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" पूर्णकाम होने का बिशेष उपाय "
इन्द्रियाँ यह देह छोड़कर कंही चले नहीं जाएगी। साधु - सन्तों के साथ भी रहते हैं और साधारण लोगों के साथ भी रहती हैं। इन दोनों में से तफावत यहीं की साधु-सन्तों सतत जाग्रत तथा सावधान रहते हैं , इन्द्रियाँ को शासन करते चलता है, इसलिए इन्द्रियाँ उनके कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते। और साधारण लोगों की जागृति नहीं रहने की कारण उन्होंने इन्द्रियों के बश में हो जाते है, और इन्द्रियों को पोषण य तुष्ट करते चलता है यानी पोषण अर्थात पालते हुए चलता है और दुःख ही दुःख को प्राप्त होता है। केवल इतना ही तफावत हैं। परन्तु इन इन्द्रियों का सदुपयोग करना या सदुपयोग में लगाना ही मनुष्य का कर्तव्य है। जैसी -
चक्षुको अनन्त वाप्यी प्रकाश स्वरुप ब्रह्म या परमात्मा को दिखाने के काम में लगा दो।
कान को दिव्य अनाहतनाद अनन्त वाप्यी ॐकार ध्वनि सुनने के काम में लगा दो।
नाक को प्राणायाम के काम में और दिव्यलोक की सुगंध को सूँघने के काम में लगा दो।
त्वगिन्द्रिय को दिव्य स्पर्श के अनुभव करने के काम में लगा दो।
दिव्य अमृत का स्वाद तब प्राप्त होगा, जब जिभ राजिका में चली जाएगी। बिशेष प्रयत्न के द्वारा जिभ को राजिका के भीतर लगाकर वह अमृत प्राप्त होकर दिव्य स्वाद लेने के काम में लगा दो।
यह अमृत खोपडी के भीतर स्थित सहस्रदल पदम से सतत क्षरण होता चलता है।
अभी तुम उस पंच ज्ञानेन्द्रियों को अपने अपने काम में लगाकर खुद अर्थात स्वयं अनन्त प्रकाश स्वरुप ब्रह्म व परमात्मा के रूप में स्थित हो जाओ। सम्पूर्ण स्वतंत्र एकक शाक्षी स्वरुप हो जाओ।
.................. स्वामी सर्वानन्द
पुस्तक (Book):
( स्वामी सर्वानन्द की अमृतधारा
एवं
कुछ छंदोबद्ध कवितागुच्छो )
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"Shri Guru Dham", Swami Sarvananda Sevashram, Yogoda satsanga, Vadia, Amreli, Gujarat-365480, India.