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मान्यता है, श्रीहरि के कंठ से लेकर नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार स्थित नारायणी शिला के रूप में पूजा जाता है। पितृ पक्ष में अमावस्या के दिन तक श्राद्ध किए जा सकते हैं। हरिद्वार नारायणी शिला में पितरों के पिंडदान का अधिक महत्व है। मान्यता है कि यहां पितरों का पिंडदान और तर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।