विचारणीय है कि बिना सम्यक दर्शन के एवं आचार्य आदि पद पर रहते हुए,आगम में समाधि मरण नहीं माना गया है।
@ankitjain722824 күн бұрын
परम् पूज्य धरती के देवता आचार्य भगवान विराग सागर जी महाराज ने अपने पद का त्याग कर सभी जीवों से क्षमा मांगते हुए वा क्षमा करते हुए आचार्य भगवान विशुद्ध सागर जी को अपना पद दिया और सबसे बड़ी बात ये है कि ये सब चोरी छिपे नहीं हुआ आचार्य श्री ने खुद बोला वीडियो बनवाया और इस साक्षात वीडियो के माध्यम से ही वो जानकारी खुद आचार्य श्री ने घोषणा की। आचार्य श्री की इतना ज्यादा चेतना थी और इतने दूरदर्शी थे धन्य है आचार्य श्री।
@atishaymodi569224 күн бұрын
आप केवली है क्या जो किसी के सम्यक दर्शन के होने नहीं होने का प्रमाण देगे। श्रावक के भावलिंग और द्रव्यलिंग पर भी विचार व्यक्त करे और स्वयं के श्रावक धर्म का परिचय दे। आचार्य श्री ने पद का त्याग किया था और पट्टाचार्य का स्पष्ट नाम उल्लेखित किया है। आपसे निवेदन है कि किसी भी विषय में पूर्ण जानकारी होने पर ही सोशल मीडिया पर जिन शासन और संघों के प्रति लिखे । आपके केवल्य में स्वयं के श्रावक धर्म का भी ज्ञान होगा।विचार करे
@atishaymodi569224 күн бұрын
@@ankitjain7228ये महोदय आचार्य के सम्यक दर्शन का प्रमाण दे रहे ।पता नही पंचम काल में कबसे केवल ज्ञान होने लगा । ये तो पक्का है महोदय अभी मिथ्या दर्शन में हैं
@ankitjain722824 күн бұрын
@@atishaymodi5692 आगम में ये उल्लेख जरूर है की किसी जीव की दुर्गति निश्चित हो चुकी है तो उसकी सोच उसकी भावना सभी मुनिराजो के लिए कभी सम्यक नही हो सकती । ऐसे जीव दया के पात्र है बेचारे ।