति कर पाना सदैव दुष्कर होता है |
@apragmatist Жыл бұрын
BHAi, yeah nityanand ko khud nahi pata. There's no relation of upama with partima. If you wanna refute zakir naik you should read satyarth parkash
@deepakkumr Жыл бұрын
@@apragmatist Satyarth prakash tells mother not to breast feed own child. Life on Sun is possible.
@manansharma9872 Жыл бұрын
@@apragmatistZakir Naik took all his arguments from Oreo samajis themselves, Actual traditional acharyas like Karpatri Maharaj had the exact same interpretation
@manansharma9872 Жыл бұрын
@@Beast_ik2😂😂😂
@DvloperGame Жыл бұрын
🕉️ आप को एक सनातनी भाई की ओर से नमन भ्राता श्री🙏🏻
@pramodagrawal7112 Жыл бұрын
आपका प्रयास सराहनीय है, स्तुत्य है। साधु साधु,अतीव उत्तम। उल्लू को सूर्य के दर्शन नहीं हो सकते।
@VedicLiterature12 Жыл бұрын
अतिसुन्दर, धन्यवाद गुरूजी मेरे सनातनी मित्रो किर्प्या करके आप सब इस को याद कर ले अथवा अपने मित्रो और गली मोहले मैं शेयर करे।
@kamalshadija1048 Жыл бұрын
Excellent, Thank you so much. Jai Shri Krishna
@SahilKhan-g1r7qАй бұрын
'ना तस्य प्रतिमा अस्ति' का शाब्दिक अर्थ है, 'उसकी कोई प्रतिमा नहीं है'. यह श्लोक ईश्वर के निराकार स्वरूप को समझाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह श्लोक यजुर्वेद 32.3 में है. लेकिन दयानंद सरस्वती ने कहा था कि इस श्लोक में प्रतिमा का अर्थ है, 'सदृष्य, समान, जैसा'. उनका कहना था कि ईश्वर जैसा कोई नहीं होता, इसलिए उसकी आकृति कैसे बनाई जा सकती है. दयानंद जी भी तो मूर्ति नहीं बनने के बात में हैं
@rajibsarkar5043 Жыл бұрын
स पर्य॑गाच्छु॒क्रम॑का॒यम॑व्र॒णम॑स्नावि॒रꣳ शु॒द्धमपा॑पविद्धम्।क॒विर्म॑नी॒षी प॑रि॒भूः स्व॑य॒म्भूर्या॑थातथ्य॒तोऽर्था॒न् व्यदधाच्छाश्व॒तीभ्यः॒ समा॑भ्यः॥८॥ अकायम अर्थ क्या है? Yajurved 40/8
@igorgorbechov7696 Жыл бұрын
वो कैसा ईश्वर है जो मूर्ति में आ नहीं सकती।
@butterfly.10855 Жыл бұрын
Aree hai na muhhamad NE kiya tha na blatkar voh ahishya ka
@amrishtripathi3831 Жыл бұрын
@Ankit JAT tumhare liye murti ki tulna balatkar ke samaksh hai
@chessmuch2976 Жыл бұрын
@Ankit JAT 😂😂sahi bola
@chessmuch2976 Жыл бұрын
@Ankit JAT mai Arya Samaji hu😎
@HinduPhoenix Жыл бұрын
@Ankit JAT ये मोरल स्फेयर की बात है, कर सकने की बात नहीं है कर तो कुछ भी सकता है। क्या ईश्वर को रोक लोगे कुछ करने से जिसने हर शरीर बनाया है वो तो कुछ भी कर सकता है। मनुष्य समझा है क्या ईश्वर को
@utkarshsharmaji Жыл бұрын
Much appreciation for choosing this topic. It can be used as a good forwardable for all such people who misuse this mantra.
@apragmatist Жыл бұрын
There's not a single evidance that partima =upama He is misusing it
@studies3327 Жыл бұрын
कुछ नया लाइए नित्यानन्द जी, यह सब तो महर्षि दयानन्द ने ही निपटा दिया😌🙏
@HinduPhoenix Жыл бұрын
दयालंड की MKC
@apragmatist Жыл бұрын
Yes
@rajarai61653 ай бұрын
अबे बेवकूफ आदमी उसके निपटा देने से निपट गया है क्या जो जो तू इतना उछल रहा है राम मंदिर का उद्घाटन हुआ देश के प्राइम मिनिस्टर से लेकर सभी नेता गए सारे संत गए और उत्सव मनाया पूरे देश ने तुम लोगों की बात मानता कौन है आज भी देश के सभी मंदिरों में यहां तक की मोहल्ले के मंदिरों में भी खूब भीड़ होती है और उत्सव में तो इतनी भीड़ होती है कि पूछो मत सरकार को व्यवस्था करने में परेशानी होती है, तुम लोगों के मनहूस आर्य समाज मंदिर में कोन जाता है, रामदेव बाबा आर्य समाजी है वह भी गए थे, कुएं से बाहर निकल बे मेंढक
आपने अंत में ‘अप्रतिम’ शब्द का प्रयोग दर्शाया - मुझे आपके इस चलचित्र का शीर्षक देखने के बाद ही यह शब्द का स्मरण हुआ। बोहोत ही सुंदर ढंग से आपने प्रमाणादि प्रस्तुत किया, इसलिए अनेक धन्यवाद।
@ShyamKishorMishra Жыл бұрын
गणपत्यथर्वशीर्ष में उल्लिखित-“सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा सिद्धमन्त्रो भवति”-इस वाक्य में प्रतिमा (= मूर्ति) की सन्निधि में जप करने के विषय में आपका क्या विचार है? मेरे मत से अनादिकाल से ही प्रतिमापूजन सनातनधर्म में मान्य है और निरन्तर प्रचलित है।
@हिंदुस्तानीशेर-ख4ठ Жыл бұрын
न तस्य प्रतिमा= अप्रतिम =विलक्षण ,विशेष,खास। उदाहरण- आप बहुत अप्रतिम लेखक है
@prabhatrajput2827 Жыл бұрын
आप vaidik physics चैनल पर जाइये और आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी द्वारा ब्राह्मण ग्रंथों के विज्ञान को सुनिये । उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया है ब्रह्मण ग्रन्थ पर
@Ramarya14 Жыл бұрын
अद्भुत ❤❤
@ila140 Жыл бұрын
सही सटीक अर्थ बताया बाकी कुछ श्रेष्ठ समाज वाले तो अपने अनुकुल अर्थ करके मिलावटी अर्थ करते ही है
@chandrashekharholla787 Жыл бұрын
Fine. A good attempt. It’s explained beautifully. It is useful for those who are quite bent upon diversifying the Truth according to their beliefs. Faith is different lucidly flows over coming such natural words. Words are of limited use when Truth and Faith are at work. Thanks for taking strains to dispel the doubts of Doubters.
@कानाह Жыл бұрын
ईश्वर सर्वशक्तिमान् होतें है तो एक जीवन रूप क्यों नहीं धारण कर सकता अपने योगमाया के सहारे❓ जय श्री राम हर हर महादेव🙏🙏🙏🙏🙏
@chessmuch2976 Жыл бұрын
Kyuki vo sarvashaktiman hai vo apna har kaam nirakar rehte hue hi kar sakta hai. Agar use kuch karne ke liye sakar hona pade to kahe ka sarvashaktiman
@कानाह Жыл бұрын
@@chessmuch2976 jarurat parne par vi sakr rup nehi le sakta? Jese ravan jesa Ohonkari parantu sidhya purush Otyachari hojaye tab vi nehi ❓❓bakwaas mat karo vi
@कानाह Жыл бұрын
@@chessmuch2976 abe Tu to bohut kamina hai👎👎👎👎 kiyun ki Tu bachche ki dimag kharab kar ne bala channel khola hai sirf apne faida k liye 😂😂😂😂
@HinduPhoenix Жыл бұрын
जीवन रूप? स्थूल रूप शरीर की बात कर रहे हो। तो करते तो हैं अवतार लेते हैं भगवान स्वयं ईश्वर रूप भी है उनका सगुण साकार रूप जो कि शिव जी हैं।
@HinduPhoenix Жыл бұрын
@@chessmuch2976 नहीं उससे ज्यादा अत्याचारी आज नहीं हैं, रावण के पास जो शक्तियां थी आज वो किसी के पास नहीं हैं। और भगवान श्री राम केवल रावण को मारने नहीं बल्कि मनुष्यों को अपने जीवन से शिक्षा देने आए थे।
@simpleboy4209 Жыл бұрын
Me agale video ka wait karubga sir
@jaswant534 Жыл бұрын
Prtima ka bhut hi vidwtapuran arth btaya hai acharay ji ne.
@tanumishra407 Жыл бұрын
Great orator and sweet voice
@shyamkantverma1262 Жыл бұрын
Nityananda ji 🙏 for your Scholarly Analysis , so beautifully explained the meaning of word " Pratima " . This is an ever burning topic . Your Narrative will help and relieve many of us . Your videos are Always a great pleasure and learning . Please keep enlightening us.
