पाटन देवी शक्तिपीठ तुलसीपुर - यहाँ गिरा था माता सती का बाँया कंधा पाटंबर के साथ | 4K | दर्शन 🙏

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Tilak

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भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और हार्दिक अभिनन्दन! भक्तों आज हम आपको अपने लोकप्रिय कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से जिस मंदिर की यात्रा करवाने जा रहे हैं उसका सीधा संबंध देवी सती, भगवान शिव, गोखक्षनाथ के पीठाधीश्वर गुरु गोरक्षनाथ जी महराज सहित दानवीर कर्ण से है। भारत और नेपाल की सीमा में स्थित ये मंदिर भारत ही नहीं नेपाल के लोगों की श्रद्धा भक्ति और आस्था केंद्र है। जागृत शक्तिपीठ माना जानेवाला ये मंदिर है पाटेश्वरी अर्थात पाटन देवी मंदिर!
मंदिर के बारे में:
भक्तों पाटन देवी मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के बलरामुर जिला में है। यह मंदिर बलरामपुर जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित तुलसीपुर नामक स्थान पर है। जो भारत और नेपाल सीमा के पास से लगा हुआ है। ये मंदिर सम्पूर्ण भारत में सुविख्यात व् सुप्रसिद्ध माता मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की गणना माता जगतजननी के 51 शक्तिपीठों के रूप की जाती है।
पौराणिक कथा:
भक्तों! पुराणों के अनुसार- भगवान शिव की विवाह माता सती से हुआ था माता सती के पिता का नाम राजा दक्ष था वो अपने जामाता भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था। इसलिए जब दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया तो उन्होंने भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा। यह जानकर माता सती को बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने पिता के पास जाकर से इस अपमान का कारण पूछने हेतु भगवान शिव से आज्ञा मांगी। किन्तु भगवान शिव ने उन्हें वह जाने से मना कर दिया। किन्तु माता सती के बार बार आग्रह करने पर शिव जी ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी। जब सती बिना बुलाए यज्ञस्थल में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें अपमानित करते हुए भगवान शिव को भी भला बुरा कहा। जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने यज्ञकुंड में कूद कर आत्मदाह कर लिया। इससे भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने यज्ञकुंड से माता सती के शव को निकालकर चारों ओर तांडव करने लगे। जिससे महाप्रलय की स्थिति उत्पन्न हो गयी और समूचे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। तब सभी लोग भगवान विष्णु के पास भागे। भगवान विष्णु, भगवान् शिव को शांत करने के उद्देश्य से अपने सुदर्शन चक्र द्वारा माता सती के शव को 51टुकड़ों में विभक्त कर दिया। ये टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वहां वहां शक्तिपीठ बन गए। मान्यता है कि तुलसीपुर पाटन देवी मंदिर में माता सती का वाम स्कंध यानि बांया कंधा पाटंबर के साथ गिरा था।
माता सीता यहीं से गई थीं पाताल:
भक्तों पाटन देवी मंदिर का दूसरा नाम पातालेश्वरी देवी भी है। माँ के पातालेश्वरी नाम के पीछे की मान्यता यह है कि माता सीता रामायण काल में निंदा से परेशान होकर इस स्थान पर धरती माता की गोद में बैठकर पाताल में समा गई थी। इसी पातालगामी स्थान पर पातालेश्वरी माता का मंदिर स्थापित किया गया था। वो सुरंग आज भी मंदिर के गर्भगृह में स्थित है। जिसे चांदी के चबूतरे से ढंक दिया गया है।
मंदिर का निर्माण:
भक्तों देवी पाटन सिद्धपीठ की स्थापना नाथ सम्प्रदाय के गुरु गोरक्षनाथ द्वारा की गयी थी। वर्तमान मंदिर का निर्माण सर्वप्रथम महाराजा विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया था तत्पश्चात मंदिर का जीर्णोद्धार 11 वीं शताब्दी में श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव जी ने कराया था।
मंदिर का गर्भगृह:
भक्तों पाटन देवी मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं थी। मान्यता है कि गर्भगृह के मध्य में जहाँ चांदी का चबुतरा बना है। उसी स्थान पर माता सीता पाताल में समाई थी। चांदी के चबूतरे के नीचे एक सुरंग है जिसके बारें में कहा जाता है कि यह सुरंग पाताल तक जाती है। कालांतर समय समय पर कई राजाओं द्वारा पाटन देवी मंदिर का जिर्णोद्वार करवाया। उन्ही में से किसी राजा ने चांदी के चबूतरे के पीछे आदिशक्ति जगदम्बा की 10 भुजाओं वाली मूर्ति की स्थापना करवा दी।
सूर्यकुण्ड:
भक्तों देवीपाटन मंदिर परिसर में उत्तर की तरफ एक विशाल कुण्ड है जिसे सूर्यकुण्ड कहा जाता है। मान्यता है कि इस कुंड का निर्माण महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण ने तब किया था जब वो महर्षि परशुराम जी से धनुर्वेद की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। कर्ण इसी कुंड में स्नान कर भगवान सूर्य की आराधना करते थे। इसीलिए इस कुण्ड को सूर्यकुण्ड के नाम से जाना जाता है। कुंड को लेकर जनसामान्य की धारणा है कि इस कुण्ड में स्नान करने से शरीर पर होनेवाले कुष्ठ रोग व चर्मरोग ठीक हो जाते है।
उत्सव व् त्यौहार:
भक्तों पाटन देवी मंदिर में सभी त्यौहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाये जाते है किन्तु आश्विन व् चैत्र नवरात्रों और दुर्गा पूजा के अवसर पर यहाँ विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। त्यौहार के दिनों में न केवल इस मंदिर को पुष्प मालाओं व लाईट मल्लिकाओं से सजाया जाता है बल्कि मंदिर में अनेकानेक धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। इस दौरान यहाँ लाखों भक्त देवी का दर्शन करने आते हैं।
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन ! 🙏
इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
श्रेय:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
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啊?就这么水灵灵的穿上了?
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一航1
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Mr DegrEE
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