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नीलकंठ महादेव पैदल यात्रा | Neelkhanth Mahadev Rishikesh | Neelkhanth Mahadev Temple | AkashSanatani
नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, इसका रास्ता ऋषिकेश से जाता है जहां से मंदिर जाने के लिए दो मार्ग है एक पैदल और एक मोटर मार्ग.. पैदल मार्ग 12km का है जो की जानकी झूला ऋषिकेश से शुरू होता हैं… ये पौड़ी गढ़वाल ज़िले में आता है यहाँ भोले के भक्तों की असीम आस्था है साल भर में लाखों शिवभक्त यहाँ मंदिर में दर्शन करने आते है..
नीलकंठ महादेव मंदिर
गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। उसी समय उनकी पत्नी, पार्वती ने उनका गला दबाया जिससे कि विष उनके पेट तक नहीं पहुंचे। इस तरह, विष उनके गले में बना रहा। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था। गला नीला पड़ने के कारण ही उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।
स्थिति
नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश से लगभग 3500 फीट की ऊँचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। सदियों पुराने मंदिर अपनी आकाशीय आभा और पौराणिक महत्व को संजोय रखे हैं। नीलकंठ महादेव स्वर्गश्राम से 22 किमी दूर है। 12 कि.मी. ट्रैक्केबल सड़क घने जंगलों से घिरी हुई है । सिंचाई और वन विभाग के विश्राम गृह यहाँ पर उपलब्ध है।
विशेषता
नीलकंठ महादेव मंदिर की नक़्क़ाशी देखते ही बनती है। अत्यन्त मनोहारी मंदिर शिखर के तल पर समुद्र मंथन के दृश्य को चित्रित किया गया है और गर्भ गृह के प्रवेश-द्वार पर एक विशाल पेंटिंग में भगवान शिव को विष पीते हुए भी दिखलाया गया है। सामने की पहाड़ी पर शिव की पत्नी, पार्वती जी का मंदिर है
सावन का महीना हिंदू पंचांग या कैलेंडर के अनुसार पांचवा महीना होता है। यह महीना वर्षा ऋतु के अंतर्गत आता है। साथ ही यह चतुर्मास के दौरान भी आता है जब भगवान विष्णु और शिव दोनों ही शयन में चले जाते है। ऐसे में सावन के महीने में शिव पूजन का महत्व और बढ़ जाता है। क्योंकि शिव तो सो जाते हैं लेकिन सोने से पहले संपूर्ण सृष्टि के संचालन का दायित्व भगवान शिव रुद्र को सौंप देते हैं। इस दौरान रुद्र अकेले ही भगवान विष्णु और शिव दोनों के ही कार्यभार का संचालन करते हैं। इसलिए सावन में शिव की पूजा का विशेष महत्व बताया जाता है।
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जय माँ गंगे , हर हर गंगे
हर हर महादेव
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