@pankajpandit9731 Жыл бұрын
बहुत ही अच्छा गुरु जी बहुत अच्छे से समझाया आपने ❤❤
@studies3327 Жыл бұрын
मूर्तिपूजा के पक्ष में दिए जाने वाले एक तर्क का खण्डन: प्रश्न: वेद में मूर्तिपूजा का विधान नहीं है, माना, परन्तु खण्डन भी तो नहीं है। इससे आपका खण्डन करना वेदविरुद्ध क्यों न हुआ? उत्तर: वेद परमात्मा का दिया उपदेश है। जैसे एक पिता अपने पुत्र को उपदेश करे कि पूर्व दिशा में जा, अब पुत्र का यह पूछना कि "उत्तर में न जाऊॅं"?, "पश्चिम में न जाऊॅं"? इत्यादि व्यर्थ है यतः जब किसी एक दिशा में जाने को कहा गया तो अन्य तीनों का स्वतः ही निषेध हो गया। रही बात प्रत्यक्ष निषेध वा खण्डन की तो वेद घोषणापूर्वक कहता है: *न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः। हिरण्यगर्भऽइत्येष मा मा हिंसीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः।।* *(यजु० अ० ३२- मं० ३)* शब्दार्थ:-(यस्य) जिसका (नाम) प्रसिद्ध (महत् यशः) बड़ा यश है (तस्य) उस परमात्मा की (प्रतिमा) मूर्ति (न अस्ति) नहीं है (एषः) वह (हिरण्यगर्भः इति) सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों को अपने भीतर धारण करने से हिरण्यगर्भ है।(यस्मात् न जातः इति एषः) जिससे बढ़कर कोई उत्पन्न नहीं हुआ, ऐसा जो प्रसिद्ध है। *प्रश्न* : इस मन्त्र में प्रतिमा का अर्थ उपमान या मान, सदृश है। परमात्मा के समान संसार में कोई नहीं है। इसलिये आर्य समाजियों का इस मन्त्र में मूर्तिपूजा का निषेध बतलाना ठीक नहीं | *उत्तर* : प्रतिमा शब्द का अर्थ मूर्ति होता है इस बात को पौराणिक मानते हैं " *दैवतप्रतिमा हसन्ति* " इस प्रमाण में सब पौराणिकों ने प्रतिमा शब्द का अर्थ मूर्ति किया है तो आपके पास इस बात का क्या प्रमाण है, कि प्रतिमा का अर्थ मूर्ति न किया जावे यदि आप कहें कि महीधर आदि ने इसका ऐसा अर्थ नहीं किया। महीधर आदि का भाष्य हमारे लिये प्रमाण नहीं। दूसरी बात यह है कि यदि आपके करने के अनुसार प्रतिमा का अर्थ उपमान, सदृश लिया जावे तो भी परमात्मा की मूर्ति सिद्ध नहीं होती । जितनी आपने मन्दिरों में मूर्तियाँ रक्खी हैं उनके सदृश वा उनसे अच्छी अनेक मूर्तियाँ मिल सकती हैं। उनके लिये सैंकड़ों उपमाएँ दे सकते हैं। आपके शरीरधारी अवतारों के लिये घनश्याम यानि बादल की तरह काला आदि अनेक उपमाएँ पुराणों में मौजूद हैं । जो देहधारी वा मूर्तिमान् हो उसके तुल्य कोई नहीं होता, यह बात ठीक नहीं है, यह बात केवल निराकार परमेश्वर में ही घट सकती है।
@dynamicculturevlogs267 Жыл бұрын
ओम
@studies3327 Жыл бұрын
(प्रश्न) जब परमेश्वर व्यापक है तो मूर्त्ति में भी है। पुनः चाहें किसी पदार्थ में भावना करके पूजा करना अच्छा क्यों नहीं? देखो- न काष्ठे विद्यते देवो न पाषाणे न मृण्मये। भावे हि विद्यते देवस्तस्माद्भावो हि कारणम्।। परमेश्वर देव न काष्ठ, न पाषाण, न मृत्तिका से बनाये पदार्थों में है किन्तु परमेश्वर तो भाव में विद्यमान है। जहां भाव करें वहां ही परमेश्वर सिद्ध होता है। (उत्तर) जब परमेश्वर सर्वत्र व्यापक है तो किसी एक वस्तु में परमेश्वर की भावना करना अन्यत्र न करना यह ऐसी बात है कि जैसी चक्रवर्ती राजा को सब राज्य की सत्ता से छुड़ा के एक छोटी सी झोंपड़ी का स्वामी मानना। देखो! यह कितना बड़ा अपमान है? वैसा तुम परमेश्वर का भी अपमान करते हो। जब व्यापक मानते हो तो वाटिका में से पुष्पपत्र तोड़ के क्यों चढ़ाते? चन्दन घिस के क्यों लगाते? धूप को जला के क्यों देते ? घण्टा, घरियाल, झांज, पखाजों को लकड़ी से कूटना पीटना क्यों करते हो? तुम्हारे हाथों में है, क्यों जोड़ते? शिर में है, क्यों शिर नमाते? अन्न, जलादि में है, क्यों नैवेद्य धरते? जल में है, स्नान क्यों कराते क्योंकि उन सब पदार्थों में परमात्मा व्यापक है। और तुम व्यापक की पूजा करते हो वा व्याप्य की? जो व्यापक की करते हो तो पाषाण लकड़ी आदि पर चन्दन पुष्पादि क्यों चढ़ाते हो। और जो व्याप्य की करते हो तो हम परमेश्वर की पूजा करते हैं, ऐसा झूठ क्यों बोलते हो? हम पाषाणादि के पुजारी हैं; ऐसा सत्य क्यों नहीं बोलते? अब कहिये ‘भाव’ सच्चा है वा झूठा? जो कहो सच्चा है तो तुम्हारे भाव के आवमीन होकर परमेश्वर बद्ध हो जायगा और तुम मृत्तिका में सुवर्ण, रजतादि; पाषाण में हीरा, पन्ना आदि; समुद्रफेन में मोती, जल में घृत, दुग्ध, दधि आदि और धूलि में मैदा, शक्कर आदि की भावना करके उन को वैसे क्यों नहीं बनाते हो? तुम लोग दुख की भावना कभी नहीं करते; वह क्यों होता? और सुख की भावना सदैव करते हो; वह क्यों नहीं प्राप्त होता? अन्धा पुरुष नेत्र की भावना करके क्यों नहीं देखता? मरने की भावना नहीं करते; क्यों मर जाते हो? इसलिये तुम्हारी भावना सच्ची नहीं। क्योंकि जैसे में वैसी करने का नाम भावना कहते हैं। जैसे अग्नि में अग्नि, जल में जल जानना और जल में अग्नि, अग्नि में जल समझना अभावना है। क्योंकि जैसे को वैसा जानना ज्ञान और अन्यथा जानना अज्ञान है। इसलिये तुम अभावना को भावना और भावना को अभावना कहते हो। आचार्यऽउपनयमानो ब्रह्मचारिणमिच्छते ।।२।। अतिथिर्गृहानुपगच्छेत् ।।३।। अथर्व०।। अचर्त प्रार्चत प्रिय मेधासो अचर्त ।।४।। ऋग्वेदे०।। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि।।५।। -तैनिरीयोप०।। कतम एको देव इति स ब्रह्म त्यदित्याचक्षते।।६।। -शतपथ प्रपाठ० ५। ब्राह्मण ७। कण्डिका १०।। मातृदेवो भव पितृदेवो भव आचार्यदेवो भव अतिथिदेवो भव।।७।। -तैनिरीयोप०।। पितृभिर्भ्रातृभिश्चैता पतिभिर्देवरैस्तथा । पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभि ।।८।। पूज्यो देववत्पतिः।।९।। मनुस्मृतौ।। प्रथम माता मूर्त्तिमती पूजनीय देवता, अर्थात् सन्तानों को तन, मन, धन से सेवा करके माता को प्रसन्न रखना, हिसा अर्थात् ताड़ना कभी न करना। दूसरा पिता सत्कर्त्तव्य देव। उस की भी माता के समान सेवा करनी।।१।। तीसरा आचार्य जो विद्या का देने वाला है उस की तन, मन, धन से सेवा करनी।।२।। चौथा अतिथि जो विद्वान्, धािर्मक, निष्कपटी, सब की उन्नति चाहने वाला जगत् में भ्रमण करता हुआ, सत्य उपदेश से सब को सुखी करता है उस की सेवा करें।।३।। पांचवां स्त्री के लिये पति और पुरुष के लिये स्वपत्नी पूजनीय है।।८।। ये पांच मूर्त्तिमान् देव जिन के संग से मनुष्यदेह की उत्पत्ति, पालन, सत्यशिक्षा, विद्या और सत्योपदेश की प्राप्ति होती हैं ये ही परमेश्वर को प्राप्ति होने की सीढ़ियां हैं। इन की सेवा न करके जो पाषाणादि मूर्त्ति पूजते हैं वे अतीव पामर, नरकगामी तथा वेदविरोधी हैं।
@studies3327 Жыл бұрын
(प्रश्न) माता पिता आदि की सेवा करें और मूर्त्तिपूजा भी करें तब तो कोई दोष नहीं? (उत्तर) पाषाणादि मूर्त्तिपूजा तो सर्वथा छोड़ने और मातादि मूर्त्तिमानों की सेवा करने ही में कल्याण है। बड़े अनर्थ की बात है कि साक्षात् माता आदि प्रत्यक्ष सुखदायक देवों को छोड़ के अदेव पाषाणादि में शिर मारना स्वीकार किया। इसको लोगों ने इसीलिये स्वीकार किया है कि जो माता पितादि के सामने नैवेद्य वा भेंट पूजा धरेंगे तो वे स्वयं खा लेंगे और भेंट पूजा ले लेंगे तो हमारे मुख वा हाथ में कुछ न पड़ेगा। इससे पाषाणादि की मूर्त्ति बना, उस के आगे नैवेद्य धर, घण्टानाद टं टं पूं पूं और शखं बजा, कोलाहल कर, अंगूठा दिखला अर्थात् ‘त्वमङ्गुष्ठं गृहाण भोजनं पदार्थं वाऽहं ग्रहिष्यामि’ जैसे कोई किसी को छले वा चिढ़ावे कि तू घण्टा ले और अंगूठा दिखलावे उस के आगे से सब पदार्थ ले आप भोगे, वैसी ही लीला इन पूजारियों अर्थात् पूजा नाम सत्कर्म के शत्रुओं की है। ये लोग चटक मटक, चलक झलक मूर्त्तियों को बना ठना, आप ठगों के तुल्य बन ठन के विचारे निर्बुद्धि अनाथों का माल मारके मौज करते हैं। जो कोई धार्मिक राजा होता तो इन पाषाणप्रियों को पत्थर तोड़ने, बनाने और घर रचने आदि कामों में लगाके खाने पीने को देता; निर्वाह कराता। (प्रश्न) जैसे स्त्री की पाषाणादि मूर्ति देखने से कामोत्पत्ति होती है वैसी वीतराग शान्त की मूर्त्ति देखने से वैराग्य और शान्ति की प्राप्ति क्यों न होगी? (उत्तर) नहीं हो सकती। क्योंकि उस मूर्त्ति के जड़त्व धर्म आत्मा में आने से विचारशक्ति घट जाती है। विवेक के