ऋषिवर आपके छांव में अद्भुत विद्वानों का सत्संग हुआ।वक्ता के शोध और विद्वता को प्रणाम।स्वर व्यंजन, ध्यान और ब्रह्मांड की व्याख्या अति सुंदर है।
@sudeshsaini32918 күн бұрын
कोटि कोटि प्रणाम आचार्य जी ❤
@sudeshsaini32918 күн бұрын
सादर नमस्ते आर्य जनों ❤❤❤❤
@Aryaji-r8p8 күн бұрын
जय मां वेद भारती।
@yagyabhushansharma10088 күн бұрын
अदभुत ज्ञान प्रवाह का स्तोत्र है वैदिक फिजिक्स।
@yugaditya47688 күн бұрын
नमस्ते परम आदरणीय ऋषिवर सोमदत्त शर्मा जी।
@nilotpalsarmahsarma83448 күн бұрын
प्रणाम
@AKARYA9988 күн бұрын
Bahut bahut dhanyawad guru Ji 🙏
@raniebiharie9508 күн бұрын
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
@milindkumar72338 күн бұрын
जय हो
@jhamkrajthapaliya3868 күн бұрын
ओ३म् तत्सत्
@वैदिकयोगशाला8 күн бұрын
अति सुंदर
@Nandlalshaw2118 күн бұрын
सादर नमस्ते एवं धन्यवाद स्वामी जी
@varun710417 сағат бұрын
🕉️
@deepakkumarpatel89338 күн бұрын
नमस्ते
@ajitkumarsingh26548 күн бұрын
प्रोफेसर सी के राजू के अनुसार पाइथागोरस नाम का कोई व्यक्ति नहीं था । पाइथागोरियन लोगों का समाज था। इस बात की पुष्टि के लिए प्रोफेसर सी के राजू के यूट्यूब वीडियो को देखा जा सकता है।
@ashish_aryavrat8 күн бұрын
🙏🙏🙏
@arvindbhaipatel78028 күн бұрын
નમસ્તે સ્વામીજી
@ramvir56658 күн бұрын
एक विनति के साथ बात प्रारम्भ करना चाहूंगा, विनति यह है कि टिप्पणी को वक्ता की बात के खण्डन के रूप में न समझा जाए, विषय के विस्तार के रूप में ही लिया जाए - विस्तार की दिशा भिन्न हो सकती है। 'स्वर्यस्य च केवलं..' के 'स्व:' (सन्धि में विसर्ग का रेफ) और वर्णमाला के अकारान्त 'स्वर' को अभिन्न मानना वैसा ही है जैसा रामपाल द्वारा 'कविर्मनीषी परिभू:..' के 'कवि:,कविर्' से वेद में 'कबीर' खोद निकालना! सन्धिज भ्रम से विद्वानों के बहक जाने की घटना का उल्लेख प्रासंगिक होगा। भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता की पत्रिका वागर्थ के सम्पादकीय में पढा 'एक पुस्तक है कुम्भीलोपाख्यान, इसमें कुम्भीलोप नामक बाबा की कहानी है'। पुस्तक मेरी पढी हुई थी, पुस्तक का विषय है प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकारों के ग्रन्थचौर्य (plagiarism) के उदाहरण और प्रमाण। लेखक द्वारा दिए पुस्तक नाम कुम्भीलोपाख्यान का सन्धिच्छेद है - कुम्भील+उपाख्यान, कुम्भील अर्थात् सेंधमार,चोर। साहित्यिक कुम्भीलों के किस्सों में सन्धिज भ्रम के कारण विद्वान् सम्पादक को कुम्भीलोप बाबा नजर आ गया जब कि बाबा का कोई बीज कुम्भीलोपाख्यान में है ही नहीं। सम्पादक स्व. प्रभाकर श्रोत्रिय जी की सज्जनता स्मरणीय है, उन्होंने न केवल मेरे पत्र का उत्तर दिया अपितु पत्रिका में अपनी त्रुटि के लिए खेद भी प्रकाशित किया। वीडियो ज्ञानवर्धक और भारतीय मनीषा की श्रेष्ठता का प्रकाशक है। विद्वान् वक्ता को हार्दिक बधाई। वीडियो का थम्बनेल वर्तमान भारतीय मानसिकता की ओर भी एक संकेत है और मेरे संकेत से कोई क्या समझता है यह व्यक्ति पर निर्भर है। -- डाॅ. रामवीर, फरीदाबाद 9911268186