हे परमपिता! जब मैं अन्धा था तब मुझे आप तक ले जाने वाला एक भी द्वार न मिला। आपने मेरी आँखें ठीक कर दी हैं; अब मैं सर्वत्र द्वारों को देखता हूँ : फूलों के हृदयों में, मित्रता की वाणियों में, सुन्दर अनुभवों की स्मृतियों में। मेरी प्रार्थना का प्रत्येक झोंका आपकी उपस्थिति के विशाल मन्दिर के एक नये प्रवेश - द्वार को खोल देता है।