विना न वैराग्य और वैराग्य के विना विज्ञान, विज्ञान के विना शान्ति नहीं होती। और जो कुछ होता है सो उनके संग, उपदेश और उनके इतिहासादि के देखने से होता है क्योंकि जिस का गुण वा दोष न जानके उस की मूर्त्तिमात्र देखने से प्रीति नहीं होती। प्रीति होने का कारण गुणज्ञान है। ऐसे मूर्त्तिपूजा आदि बुरे कारणों ही से आर्य्यावर्त्त में निकम्मे पुजारी भिक्षुक आलसी पुरुषार्थ रहित क्रोड़ों मनुष्य हुए हैं। सब संसार में मूढ़ता उन्हीं ने फैलाई है। झूठ छल भी बहुत सा फैला है। (प्रश्न) देखो! काशी में ‘औरंगजेब’ बादशाह को ‘लाटभैरव’ आदि ने बड़े-बड़े चमत्कार दिखलाये थे। जब मुसलमान उन को तोड़ने गये और उन्होंने जब उन पर तोप गोला आदि मारे तब बड़े-बड़े भमरे निकल कर सब फौज को व्याकुल कर भगा दिया। (उत्तर) यह पाषाण का चमत्कार नहीं किन्तु वहां भमरे के छत्ते लग रहे होंगे। उन का स्वभाव ही क्रूर है। जब कोई उन को छेड़े तो वे काटने को दौड़ते हैं। और जो दूध की धारा का चमत्कार होता था वह पुजारी जी की लीला थी। (प्रश्न) देखो! महादेव म्लेच्छ को दर्शन न देने के लिये कूप में और वेणीमाधव एक ब्राह्मण के घर में जा छिपे। क्या यह भी चमत्कार नहीं है? (उत्तर) भला जिस के कोटपाल, कालभैरव, लाटभैरव आदि भूत प्रेत और गरुड़ आदि गणों ने मुसलमानों को लड़के क्यों न हटाये? जब महादेव और विष्णु की पुराणों में कथा है कि अनेक त्रिपुरासुर आदि बड़े भयंकर दुष्टों को भस्म कर दिया तो मुसलमानों को भस्म क्यों न किया? इस से यह सिद्ध होता है कि वे बिचारे पाषाण क्या लड़ते लड़ाते? जब मुसलमान मन्दिर और मूर्त्तियों को तोड़ते-फोड़ते हुए काशी के पास आए तब पूजारियों ने उस पाषाण के लिंग को कूप में डाल और वेणीमाधव को ब्राह्मण के घर में छिपा दिया। जब काशी में कालभैरव के डर के मारे यमदूत नहीं जाते और प्रलय समय में भी काशी का नाश होने नहीं देते तो म्लेच्छों के दूत क्यों न डराये? और अपने राज के मन्दिरों का क्यों नाश होने दिया? यह सब पोपमाया है।
@studies3327 Жыл бұрын
(प्रश्न) भला यह तो जाने दो परन्तु जगन्नाथ जी में प्रत्यक्ष चमत्कार है। एक कलेवर बदलने के समय चन्दन का लकड़ा समुद्र में से स्वयमेव आता है। चूल्हे पर ऊपर-ऊपर सात हण्डे धरने से ऊपर-ऊपर के पहले-पहले पकते हैं। और जो कोई वहां जगन्नाथ की परसादी न खावे तो कुष्ठी हो जाता है और रथ आप से आप चलता पापी को दर्शन नहीं होता है। इन्द्रदमन के राज्य में देवताओं ने मन्दिर बनाया है। कलेवर बदलने के समय एक राजा, एक पण्डा, एक बढ़ई मर जाने आदि चमत्कारों को तुम झूठ न कर सकोगे? (उत्तर) जिस ने बारह वर्ष पर्यन्त जगन्नाथ की पूजा की थी वह विरक्त हो कर मथुरा में आया था; मुझ से मिला था। मैंने इन बातों का उत्तर पूछा था। उस ने ये सब बातें झूठ बतलाईं। किन्तु विचार से निश्चय यह है-जब कलेवर बदलने का समय आता है तब नौका में चन्दन की लकड़ी ले समुद्र में डालते हैं वह समुद्र की लहरियों से किनारे लग जाती है। उस को ले सुतार लोग मूर्त्तियां बनाते हैं। जब रसोई बनती है तब कपाट बन्द करके रसोइयों के विना अन्य किसी को न जाने, न देखने देते हैं। भूमि पर चारों ओर छः और बीच में एक चक्राकार चूल्हे बनाते हैं। उन हण्डों के नीचे घी, मट्टी और राख लगा छः चूल्हों पर चावल पका, उनके तले मांज कर, उस बीच के हण्डे में उसी समय चावल डाल छः चूल्हों के मुख लोहे के तवों से बांध कर, दर्शन करने वालों को जो कि धनाढ्य हों, बुला के दिखलाते हैं। ऊपर-ऊपर के हण्डों से चावल निकाल, पके हुए चावलों को दिखला, नीचे के कच्चे चावल निकाल दिखा के उन से कहते हैं कि कुछ हण्डे के लिये रख दो। आंख के अन्धे गांठ के पूरे रुपया अशर्फी धरते और कोई-कोई मासिक भी बांध देते हैं। शूद्र नीच लोग मन्दिर में नैवेद्य लाते हैं। जब नैवेद्य हो चुकता है तब वे शूद्र नीच लोग झूठा कर देते हैं। पश्चात् जो कोई रुपया देकर हण्डा लेवे उस के घर पहुंचाते और दीन गृहस्थ और साधु सन्तों को लेके शूद्र और अन्त्यज पर्य्यन्त एक पंक्ति में बैठ झूंठा एक दूसरे का भोजन करते हैं। जब वह पंक्ति उठती है तब उन्हीं पत्तलों पर दूसरे को बैठाते जाते हैं। महा अनाचार है। और बहुतेरे मनुष्य वहाँ जाकर, उन का झूंठा न खाके, अपने हाथ बना खाकर चले आते हैं, कुछ भी कुष्ठादि रोग नहीं होते। और उस जगन्नाथपुरी में भी बहुत से परसादी नहीं खाते। उन को भी कुष्ठादि रोग नहीं होते। और उस जगन्नाथपुरी में भी बहुत से कुष्ठी हैं, नित्यप्रति झूंठा खाने से भी रोग नहीं छूटता। और यह जगन्नाथ में वाममार्गियों ने भैरवीचक्र बनाया है क्योंकि सुभद्रा, श्री कृष्ण और बलदेव की बहिन लगती है। उसी को दोनों भाइयों के बीच में स्त्री और माता के स्थान बैठाई है।
@studies3327 Жыл бұрын
जो भैरवीचक्र न होता तो यह बात कभी न होती। और रथ के पहिये के साथ कला बनाई है। जब उन को सूधी घुमाते हैं घूमती है, तब रथ चलता है। जब मेले के बीच में पहुंचता है तभी उस की कील को उल्टी घुमा देने से रथ खड़ा रह जाता है। पुजारी लोग पुकारते हैं दान देओ, पुण्य करो, जिस से जगन्नाथ प्रसन्न होकर अपना रथ चलावें, अपना धर्म रहै। जब तक भेंट आती जाती है तब तक ऐसे ही पुकारते जाते हैं। जब आ चुकती है तब एक व्रजवासी अच्छे कपड़े दुसाला ओढ़ कर आगे खड़ा रहके हाथ जोड़ स्तुति करता है कि ‘हे जगन्नाथ स्वामिन्! आप कृपा करके रथ को चलाइये, हमारा धर्म रक्खो’ इत्यादि बोल के साष्टांग दण्डवत् प्रणाम कर रथ पर चढ़ता है। उसी समय कील को सूधा घुमा देते हैं और जय-जय शब्द बोल, सहस्रों मनुष्य रस्सा खीचते हैं, रथ चलता है। जब बहुत से लोग दर्शन को जाते हैं तब इतना बड़ा मन्दिर है कि जिस में दिन में भी अन्धेरा रहता है और दीपक जलाना पड़ता है। उन मूर्त्तियों के आगे पड़दे खैंच कर लगाने के पर्दे दोनों ओर रहते हैं। पण्डे पुजारी भीतर खड़े रहते हैं। जब एक ओर वाले ने पर्दे को खींचा, झट मूर्त्ति आड़ में आ जाती है। तब सब पण्डे पुजारी पुकारते हैं-तुम भेंट धरो, तुम्हारे पाप छूट जायेंगे, तब दर्शन होगा। शीघ्र करो। वे बिचारे भोले मनुष्य धूर्त्तों के हाथ लूटे जाते हैं। और झट पर्दा दूसरा खैंच लेते हैं तभी दर्शन होता है। तब जय शब्द बोल के प्रसन्न होकर धक्के खाके तिरस्कृत हो चले आते हैं। इन्द्रदमन वही है कि जिस के कुल के लोग अब तक कलकत्ते में हैं। वह धनाढ्य राजा और देवी का उपासक था। उसने लाखों रुपये लगा कर मन्दिर बनवाया था। इसलिये कि आर्यावर्त्त देश के भोजन का बखेड़ा इस रीति से छुड़ावें। परन्तु वे मूर्ख कब छोड़ते हैं? देव मानो तो उन्हीं कारीगरों को मानो कि जिन शिल्पियों ने मन्दिर बनाया। राजा, पण्डा और बढ़ई उस समय नहीं मरते परन्तु वे तीनों वहां प्रधान रहते हैं। छोटों को दुःख देते होंगे। उन्होंने सम्मति करके (उसी समय अर्थात् कलेवर बदलने के समय वे तीनों उपस्थित रहते हैं; मूर्त्ति का हृदय पोला रक्खा है। उस में सोने के सम्पुट में एक सालगराम रखते हैं कि जिस को प्रतिदिन धोकर चरणामृत बनाते हैं। उस पर रात्री की शयन आर्त्ती में उन लोगों ने विष का तेजाब लपेट दिया होगा। उस को धोके उन्हीं तीनों को पिलाया होगा कि जिस से वे कभी मर गये होंगे। मरे तो इस प्रकार और भोजनभट्टों ने प्रसिद्ध किया होगा कि जगन्नाथ जी अपने शरीर बदलने के समय तीनों भक्तों को भी साथ ले गये। ऐसी झूंठी बातें पराये धन ठगने के लिये बहुत सी हुआ करती हैं।
@rudraksha9330 Жыл бұрын
साधु साधु आपके जैसे सनातन विज्ञानी बहुत ही कम है
@VRhwanDanikik Жыл бұрын
Thankyou sir. Some idiots cherry pick our Hindu verses. But still if someone of you may if still confused where does Hindusim permits of Vigraha/Murti Pujan So it's in Srimad Bhagavatam by Ved Vyasa Canto 4 chapt 30 verse 28 ( or just search in chrome ŚB 4.30.28) Where it clearly states God has a expansion form as archavigraha which is made through Clay,Mud or stone. But the point is it's just a reprsentation of the god for spiritual purposes that's does the Vigraha will consist all the characters of God,It's only a way to connect with him. So it is the way/path to god.
