फ्रांस से आये अतिथि का वक्तव्य l Vaidic Physics

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Vaidic Physics

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Күн бұрын

Пікірлер: 20
@sanjoyupadhyay1055
@sanjoyupadhyay1055 7 күн бұрын
ऋषिवर आपके छांव में अद्भुत विद्वानों का सत्संग हुआ।वक्ता के शोध और विद्वता को प्रणाम।स्वर व्यंजन, ध्यान और ब्रह्मांड की व्याख्या अति सुंदर है।
@sudeshsaini3291
@sudeshsaini3291 8 күн бұрын
कोटि कोटि प्रणाम आचार्य जी ❤
@sudeshsaini3291
@sudeshsaini3291 8 күн бұрын
सादर नमस्ते आर्य जनों ❤❤❤❤
@Aryaji-r8p
@Aryaji-r8p 8 күн бұрын
जय मां वेद भारती।
@yagyabhushansharma1008
@yagyabhushansharma1008 8 күн бұрын
अदभुत ज्ञान प्रवाह का स्तोत्र है वैदिक फिजिक्स।
@yugaditya4768
@yugaditya4768 8 күн бұрын
नमस्ते परम आदरणीय ऋषिवर सोमदत्त शर्मा जी।
@nilotpalsarmahsarma8344
@nilotpalsarmahsarma8344 8 күн бұрын
प्रणाम
@AKARYA998
@AKARYA998 8 күн бұрын
Bahut bahut dhanyawad guru Ji 🙏
@raniebiharie950
@raniebiharie950 8 күн бұрын
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
@milindkumar7233
@milindkumar7233 8 күн бұрын
जय हो
@jhamkrajthapaliya386
@jhamkrajthapaliya386 8 күн бұрын
ओ३म् तत्सत्
@वैदिकयोगशाला
@वैदिकयोगशाला 8 күн бұрын
अति सुंदर
@Nandlalshaw211
@Nandlalshaw211 8 күн бұрын
सादर नमस्ते एवं धन्यवाद स्वामी जी
@varun7104
@varun7104 17 сағат бұрын
🕉️
@deepakkumarpatel8933
@deepakkumarpatel8933 8 күн бұрын
नमस्ते
@ajitkumarsingh2654
@ajitkumarsingh2654 8 күн бұрын
प्रोफेसर सी के राजू के अनुसार पाइथागोरस नाम का कोई व्यक्ति नहीं था । पाइथागोरियन लोगों का समाज था। इस बात की पुष्टि के लिए प्रोफेसर सी के राजू के यूट्यूब वीडियो को देखा जा सकता है।
@ashish_aryavrat
@ashish_aryavrat 8 күн бұрын
🙏🙏🙏
@arvindbhaipatel7802
@arvindbhaipatel7802 8 күн бұрын
નમસ્તે સ્વામીજી
@ramvir5665
@ramvir5665 8 күн бұрын
एक विनति के साथ बात प्रारम्भ करना चाहूंगा, विनति यह है कि टिप्पणी को वक्ता की बात के खण्डन के रूप में न समझा जाए, विषय के विस्तार के रूप में ही लिया जाए - विस्तार की दिशा भिन्न हो सकती है। 'स्वर्यस्य च केवलं..' के 'स्व:' (सन्धि में विसर्ग का रेफ) और वर्णमाला के अकारान्त 'स्वर' को अभिन्न मानना वैसा ही है जैसा रामपाल द्वारा 'कविर्मनीषी परिभू:..' के 'कवि:,कविर्' से वेद में 'कबीर' खोद निकालना! सन्धिज भ्रम से विद्वानों के बहक जाने की घटना का उल्लेख प्रासंगिक होगा। भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता की पत्रिका वागर्थ के सम्पादकीय में पढा 'एक पुस्तक है कुम्भीलोपाख्यान, इसमें कुम्भीलोप नामक बाबा की कहानी है'। पुस्तक मेरी पढी हुई थी, पुस्तक का विषय है प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकारों के ग्रन्थचौर्य (plagiarism) के उदाहरण और प्रमाण। लेखक द्वारा दिए पुस्तक नाम कुम्भीलोपाख्यान का सन्धिच्छेद है - कुम्भील+उपाख्यान, कुम्भील अर्थात् सेंधमार,चोर। साहित्यिक कुम्भीलों के किस्सों में सन्धिज भ्रम के कारण विद्वान् सम्पादक को कुम्भीलोप बाबा नजर आ गया जब कि बाबा का कोई बीज कुम्भीलोपाख्यान में है ही नहीं। सम्पादक स्व. प्रभाकर श्रोत्रिय जी की सज्जनता स्मरणीय है, उन्होंने न केवल मेरे पत्र का उत्तर दिया अपितु पत्रिका में अपनी त्रुटि के लिए खेद भी प्रकाशित किया। वीडियो ज्ञानवर्धक और भारतीय मनीषा की श्रेष्ठता का प्रकाशक है। विद्वान् वक्ता को हार्दिक बधाई। वीडियो का थम्बनेल वर्तमान भारतीय मानसिकता की ओर भी एक संकेत है और मेरे संकेत से कोई क्या समझता है यह व्यक्ति पर निर्भर है। -- डाॅ. रामवीर, फरीदाबाद 9911268186
@trackchamp6324
@trackchamp6324 8 күн бұрын
जय मां वेद भारती 🙏🙏
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