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श्रेय:
संगीत- सूर्या राज कमल
लेखक - याचना अवस्थी
भक्तों, आप सभी का हमारे लोकप्रिय यात्रा कार्यक्रम दर्शन में हार्दिक अभिनन्दन... हम आपको अपने इस कार्यक्रम के माध्यम से विभिन्न ऐतिहासिक एवं पौराणिक तीर्थ स्थलों व मंदिरों की यात्रा करवाते आये हैं... धार्मिक एवं सांस्क्रतिक रूप से सम्रध हमारे देश के, ये वो तीर्थ स्थान है जो विश्व के कोने कोने से श्रधालुओं एवं पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं...इन्ही पौराणिक स्थलों में हम आपको आज एक ऐसे धार्मिक एवं पवित्र स्थल की यात्रा पर लेकर जा रहे हैं... जिसके कण कण में भगवान् श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण जी का स्पर्श है...हम आपको दर्शन करवाने जा रहे हैं पवित्र एवं पौराणिक स्थल चित्रकूट में स्थित श्री राम भक्त हनुमान जी के स्थान “हनुमान धारा” के...
मंदिर के बारे में:
भक्तों, हनुमान जी के पंचमुखी रूप को समर्पित हनुमान धारा मंदिर, भगवान श्रीराम की तपोस्थली रहे पवित्र स्थल चित्रकूट में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की करवी (कर्वी) तहसील तथा मध्यप्रदेश के सतना जिले की सीमा पर स्थित है। चारों ओर से विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी भी कहा जाता है... यहाँ विराजमान हनुमान जी की विशाल प्रतिमा को स्पर्श करता हुआ निरंतर जल धारा का जल बहता रहता है इसलिए इस स्थान को हनुमान धारा के नाम से जाना जाता है...जिसको देखकर श्री राम जी की अपने भक्त शिरोमणि हनुमान जी पर असीम कृपा का संकेत मिलता है...पहाड़ी पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुँचने के लिए श्रधालुओं को कहीं पर खड़ी व कहीं पर घुमावदार 360 सीढ़ियों को चढ़कर जाना होता है.. ये सीढ़ियाँ जहाँ से शुरू होती हैं वहां पर आपको भोग - प्रसाद फूल - फल की कई सारी दुकाने मिलती है जहाँ से भक्त हनुमान जी को अर्पित करने के पूजा सामग्री खरीद कर सीढ़ियों की और बढ़ते हैं इन सीढ़ियों की शुरुआत में ही आपको हनुमान जी के साक्षात रूप माने जाने वाले वानरों की सेना अर्थात बन्दर इधर उधर उछलते कूदते दिखने लगते हैं... सीढ़ियों के प्रवेश द्वार पर एक तरफ हनुमान जी की मूर्ति एवं दूसरी तरफ गणेश जी की मूर्ति के दर्शन होते है।
हनुमान धारा मंदिर तक पहुँचने के लिए रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है। अगर किसी को सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी होती है, तो वह रोपवे के द्वारा भी हनुमान धारा में हनुमान जी के दर्शन करने के लिए जा सकता है।
मंदिर का इतिहास:
भक्तों, हनुमान धारा मंदिर के प्राकट्य से सम्बंधित एक प्रचलित कथा के अनुसार - लंका दहन के पश्चात हनुमान जी के शरीर में अत्यधिक तपन रहती थी... इस दौरान भगवान् श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद उनकी चरण सेवा में रहते हुए एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्री रामचंद्र जी से प्रार्थना की, कि वे उन्हें उनके शरीर में तपन से हो रहे कष्ट से उन्हें मुक्त होने का उपाए बताएं... तब भगवान श्रीराम ने मुस्कुराते हुए हनुमान जी को चित्रकूट पर्वत पर जाने का मार्ग दिखाया.. जहाँ पर उनके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से उनके शरीर में हो रहे तपन के कष्ट से उन्हें मुक्ति मिल जाएगी।’
इसके पश्चात हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का 1008 बार पाठ किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ, ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गयी। जलधारा के शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा हनुमान जी के बाईं ओर निरंतर गिरती रहती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है। वर्ष के 365 दिन निरंतर बहने वाला यह जल शीतल एवं स्वच्छ है। यह जल कहां से आता है इसकी जानकारी आज तक किसी को नहीं हुई । धारा का यह जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। जिसे लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं।मान्यता है यदि किसी व्यक्ति को दमा की बिमारी है तो यह जल पीने से काफी लोगों को लाभ मिला है। हनुमान धारा के के दर्शन से हर व्यक्ति तनाव से मुक्त हो जाता है तथा उसकी सभी मनोकामनाएं हनुमान जी पूर्ण करते हैं...
मंदिर परिसर:
भक्तों, हनुमान धारा मंदिर पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित है। मंदिर में पंचमुखी हनुमान जी के अतिरिक्त श्री राम, सीता ,लक्षमण जी का भी मंदिर है..मंदिर के बाहर से देखने पर चारों और बिखरा प्राक्रतिक सौन्दर्य यहाँ आने वाले सभी भक्तों का मन मोह लेता है..इस मंदिर तक आने वाली सीढ़ियों में थोड़ी थोड़ी दूर पर हनुमान जी एवं श्री राम, सीता, लक्ष्मण जी के छोटे छोटे मंदिरों के दर्शन होते हैं यहाँ शनिदेव जी का भी मंदिर है... सीढ़ियों से जैसे जैसे ऊपर की और जाते हैं मंदिर के आस पास का दृश्य बहुत ही मनोरम एवं मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है...पहाड़ के सहारे स्थित हनुमान जी की विशाल मूर्ति के ठीक सामने दो जल कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते...श्रधालुगण यहाँ सिंदूर और तेल में रचे-बसे हनुमान जी के दर्शनों से पहले नीचे बने कुंड में हाथ-मुंह धोकर स्वक्ष होना नहीं भूलते । यहाँ पर भक्तगणों द्वारा पंखा तथा अन्य दान की गई वस्तुओं के विषय में कई तरह के नाम लिखित पत्थर भी लगे हुए हैं... सीढ़ियों के मार्ग में ही एक नरसिंह धारा भी है...हनुमान धारा से ठीक 100 सीढ़ी ऊपर सीता रसोई है, जहां माता सीता ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जी के अतिरिक्त कई ऋषियों को भोजन बना कर खिलाया था। हनुमान धारा के इस मंदिर में मुख्य अवसरों के अतिरिक्त हर रोज़ दूर दूर से हनुमान जी के दर्शन को आये श्रधालुओं की भीड़ देखते ही बनती है...
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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