@asj12sonu Жыл бұрын
आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं 🙏
@bhagwanmishra7243 Жыл бұрын
यहां ब्रह्म की बात है। अनन्त वै ब्रह्म।अनंत की प्रतिमा हो ही नहीं सकती व्यापाक व्याप्त अदृश्य अगोचर तत्व की प्रतिमा प्रतिमान प्रतीक उपमान प्रति कृति डूप्लीकेट एकोहम् द्वितीयो नास्ति का दूसरा हो हीं कैसे सकता है। धन्यवाद
@madhavpratapsingh8274 Жыл бұрын
😅 और ऋग्वेद का महा मृत्युंजय मंत्र, अथर्ववेद का श्री गणेश अथर्व शीर्ष स्त्रोत क्या कहता है? Ek dantam chatur hastam
@pankajnerurkar8869 Жыл бұрын
महाराज, आपने भी ब्रह्म के बारे लिखने के लिए शब्द की प्रतिमा बना ही डाली ना ?
@bhagwanmishra7243 Жыл бұрын
@@pankajnerurkar8869 यही सत्य है जब वह ब्रह्म त्रिगुण माया प्रकृति के साथ संयोग करता है तो शरीर धारण कर के ब्रह्मा विष्णु महेश सरस्वती लक्ष्मी दुर्गा बन जाते हैं फिर चुकीं ब्रह्म सबमें व्यापक रूप से है हम पूजा ध्यान कराने के लिए प्रतिमा प्रतीक मूर्तियां बनाते हैं l
@adityanathshanatani2133 Жыл бұрын
@@bhagwanmishra7243महाराज जी , त्रिगुणी माया का जो कारण (ब्रह्म) है , वह त्रिगुणी माया के गुणों से भिन्न कैसे रह सकता है ?
@abhinnakhale7520 Жыл бұрын
@@bhagwanmishra7243ja kr kena upanishad khol lijiye ye abrahmic hate idol k against dikha kr tum koi dharmik sabit nhi ho skte..ese hi tum arya namazi nhi ho.
@vipinkumardixit503611 ай бұрын
सत्य लिखा है प्रतिमा का अर्थ है वैसा ही अन्य स्वरूप जैसा मूल रूप में हो ईश्वर को देखने वाले ऋषि मुनि आदि प्रतिमाकार/ मूर्तिकार नही थे एवम किसी प्रतिमाकार/मूर्तिकार ने ईश्वर को देखा नही अथवा देखकर बनाई नही। मनुष्य केवल अपनी कल्पना से या ग्रंथों में लिखे विवरण से ईश्वर की मूर्ति बना सकते हैं प्रतिमा नहीं।
@राजन्यसिंहवर्मा Жыл бұрын
जो महीधर को प्रमाण माने वह कभी पवित्र नहीँ हो सकता है । महीधर के अनुयायी वेदनिन्दकनास्तिक आर्यद्रोही म्लेच्छानुयायी स्वपक्षक्षयकारक निर्लज्ज पतित। विभिन्नमतोँ मेँ विभक्तविभाजितमूर्खहिन्दू।।
@madhavpratapsingh8274 Жыл бұрын
त्रयंबकम यजामहे ऋग्वेद का महा मृत्युंजय मंत्र, अथर्ववेद का श्री गणेश अथर्व शीर्ष स्त्रोत क्या कहता है? Ek dantam chatur hastam अर्थात वेदों में साकार निराकार दोनों ही उपासना वर्णित है क्योंकि वो सर्वशक्तिमान है साकार भी निराकार भी जैसा चाहे
@kshatrapavan Жыл бұрын
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंन्निधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति। - गणपत्यथर्वशीर्षोपनिषद्
@madhavpratapsingh8274 Жыл бұрын
@@kshatrapavan इस नाम का कोई उपनिषद नहीं। अथर्वशीर्ष स्त्रोत में ही श्री गणेश के दोनों ही स्वरूपों का वर्णन है। इसका मतलब वो दोनों ही स्वरूपों में हैं भक्तों के लिए साकार और वहीं प्रकृति संचालन में उनकी निराकार शक्ति। आप स्वयं स्त्रोत को पढ़ें। 9 वां छंद। निराकार समर्थक जिद पूर्वक साकार को नकारता क्यों है वह वेद मंत्रों को भी कुतर्क द्वारा मन चाहा व्याख्यायित कर देता है। जबकि एक साकार भक्त ईश्वर के दोनों रूपों को सहर्ष स्वीकार कर उनकी उपासना करता है। हमारे सभी पर्व परंपरा भी साकार से जुड़ी हैं समस्त मंदिर भी।
@kshatrapavan Жыл бұрын
@@madhavpratapsingh8274 मुक्तिकोपनिषद् मे १०८ उपनिषदोंकि सूचि है, उसी मे गणपत्युपनिषद् अर्थात् गणपत्यथर्वशीर्षोपनिषद् है। उसी मे अन्ततः वचन है "य एवं वेद इत्युपनिषद्"। यह उपनिषद् अथर्ववेदसे संलग्न है। अतः यह वेद का ही भाग है। उपरोक्त "सूर्यग्रहे महानद्या प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा सिद्धमन्त्रो भवति" यह वाक्य उसी के फलश्रुति मे से है। उस मे स्पष्टतः मंत्र को सिद्ध करने का विधान बताय है। सूर्यगहण के समय किसी पवित्र नदी तट अथवा (गणपति कि) प्रतिमा के सामने जप करने से यह मंत्र सिद्ध होता है। अतः वैदिक विधा में भी मूर्तिपूजा का आदेश है।
@-dr.arundevsharma1155 Жыл бұрын
क्या ईश्वर की कोई प्रतिमा हो सकती है ? क्या उसका कोई परिमाण अर्थात् उसे तोलना, मापना, मूर्त्ति/तस्वीर या किसी भी आकृति/सीमा में लाना सम्भव है ? नहीं 👇 *प्रतिमीयते यया सा प्रतिमा अर्थात् प्रतिमानम् । जिससे प्रमाण अर्थात् परिमाण किया जाय उसको प्रतिमा कहते हैं जैसे बाट इत्यादि* । यह अर्थ *मनुस्मृति* में लिखा है - *तुलामानं प्रतिमानं सर्वं च स्यात् सुलक्षितम् ।* *षट्सु षट्सु च मासेषु पुनरेव परीक्षयेत् ।।* - मनु० ८.४०३ *संक्रमध्वजयष्टीनां प्रतिमानां च भेदकः ।* *प्रतिकुर्याच्च तत्सर्वं पञ्च दद्याच्छतानि च ।।* - मनु० ९.२८५ प्रतिमान अर्थात् प्रतिमा की परीक्षा अवश्य करे राजा । जिससे कि अधिक न्यून प्रतिमा अर्थात् दुकान के बांट जितने हैं उनमें कोई छल से घट-बढ़ न कर सके । ... इससे बाट और यज्ञ के चमसाकार चमस/चम्मच आदि पात्र इत्यादि को ही प्रतिमा जानें । - *हुगली शास्त्रार्थ तथा प्रतिमापूजन विचार - महर्षि दयानन्द* *न तस्य प्रतिमाSअस्ति यस्य नाम महद्यशः ।* *हिरण्यगर्भSइत्येष मा मा हिं सीदित्येषा यस्मान्न जातSइत्येषः ।।* पदार्थ - ... *तस्य=उस परमेश्वर की प्रतिमा=प्रतिमा-परिमाण उसके तुल्य अवधि का साधन प्रतिकृति, मूर्त्ति वा आकृति न, अस्ति=नहीं है । ... उसका प्रतिमा=प्रतिबिम्ब तस्वीर नहीं है* भावार्थ - *हे मनुष्यो ! जो कभी देहधारी नहीं होता जिस का कुछ भी परिमाण सीमा का कारण नहीं है, जिसकी आज्ञा का पालन ही नामस्मरण है । जो उपासना किया हुआ अपने उपासकों को पर अनुग्रह करता है, वेदों के अनेक स्थलों में जिसका महत्त्व कहा गया है । जो नहीं मरता न विकृत होता न नष्ट होता उसी की उपासना निरन्तर करो जो इससे भिन्न की उपासना करोगे तो इस महान् पाप से युक्त हुए आप लोग दुःख क्लेशों से नष्ट होंगे ।* - *महर्षि दयानन्द कृत यजुर्वेद भाष्य यजुर्वेद ३२.३* *ईश्वर की प्रतिमा अर्थात् तोलने, नापने, सीमा में बाँधने वाली कोई वस्तु, मूर्त्ति, आकृति, तस्वीर इत्यादि नहीं है* फिर भी पूर्वाग्रही लोगों ने अपनी अविद्या, अज्ञानता से, वेदविरुद्ध होकर उसको मूर्त्ति, तस्वीर, आकृति की सीमा में मानकर मूर्त्तिपूजन को ही ईश्वर-सत्कार मान रखा है । जबकि ईश्वर का सत्कार जप, ध्यान करने से होता है । प्रस्तुतिः - अरुणदेवः
@Danish2-c7b Жыл бұрын
किस तरह लोग को गुमराह किया जाता है आईए जानते हैं ancient टाइम में ईश्वर की ग्रंथ को बदल जाता था और कहा जाता था यही सच्चा ग्रंथ है और आज मॉडर्न टाइम में शब्द को बदल जाता है कैसे आई जानते हैं आज से ठीक 1 साल पहले शनि राठौर नामक एक यूट्यूब वीडियो डालता है और उसमें वह कहता है प्रतिमा का मतलब होता है तुलना और इसको इंग्लिश में करेंगे तो कंपैरिजन तो क्या यह सच है आईए जानते हैं देखिए यहां पर किस तरह बात को बदला जा रहा है सिर्फ अपने आप को सच दिखाने के लिए और जबकि हकीकत तो यह है कि प्रतिमान शब्द एक संस्कृत शब्द है और इसको ट्रांसलेट करते हैं ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी से हिंदी में तो निकाल के आता है तुलना बराबर और इसको इंग्लिश में ट्रांसलेट करते हैं तो निकाल कर आता है कंपैरिजन और प्रतिमा एक संस्कृत शब्द है और अगर इसको ट्रांसलेट करते हैं हिंदी में तो निकाल कर आता है मूर्ति देवी देवताओं की मूर्ति और यह कोई जरूरी नहीं है कि सिर्फ हिंदू देवी देवताओं की मूर्ति और अगर प्रतिमा को ट्रांसलेट करते हैं इंग्लिश में तो निकाल कर आता है आइडल तो कुछ मिलता जुलता शब्द से कैसे यहां पर बदला जा रहा है यह देखिए यहां पर ancient टाइम की नीतियों को अपनाया जा रहा है.....
