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जब आदमी दुखी होता है तब उसे ज्ञान होता है कि उसने पाप कर्म किया है। मनुष्य में उपजी वासनाएँ उसे पाप कर्म करने को प्रेरित करती हैं। यह बड़ी विचित्र बात है कि जिस कर्म से अहंकार बढ़े वह देखने में पुण्य प्रतीत होने पर भी पाप हो जाता है। इसके विपरीत जिससे अहंकार की निवृत्ति हो वह देखने में पाप होने पर भी पुण्य हो जाता है।
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