सत्य का ज्ञान बिना मुक्त नहीं हो सकते ज्ञान बिना पंचों इंद्रियों वश या सहज नहीं हो सकती ज्ञान के बिना किया हुआ सब कार्य या कर्मकाण्ड फोगट हे ज्ञान बगर अहंकार पिघलता नहीं हे मन भी वश नहीं होता ज्ञान ही सर्वोपरि हे शिखर हे अमृत का सागर अखंड अजर अमर अविनाशी हे। देह मरती हे लेकिन ज्ञान अमर हे तीनों काल में मौजूद हे ज्ञान से मुक्ति पाई जाती हे ज्ञान अमर ऊर्जा हे अपना खुद का स्वरूप हे स्वयं प्रकाशित हे शाश्वत हे ज्ञान गुणी हे स्वरूप। ज्ञानाकार हे स्वरूप। सुध बुध पवित्र निर्मल सुगंधित मधुर कोमल स्वरूप हे अपना एक भी दाग़ नहीं लगा हे सब घट में रदय में वास हे चेतन जीव स्वरूप का सब से पर हे। सब का बाप हे अंतकरण से भी पर। अलग। न्यारा हे सब को जानकर सब से अलग हे रहता हे। ज्ञान स्वरूपों। देह में रहकर देह से भिन्न अलग हे चेतन जीव अखंड हे एक अखंड से _ _ _ अनंत खंड बने हे ब्रह्माण्ड का विस्तार चेतन जीव स्वरूप अखंड हे मन अंतकरण खंडित हे नाशवंत हे
@n.u.t.s843224 күн бұрын
Bhut badhiya ,,lekin ab karen to kya karen kya ye samnjhte hue sukh dukh ko bhogte rahen
@goodgreatlife24 күн бұрын
नहीं, इसके अनुसार आगे की राह बनाए, की क्या वास्तव में इस सुख की इतनी कीमत चुकाने को तैयार है आप, और जहां घटा सके उतना घटा दे, यह अपने आप होता जाएगा जैसे जैसे मन की कार्यप्रणाली सामने आएगी । शरीर को भोगने दीजिए मांगे तो मन से न पकड़िए, मन भी अगर न माने तो वहां मध्य मार्ग खोजे स्वयं के अनुसार, यह जितना जानेंगे उसके अनुसार आप ढल जाएंगे करना नहीं पड़ेगा