@vedicsanatan417 Жыл бұрын
aap shastrath kyu nhi krta fr. vedo mai nishad hai murti pooja jo chejo aap puranik manta hai vedo mai un sbka khandan hai esliya aapka suam ka mat ka khandan ho jata hai
@VarunSingh-mr5yq Жыл бұрын
namazi bahut ved padh liye lagra tune
@vedicsanatan417 Жыл бұрын
@@VarunSingh-mr5yq beta tera sa jyada agr himmat hain toh debate kr liyo.
@tirtharajchakraborty442 Жыл бұрын
Tum log aao Kashi mein pratima ka birodh karne. Pele jaigo
@apragmatist Жыл бұрын
@@tirtharajchakraborty442 Hume KYa Lena, agar Tumahri budhi KAM nahi KARATI to
@simpleboy4209 Жыл бұрын
Arya Namaji Ap sant rahe 😂... Kyoki iswar ke akar ka vedo me hi ullekh he
@spiritulafritterer Жыл бұрын
महोदय, कृपया एक वीडियो यम और यमी पर उठने वाले वामपंथी आक्षेप पर भी बनाइए।
@apragmatist Жыл бұрын
Read arya samaj scriptures
@spiritulafritterer Жыл бұрын
@@apragmatist जी, वहां का संदर्भ देखा है ।
@vinit1366 Жыл бұрын
@@apragmatistArya samaj is corrupt
@ganeshbirajdar26194 ай бұрын
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च sir कृपया इस श्लोक का अर्थ बताये
@कानाह Жыл бұрын
आपको धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏
@madhavpratapsingh8274 Жыл бұрын
दयानंदी भाष्य और अन्य विद्वानों के भाष्य के भावार्थ में जमीन आसमान का अंतर है दयानंद ने बिल्कुल अपने मन से, अपने हिसाब से, अपनी सुविधा से, अपने अनुरूप ही अनुवाद किया। आर्य समाज विनाशक नामक यूट्यूब चैनल ने तो प्रमाण सहित सच सामने ला दिया पोल खोल दी
@theakvon7434 Жыл бұрын
Wo to janmana varna byabastha maanta hai..kya tum v maante ho??
@theakvon7434 Жыл бұрын
Or uske baato me koi logic hoti nahi hai..usko sanskrit nahi aati..nahi nirukta shastra..use vishawaas kyu karte ho.....isi liye vidharmio se pele jaate ho
@theakvon7434 Жыл бұрын
Kitni baar virdhamio k channel me jaake unke daabo ka khandan kiya hai?? Ulta ghar me bayth ke gyan jhar ta hai..itna daam hai to bolo kabhi awaz e hug k channel me jaake thodi guftugu karne ko...2 min me pela jayega😂😂
@madhavpratapsingh8274 Жыл бұрын
@@theakvon7434 विधर्मी पेलते हैं दयानंदी भाष्य के रेफरेंस से
@madhavpratapsingh8274 Жыл бұрын
@@theakvon7434 आय समाजियों भी उसके चैनल पर गए थे और हार मानकर आ गए वीडियो देख लेना। क्या आप वेदों में साकार उपासना का वर्णन नहीं है ऐसा मानते हैं? तो फिर महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद, श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्त्रोत अथर्ववेद को ही देख लो। गणेश गायत्री मंत्र, आकाश गायत्री मंत्र आदि देख लो। वेदों में वर्ण के दोनों आधार माने गए हैं जन्मना व कर्मणा और आपके आका दयानंद के भाष्य में भी।
@आर्यावर्तSanatanVedicभारत21 күн бұрын
प्रश्न 1:ईश्वर साकार है या निराकार? उत्तर:निराकार। क्योंकि जो साकार होता है, तो व्याप्य नहीं हो सकता। जब व्याप्य न हो तो सर्वव्यापी गुण और ईश्वर में जो चिद्र स्वतंत्र है, वह नहीं हो सकता। क्योंकि परिवर्तित वस्तु में गुण, स्वभाव या परिवर्तित वस्तु में ही वह शांति, शोभा, द्युति और रुख, गति, गुण, कर्म, स्वभाव और सत्यता नहीं हो सकती। अतः यह सिद्ध है कि ईश्वर निराकार है। जो साकार है, तो उसके गुण, कर्म, स्वभाव आदि अवगुणों के साथ संयुक्त हो सकते हैं। निराकार ही वह ईश्वर है जो किसी भी पदार्थ से बंधा नहीं और पूर्णत: स्वतंत्र है। प्रश्न 2:ईश्वर सर्वव्यापकता वाला है या नहीं? उत्तर:हां। परंतु जैसा प्रत्यक्षव्यापी सूक्ष्म अंश जानते हो वैसा नहीं। वह परमात्मा अपने चिद्र अंश की शक्ति से अणु, परमाणु, पृथ्वी, आकाश आदि सभी स्थानों में व्याप्त है। वह यथायोग्य प्राणियों के पुण्य, पाप और सत्यता के अनुसार व्यवस्था करता है। प्रश्न 3:हम जो पाप करते हैं, ईश्वर चाहे तो क्यों नहीं रोक सकता? उत्तर:ईश्वर क्या चाहता है? जो तुम कहते हो, वह सब कुछ चाहता और कर सकता है। परंतु तुमसे स्वतंत्र रूप से अपने ही मार्ग, अपने ही कर्म, स्वभाव, आदि को व्यक्त करता है। जैसे वे गुण, कर्म, स्वभाव से निर्दोष हैं, वैसे ही वह सर्वशक्तिमान, निर्दोष और सत्य है। ईश्वर पाप को रोक सकता है, परंतु उसके परम शुद्ध सत्य में यह नहीं। प्रश्न 4:क्या ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए या नहीं? उत्तर:करनी चाहिए। प्रश्न 5:क्या स्तुति आदि करने से ईश्वर अपना नियम छोड़, कृपा, प्रार्थना करनेवाले का पाप क्षमा करता है? उत्तर: नहीं।
@mahimanewsomkarlekar6181 Жыл бұрын
गुरूजी नमस्कार एक सवाल आपसे डायरेक्ट. क्या बेटा बाप को बना सकता है? या बाप बेटे को बना सकता है? सही जवाब चाहिए.
@nutanpanda67718 ай бұрын
Thank you so much Sir
@AryanTheNoble Жыл бұрын
क्या सायण और माहीदर के वेदों के भाष्य मान्य हैं?
