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hello dosto नमस्ते आदाब राम राम सतसियकाल
तो भाइयो आज आपको इस वीडोयो की माध्यम से कुछ नशलो का शौंक करायेगे ।
इस बीडीयो मे दारा नगर गंज के अख्तर भाई की छत ओर नायब नस्ल का शौंक और इनकी छत पर कई प्रकार की नस्ल हैं इनके कबूतर की उड़ान का रिजल्ट बहुत हि बढ़िया है
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कबूतरों को पालतू बनाए जाने का सबसे पुराना उल्लेख मिस्र के पांचवे राजवंश (लगभग 300 ई.पू) से मिलता है। 1150 ई. में बग़दाद के सुल्तान ने कबूतरों की डाक व्यवस्था शुरू की थी और चंगेज़ ख़ां ने अपने विजय अभियानों के विस्तार के साथ ऐसी ही प्रणाली का उपयोग किया था। 1848 की क्रांति के दौरान यूरोप में संदेश वाहक के रुप में कबूतरों का व्यापक इस्तेमाल हुआ था और 1849 में बर्लिन व ब्रूसेल्स के बीच टेलीग्राफ़ सेवा भंग होने पर कबूतरों को ही संदेश वाहक रुप में प्रयुक्त किया गया था। 20 वीं शताब्दी में भी युद्धों के दौरान कबूतरों को आपात संदेश ले जाने के लिए इस्तेमाल किया गया। अमेरिका के आर्मी सिगनल कॉर्प्स के कबूतर की उड़ान का कीर्तिमान 3,700 किलोमीटर का है।
प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध में सामने आया है कि कबूतरों के कानों के आंतरिक भाग में पाई जाने वाली छोटी गांठों में मौजूद लोहे से भरपूर सामग्री को उनकी चुंबकीय क्षमता से जोड़ने की कोशिश की गई है.घर में रहने वाले कबूतरों और अन्य प्रवासी पक्षियों की आंखों के रेटिना में क्रिप्टोक्रोम नामक प्रोटीन होता है, जिससे वे जल्दी रास्ता ढूंढ पाते हैं. वहीं, एक चुंबकीय क्षमता होती है, जिससे वो आसानी से घर वास लौट पाते हैं. कुछ बैक्टीरिया होते हैं, जो बैक्टीरिया चुंबकीय कण उत्पन्न करते हैं और स्वयं को पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ जोड़े रखते हैं.