हर एक नदियां के होठों पर समंदर का तराना है तुम्हारे और मेरे बीच यह फिर से जमाना है हमें दो पल सुरूर ए इश्क में मदहोश रहने दो तुम ही कहते थे यह मसले नजर सुलझी तो सुलझेंगे नजर की बात है तो यह लब खामोश रहने दो अभी चलता हूं मैं रास्ते को मंजिल मान लूं मैं कैसे मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मान लूं कैसे तुम्हारे याद किया वह दिन अंधेरे मुझको घेरे हैं तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लूं कैसे