@Athato_Brahmajijnasa Жыл бұрын
Ha
@aries5534 Жыл бұрын
Thank paramatma for internet 🙏💪
@aadityasisode9108 Жыл бұрын
Murtipuja ved pratipadit nahi hain to ved viruddh bhi nahi hain yagya bhi ek prakar ki murtipuja hi hain hum ved grantho par matha tekte hain to ye bhi murtipuja hi hain Rahi baat nirakar aur sakar to ishwar dono rupo main rah sakta hain(ishavasyopnishad mantra 5) Bhagwad gita adhyay 12 shlok 1-7 main bhagwan ne hi kaha hain ki nirakar aur sakar dono hi rupo ki upasna ishwar ki hi upasna hain par nirakar ki prapti kathin hain sakar ki prapti saral hain par dono hi ved pratipadit hain Om tat sat om gan ganpataye namh jai shri ram har har mahadev🕉️🚩
@aadityasisode9108 Жыл бұрын
@Shubham ha to tum hi batado gita ke adhyay 12 shlok 1 se 7 Rahi baat nirakar ki to nirakar ko mana kon kar raha hain ishwar sakar aur nirakar(sarvyapi) dono rupo main hain
@durmada Жыл бұрын
Nityananda Mishra ji, could you please record a video on ,,na tasya pratimā asti'' in English? 🙏
@awaqurr81984 ай бұрын
Simple formula.. when you are not able to convince then confuse them
@devendrashastri92217 ай бұрын
बौद्धधर्म के बाद लोक में मूर्तिपूजा फैली है और वर्तमान में मूर्तिपूजा एक बड़े ही लाभ का व्यवसाय है और आप मूर्तिपूजा के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए ही वेदमंत्रों के अर्थ का अनर्थ कर रहे हैं, अन्यथा वेद छोड़िए सनातन धर्म के सभी ग्रन्थों में मूर्तिपूजा पूजा की मना की गयी है
@yoginacharya21504 ай бұрын
🙏🕉🙏
@govindaaggarwal103 Жыл бұрын
🙏🙏🙏 According to Bhagwat Geeta by Swami Ramsukhkas, he said Nirgun can not be Smagrah because it doesn't allow Gunas but Sagun is Smagrah because there is no "Nishedh" in it. I personally feel that indeed Sagun is limited in comparison with Nirgun. However, at the individual level, it is Sagun, which opens up endless possibilities, even that of Nirgun.
@knowledgeworld1451 Жыл бұрын
nirguna means devoid of bad qualities saguna means full of auspicious qualities
@piyushdevnath293 Жыл бұрын
@@knowledgeworld1451 bhai madarsa mei padha tha kya😅
@Tech_burner-c8g Жыл бұрын
@@piyushdevnath293 Allah ko bhi toh dikhta nhi h and bhai jitne bhi abrahamic mazhub h vo bhi issi philosophy mein maante h unhone kya kara h shrishti ka ye tum jaante nhi kya
@vivek8580 Жыл бұрын
@@Tech_burner-c8gArre murkh islam sirf nirakar mee maanta hai jbki sanatani dharm nirgun nirakar maanta hai
@Tech_burner-c8g Жыл бұрын
@@vivek8580 Kya bakwaas kar rha h bhai sanatan dharm saakar aur nirakar dono mein maanta h ab core difference kuch nhi h bhai nirakar ya nirgun nirakar mein
@loversrliars86 Жыл бұрын
Dhanywad 🙏🏻 sadhuwaad
@Aghori_Tantrik208 Жыл бұрын
वेदों को अभी छोड़िए, पहले आज जिसको सबसे अधिक माना जाता है, जिसकी कथाएं हर दिन होती हैं और जिसको साक्षात भगवान कृष्ण जी का ही रुप कहा जाता है उस भागवत पुराण के स्कंद 10, अध्याय 84, श्लोक 13 में भगवान कृष्ण क्या कह रहे हैं देखिए "यस्यात्मबुद्धिः कुणपे त्रिधातुके स्वधी: कलत्रादिषु भौम इज्यधी:। यत्तीर्थबुद्धिः सलिले न कर्हिचिज्जनेष्वभिज्ञेषु स एव गोखर:"=जो मनुष्य वात पित्त और कफ इन 3 धातुओं से बने हुए इस शव तुल्य शरीर को ही आत्मा अपना "मैं", स्त्री पुत्र आदि को ही अपना और मिट्टी पत्थर काष्ठ आदि पार्थिव विकारों को ही अपना इष्टदेव मानता है तथा जो केवल जल को ही तीर्थ समझता है ज्ञानी महापुरुषों को नहीं वह मनुष्य होने पर भी पशुओं में भी नीच गधा ही है।(साभार=भागवत पुराण, गीता प्रेस गोरखपुर) यहां देखिए कितने स्पष्ट रुप से "मिट्टी पत्थर आदि पार्थिव विकारों को इष्टदेव" मानने वाले के लिए कितनी अच्छी उपाधि दी गई है "मनुष्य होने पर भी पशुओं में नीच गधा "।। अब आते हैं वेद पर,--- यदि वेदों से ही मूर्तिपूजा सिद्ध करना है आपको तो बताइए कि 1)किस वेद के किस सूक्त/मंडल/अध्याय/काण्ड के किस मंत्र में मूर्ति बनाने की विधि लिखी है? 2) वेद में ईश्वर के किस रुप की मूर्ति बनाने का विधान है?? विद वेद मंत्र 3) वह मूर्ति किस धातु की और कितनी बडी होनी चाहिए?? विद वेद मंत्र 4) उसकी स्थापना कैसे करनी चाहिए?? विद वेद मंत्र 5) उसको किस प्रकार प्रसन्न करना चाहिए, भोग क्या लगाना चाहिए?? विथ वेद मंत्र 6) उसको कपड़े किस तरह के और किस रंग के पहनाए चाहिए या बिना वस्त्र के ही रखना चाहिए?? विद वेद मंत्र 7) मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है तो प्राण प्रतिष्ठा के मंत्र किस वेद में दिए हुए हैं?? क्योंकि यदि वेद में मूर्तिपूजा है तो उसका विधि विधान भी अवश्य ही होना चाहिए?? और बिना प्राण प्रतिष्ठा के पत्थर को भगवान माना नहीं जाता है तो किस वेद में मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के मंत्र हैं बताएं??? नोट=वेद,दर्शन, उपनिषद,वाल्मिकी रामायण, महाभारत, स्मृतियों में भी मूर्तिपूजा नहीं है। सिर्फ पुराणों में ही है और साथ ही साथ पुराणों में भी अनेकों स्थानों पर इसका निषेध भी है। आज जिस "भगवत गीता" को हम हमारा धर्म ग्रंथ कहते हैं उसमें भी कहीं भी मूर्तिपूजा नहीं है। इन सातों प्रश्नों का उत्तर देने की कृपा करें।🙏🙏 जिस दिन आप उत्तर दे देंगे उसी दिन से मूर्ति पूजा आरंभ कर दूंगा.... अब मेरा भी एक तर्क लीजिए आप भगवान की चेतन प्राणियों से समानता नहीं मानते, ईश्वर की किसी से उपमा/माप/तुलना नहीं है,अच्छी बात है लेकिन जड़/चेतना रहित पत्थर से भगवान की समानता मानते हैं उसको भगवान मानते हैं यह कितने आश्चर्य की बात है?? चेतन ईश्वर को जड़ पत्थर में पूजना क्या यह ईश्वर का अपमान नहीं है??
@kafir-e-aazam8499 Жыл бұрын
शैली दारुमयी लौही लोव्या लेख्या च सैकती । मनोमयी मणिमई प्रतिमाष्टविधा स्मृता ।। (श्रीमद्भागवत महापुराण 11:27:12) => शैली - पत्थर की बनी , दारुमयी - काष्ठ की बनी ,लौही = धातु की बनी , लेप्या- मिट्टी चंदन आदि से बनी , लेख्या- चित्रित , च-तथा , सैकती -रेत से बनी , मनः मई -मन मे विचार की गई , मणिमयी - मणियों (रत्न)से बनी प्रतिमा अर्चाविग्रह अष्ट - आठ प्रकार की स्मृति - ऐसे स्मरण किया जाता है । भावार्थ :- भगवान के अर्चाविग्रह रूप का आठ प्रकारों में - (1) पत्थर (2) काष्ठ (लकड़ी) (3) धातु (4) मिट्टी (5) चित्र (6) रेत (7) मन (मन मे स्मरण) (8) रत्न में प्रकट होना बताया गया है ।। इसलिए कृपया प्रलाप बंद करें 🙏🚩
@Aghori_Tantrik208 Жыл бұрын
@@kafir-e-aazam8499 😂🤣😇 1)मैंने वेद का प्रमाण मांगा।और आप दे रहें हैं भागवत पुराण का। मैंने भी उपर भागवत पुराण का ही एक श्लोक दिया है। और भागवत पुराण तो दोहरी बात करने वाला निकला, कहीं तो मूर्तिपूजक को "पशु में नीच गधा"की उपधि से विभूषित कर दिया और कहीं 8 प्रकार की प्रतिमा की बात कह मारी 😇🤣🤣।
@kafir-e-aazam8499 Жыл бұрын
@@Aghori_Tantrik208 🤦🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣 जाहिल शुरू में ही भागवत पुराण का उदाहरण तेरे बाप ने दिया था क्या ❓❓❓😁😁 और रही बात वेद की तो सिद्ध तुम चम्पूओ को करना है कि वेद में अर्चाविग्रह (मूर्ति पूजा) का निषेध कहाँ पर है ❓❓❓😂😂🤣🤣🤣🤣🤣
@Cutestar6757 Жыл бұрын
@@Aghori_Tantrik208 पूरी वीडियो में वो यही बता रहे है की वेद में, ऋग्वेद में भी यही बोल गया है की प्रतिमा है,,
@Aghori_Tantrik208 Жыл бұрын
@@Cutestar6757 हां,महोदय जी,लेकिन उन्होनें प्रतिमा का अर्थ उपमा/तुलना आदि करा है जो मैं भी मानता हूं कि परमात्मा की किसी से भी यथार्थ उपमा नहीं दी जा सकती, तुलना नहीं करी जा सकती।लेकिन प्रतिमा पूजन/मूर्तिपूजा इससे कहां सिद्ध हो रही है, यह बात मैं कर रहा हूं। इसलिए उपर मैंने 7 प्रश्न रखे हैं,जो भी मूर्ति पूजा वेद में मानता है और जिसमें भी सामर्थ्य हो वो उनका उत्तर दे।एक भाई Kafir-e-Aazam ने प्रयास किया लेकिन भागवत पुराण का श्लोक देकर निकल लिए जबकि मैं वेदों की बात कर रहा था।और मूर्तिपूजक के लिए "पशुओं में नीच गधे"की उपाधि भी इसी भागवत पुराण में वर्णित है। लेकिन Kafir भाई निकल लिए,इसपर कोई बात न करके।
@Abstract945 Жыл бұрын
धन्यवाद:। 🙏
@VirendraKumar-yc7qt Жыл бұрын
Indra ka kya arth kya Indra sakar devta hain sarvatra ved main. Niruktar ka kya mat hain is barae main. Kitnae sthano par ved mantro sae pooranic sidhhant kae kandhan hota hain..Marut ko ved Mae Mrat kaha gaya hain purona kae anusar to devta Amar hain kya reply hain aapka.
@hnbhattacharya8761 Жыл бұрын
It means God has no particular form .He can take any form .
@naimaakter1958 Жыл бұрын
So...god is shapeless...that's true...but why does hindu give shape to god...u can pray without shape(murti)
@learningkids9069 Жыл бұрын
Namaskar! Please speak on the trueness of the book "Gyan Ganga" by Sant Rampal, an acharya from Kabirpanth. He has taken shloks from many hindu scriptures including Geeta and translated them. But his translations are completely different.
@jinmuwon1108 Жыл бұрын
That book is joke
@adityanathshanatani2133 Жыл бұрын
सही कहूँ तो उनको संस्कृत का साधारण ज्ञान भी नही है !!!!!! उदाहरण :- भगवत गीता के सभी श्लोकों को पढ़ने का एक पैटर्न है ..... यद्यदाचरति श्रेष्ठ: , तत्देवो तरोजनः । स यत्प्रमाणं कुरुते , लोकस्त अनुवर्तते।। इसमे पैटर्न है जो हर श्लोक में पाया जाता है। पर रामपाल जिस श्लोक को लेते है वो है वास्तविक :- सर्वधर्मान्परित्यज्य , मामेकं सरणम ब्रज। अहम त्वाम सर्व पपेभ्यो:, मोक्षयष्यामि मा शुचः।। रामपाल :- सर्वधर्मान्परित्यज्य माम् , एकम सरणम ब्रज। 😊😊😊😊😊😊
@learningkids9069 Жыл бұрын
@@jinmuwon1108 I too feel the same.
@learningkids9069 Жыл бұрын
@@adityanathshanatani2133 Dhanyawad. Your example is a good example for proving his book a fake one.
@jinmuwon1108 Жыл бұрын
I purchased his 3 books cost rupees 30, the boy who was selling was uneducated
@absmart915 Жыл бұрын
Sir, do you have any contact for good astrologers for creating janma patrika and getting a date for annaprasanna.
@mayankjangid1543 Жыл бұрын
Sir, please Srila Prabhupada ke Bhagwad Gita as it is ke translations par apne vichaar batye! Aapse vinamra vinati hai.
@santanupkamath Жыл бұрын
Dustbin मे फेंकने लायक है
@Top10Funnyanimal Жыл бұрын
नमस्ते जी मान लेते हैं मुर्ति पुजा सही है वेदों में भी है पर क्या आप इसे सिध्द कर सकते हैं कि मुर्ति पुजा सही है ☺
@NoLeftNoRight12287 Жыл бұрын
क्या आप यह सिद्ध कर सकते हैं कि माता पिता का सम्मान करना, उन्हें प्रणाम करना सही है?
@ViralMemes30 Жыл бұрын
मूर्ति की पूजा करना और मूर्ति के जरिए भगवान की पूजा करना..इन दोनो में फरक है..समझा
@mahipalnagar6168 Жыл бұрын
परमात्मा निराकार, निर्विकार,है।वह सर्व व्यापक है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही उसका, स्वरूप है। महीपाल सिंह नागर आर्य।
@devendrashastri92217 ай бұрын
आदि सृष्टि में चार ऋषियों के हृदय में ईश्वर की कृपा से वेदज्ञान का प्रकाश हुआ, ऋषि ही बता सकते हैं कि किस वेदमंत्र का क्या सत्यार्थ है, अन्य लोग तो अर्थ का अनर्थ ही करते हैं
@SagarGupta-bt4xo5 ай бұрын
हा हा हा😂😂 ईश्वर ने चार ऋषियों के हृदय में वेद डाल दिया उसके बाद ऋषियों ने हृदय का ऑपरेशन करके वेद को बाहर निकाल दिया 🤣🤣🤣🤣🤣🤣
@devendrashastri92215 ай бұрын
@@SagarGupta-bt4xo तुम जब अपने हृदय की बात को अन्य लोगों से बोलते हो, तो तुम्हें अपने हृदय का ओपरेशन करना पड़ता है क्या
@SagarGupta-bt4xo5 ай бұрын
@@devendrashastri9221तुम अपना नंबर दो और स्टांप पेपर पर 1 लाख रुपए इनाम रख कर डिबेट हो जाय बोलो मंजूर है मैं वेद से ही साकार ईश्वर को सिद्ध करूंगा
@amaratvak6998 Жыл бұрын
Is shlok ka mool shaabdik arth jo bhi ho, sau baat ki ek baat ye hai ke Sanatan Dharma mein moorti us eeshwar / avataar mein dhyaan lagaane ke liye aur hriday mein shraddhabhaav utpann karne ke liye hoti hai. Iska ye arth nahin hai ke hum eeshwar ko kisi nishchit roop (maanav roop) ya aakaar mein hi maante hain.
@gauravshah89 Жыл бұрын
haa. magar aaj ki pooja paddhatiyan nayi hai. vedon me iska koi ullekha nahi hai.
@amaratvak6998 Жыл бұрын
@@gauravshah89 Pooja paddhatiyon ka dharmik granthon se koi lena dena nahin hota..aur na hona bhi chaahiye..Inka udgam toh manushya dwara kaalantar mein apne samaaj mein prachalit maanyataaon aur swayam ke shraddhabhaav ke anusaar hota hai. In mein samayaanusaar badlaav bhi ho sakte hain. Har baat, har kriya "aadesh" ya "commandments" ke roop mein granthon mein nahin bataayi ja sakti. Anyatha, isse toh wahi hoga jo hum islam roopi daanav mein aaj dekh rahe hain.
@vishakhasharma2209 Жыл бұрын
@@amaratvak6998 👍👍👌👌 hamare granth hame commands nahi dete , balki uss param satya ko swayam janne ki utsukta ko janm dete hai ...... I like yr clarity 👏
@amaratvak6998 Жыл бұрын
@@vishakhasharma2209 Thank you dear sister 🙏🏽🙌.
@SahilKhan-g1r7qАй бұрын
'ना तस्य प्रतिमा अस्ति' का शाब्दिक अर्थ है, 'उसकी कोई प्रतिमा नहीं है'. यह श्लोक ईश्वर के निराकार स्वरूप को समझाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह श्लोक यजुर्वेद 32.3 में है. लेकिन दयानंद सरस्वती ने कहा था कि इस श्लोक में प्रतिमा का अर्थ है, 'सदृष्य, समान, जैसा'. उनका कहना था कि ईश्वर जैसा कोई नहीं होता, इसलिए उसकी आकृति कैसे बनाई जा सकती है. दयानंद जी भी तो मूर्ति नहीं बनने के बात में हैं
@RohanKumar-xf1mj Жыл бұрын
Dharmo rakshati rakshata ,ye shlok puura hai ya isske aage bhi hai plzz clear krde
@adinathmishra983711 ай бұрын
कृपा करके मुझे जप स्मरण भजन कीर्तन में अन्तर बतलाबे
@RajbhashaNet Жыл бұрын
ब्रह्म ईश्वर देवता भगवान सब संज्ञाएं भिन्न-भिन्न हैं तथा जैसे विद्युत का चुंबकत्व का शक्ति प्रयोग अनुसार भिन्नता है गुण प्रकट होते हैं वैसे ही ब्रह्म के विस्तार से गुण प्रकट होते जाते हैं। अतः समस्त प्रकार निर्गुण सगुण निराकार साकार संभव हैं अवतरण संभव है हालांकि अंत में मनुष्य जान ही नहीं सकता है कहते हुए अज्ञेय भी कह दिया गया है तो व्याख्या अंत में अनुपयोगी भी हो जाती हैं।
@shubhammusic98 Жыл бұрын
नमस्कार नित्यान्द जी, क्या आप कृपया करके कुछ अच्छे संस्कृतम् - हिन्दी अथवा संस्कृतम् - संस्कृतम् शब्दकोश के विषय में सुझाव दे सकते हैं। यहां मैं पुस्तक के विषय में पूछ रहा हूं, किसी अंतर्जाल वेबसाइट के बारे में नहीं।
@marwarikapish Жыл бұрын
ओम् नमस्ते जी, संघटन सही शब्द ही या संगठन, कृपया प्रकाश डालें।
@AryanTheNoble Жыл бұрын
क्या शास्त्रों स्मृतियों और उपनिषदों में मूर्ति पूजा के प्रमाण मिलते हैं ?मुझे नहीं लगता।
@sankalpsrivastava1312 Жыл бұрын
😂😂 Valmiki Ramayan, Shrimad Bhagvat puran aur Mahabharat me bhi hai Ram tapani upanishad aur Gopal tapani upanishad ka nam sune ho ? Usme ram aur krishna ko ishwar bataya gya hai.
@bhartithakur6744 Жыл бұрын
Namo 🌺
@shamliarun Жыл бұрын
कृपया स्पष्ट करें कि आप प्रतिमा के संदर्भ मे ईश्वर की बात कर रहें हैं या देवताओ की?
@apragmatist Жыл бұрын
Kripya shri dyanand ka satyarth parkash padhe aapko PDF mil jayegi
@हनुमत्प्रसाद Жыл бұрын
नमस्ते जी । महाशय कभी वेदांगों अर्थात् व्याकरण निरुक्त आदि ग्रंथ भी देख लिया कीजिए । निरुक्त में ऋषि यास्क ने दैवत काण्ड में देवताओं की व्याख्या की है । और ऋषि दयानन्द जी ने निरुक्त सम्मत अर्थ ही किया है । रही बात साकार की तो यजुर्वेद कुछ अन्य मन्त्रों को देख लीजिएगा - स पर्यगात् .....
@जयहिन्द-च7श Жыл бұрын
गुरुजी हम जो अपना कोई गुजर जाने के बाद जो रिस्तेदार सुद्धिकरण करते हैं उसपर वेदाङ्ग(धर्म-शास्त्र) में कोइ प्रमाण है क्या ? यदि है थोडा हमें वताने की कृपा करे
@lokendrasinghsisodiya9035 Жыл бұрын
Honorable sir, Please be kind enough to go through Sri Aurobindo's " Ved Rahasya "bcoz Veda can't be understand by word to word but it is listen by Rishis in heart. I appreciate your hard work.
@ashoksinghal5620 Жыл бұрын
Thanks for explanation. Just wondering if inclusion of reference to 'Purush suktam' could have been good, which concludes with 'Hrischa te Lakshmish cha Patnyau ---.
@Tech_burner-c8g Жыл бұрын
Yes
@apragmatist Жыл бұрын
Search on Google "agniveer vedas ".your doubts will get resolved
@sushilarya1424 Жыл бұрын
अभी और पढ़िए । स्पष्ट है जब उपमा नहीं तो मूर्ति उसका प्रतिनिधित्व किस प्रकार कर सकती है??
@balaramdas6967Ай бұрын
Anarya samaj se sare arya dur rahe.
@vanhannu Жыл бұрын
Very nice
@Navnikar Жыл бұрын
नित्यानंद जी आप ज्ञानी है लेकिन आप यहां आपकी सोच थोपने की कोशिश कर रहे है जितने भी बड़े बड़े महापुरुष हुए है उन्होंने कहा है की ईश्वर कण कण में है अर्थात ईश्वर सर्वव्यापक है। और जो सर्वव्यापक है वो सिर्फ एक जगह नहीं हो सकता । महात्मा बुध ने भी कहां था मूर्ति पूजा इश्वर प्राप्ति का साधन नहीं है उनका कहना था ईश्वर को अपने अंदर ढूंढना चाहिए । भगवान महावीर ने भी इश्वर को कण कण में माना था न कि एक मूर्ति मे।
@vinay.yadav. Жыл бұрын
जब कण कण में है तो मूर्ति में क्यों नहीं
@Navnikar Жыл бұрын
@@vinay.yadav. आपकी बात बिलकुल सही है मूर्ति सहित इस दुनिया की प्रत्येक वस्तु में ईश्वर विराजमान हैं। (ईश्वर बहुत ही सुक्ष्म है , अनु परमाणु में भी है इसीलिए वह निराकार है) लेकिन सिर्फ मूर्ति पूजा में बोलना अत्यंत गलत है। महृषी पतंजलि के ग्रंथ योग दर्शन में इश्वर को अपने अंदर योग के द्वारा इश्वर तक पहुंचने की विधि है जिसे आज कल ध्यान कहते है। अर्थात इसके अलावा जितने भी आडंबर है वो गलत है । वेदों में भी इश्वर को बिना आकार का बताया गया है।
@sanazikra936911 ай бұрын
Right ishwar ko besak apne dil or mn se hi prathna krna chahiye na bhala ishwar ko bana skta h ishwar to hme banate h
@prashantkumarsingh2705 Жыл бұрын
आठ प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त करने का उपाय पर भी अगर वीडियो बनाएं तू बहुत कृपा होगी
@igorgorbechov7696 Жыл бұрын
हमारे ईश्वर इतना सामर्थ्यवान है कि वह भक्तों के अत्यंत श्रद्धा, भक्ति और उनके विश्वास कारण कहीं मूर्ति में प्रगट तो कहीं बच्चे के रूप में अवतरित भी हो सकतें हैं।
@deepakkumarjha4454 Жыл бұрын
आपका ईश्वर इतना असहाय है कि वह शरीर धारण किए बगैर अपना कोई भी कार्य नहीं कर सकता और हमारा वाला ईश्वर बिना शरीर धारण किए सृष्टि का निर्माण स्थिति और प्रलय तक कर सकता है बताओ हो गया ना पौराणिक ईश्वर असमर्थ सिध्द क्योंकि वह कभी मोहिनी रूप पर आसक्त हो जाता है कभी वृंदा पर आसक्त हो जाता है और श्राप पाकर मनुष्यों की तरह कर्मफल भोगने के लिए अवतार भी लेता है अब सब भगवान की लीला है बोलकर कट लेना। 😂
@unadpotrarahim2006 Жыл бұрын
फिर तो तुम्हारा ईश्वर गंदा और अज्ञानी होना चाहिए ?
@igorgorbechov7696 Жыл бұрын
@@unadpotrarahim2006 बिल्कुल सही जिसका ईश्वर बकरे रेतना, मक्कारी से दूसरों को गला रेतना, दूसरों के धर्म स्थल पर जबरन कब्ज़ा, जबरन लडना और पत्थर बाजी करना सिखाता हो उसके लिए हमारा ईश्वर ज़रूर ऐसा लगेगा।
@unadpotrarahim2006 Жыл бұрын
@@igorgorbechov7696 तुम्हारे ईश्वर में अक्कल भी नही है ??
@igorgorbechov7696 Жыл бұрын
@@unadpotrarahim2006 यही अंतर है तुम्हारे मक्कारी वाले में और हमारे ईश्वर के ईश्वरत्व में।
@11176 Жыл бұрын
जय श्री राम जी की🙏🚩💯🇮🇳
@hiteshpanwar54 Жыл бұрын
भारत मे मूर्ति पूजा कब शुरू हुई
@somparkash3759 Жыл бұрын
मान्यवर मोहदय सकन्द पुराण के हिमाद्री खण्ड के विषय में आप से जानकारी चाहिए, इस संबंध में आपको टिविट भी किया था, जिसका रिप्लाई नहीं मिला कृपया जानकारी शेयर करें कि मुझे हिमाद्री खण्ड कैसे और कहाँ से मिल सकता हैँ कृपया संज्ञान लें कर रिप्लाई करें 🙏🙏🙏
@malakumar18112 ай бұрын
अगर आप में सत्य स्वीकार करने का साहस होता तो आप शब्द का धातु प्रत्यय तथा यौगिक अर्थ भी बताते। जो आपके गुरुओं को भी पता नहीं है तो आपको कैसे पता चलता।
@Cutestar6757 Жыл бұрын
Thnkx,,,,
@findingthewayoftruth10 ай бұрын
sir samaj nahi aaraha hai............. short me batao na
@sam_mac22 Жыл бұрын
Do u think devta and ishwar is same pl. Coment in somevideo
@badangle9085 Жыл бұрын
माताजी - भोजन कैसा बना है ? मैं - अप्रतिम ज़ाकिर नाईक - देखो देखो, हिंदू धर्म में भोजन की प्रतिमा नही होती, भोजन का फोटू निकालना हिंदू धर्म के खिलाफ है, अहमदतूलुल्लीहिला
@piyushdevnath293 Жыл бұрын
Madarsa logic
@NextSuperStar100 Жыл бұрын
समझा नही मैं कौन क्या किसकी तरफ है आप। आसान समझाये
@ravaldipakkumar3767 Жыл бұрын
पंडितजी, प्रतिमा शब्द का प्रकरण अनुसार पूर्व अपर संबंध से उचित अर्थ निश्चित कर के बताइए ।
@ijaan108 Жыл бұрын
Sir, i would like to know the meaning of bhuranyu... can it be kept as a name and whats the meaning... pls do help
@aniltiwary7032 Жыл бұрын
Superb!
@caarvaak Жыл бұрын
🙏
@vedicsanatan417 Жыл бұрын
aapko thoda pdhna chaiya pehla maharishi ka bhasya sanskrit mai hai hindi mai nhi yh pehla puri jankari lekr aayiya fr bola kra.
@HinduPhoenix Жыл бұрын
कौन महर्षि? वो भंगेड़ी दयानंद वो तो नन्ही जान के साथ कुछ करते हुए पकड़ा गया था ना, तो जहर खा के आत्महत्या कर लिया था🤣🤣
@vedicsanatan417 Жыл бұрын
@@HinduPhoenix beta tum jaisa log na tbhi 12 bhe pass nhi kr pata kuch jakr pdh likh liya kro.
@puneetchitkara7179 Жыл бұрын
Agni can take any shape - this is fine... but where does this connote that God has a form? Even if it is UpmaaN... then even MURTI is UpmaaN
@sudhanshuswami2304 Жыл бұрын
प्रति : in front of. सामने, मा : नहीं है . प्रतिमा : क्या इसका अर्थ यह हो सकता है कि 1 उसके सदृश्य कोई नहीं है ... २ ऐसा कुछ भी "नहीं" है जो उसके "सामने" ना हो ???? अर्थात वह सर्वव्यापी है, सर्वज्ञानी है ???
@madhavpratapsingh8274 Жыл бұрын
👍🏽
@sidharthasatapathy3491 Жыл бұрын
🕉❤🙏
@AryanTheNoble Жыл бұрын
इस विषय पर स्वामी दयानन्द सरस्वती के प्रत्येक शास्त्रार्थ में तो दूसरे सब विद्वान पराजित हुए।