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लेखक: रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और बहुत बहुत अभिनन्दन! भक्तों! जैसा कि आप जानते हैं कि हम अपने लोकप्रिय कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से आपको भारत के सुप्रसिद्ध तीर्थों, धामों, देवस्थानों और मंदिरों की यात्रा करवाते हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे भव्य दिव्य अद्भुत और अनुपम धाम का दर्शन करवाने जा रहे हैं। जहाँ भगवान की दिव्य शक्तियों और चमत्कारों का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। जो अपनी इस दिव्यता के लिए देश - विदेश में प्रसिद्ध है। भक्तों हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम की।
बागेश्वर धाम के बारे में:
भक्तों बागेश्वर धाम मध्यप्रदेश के जिला छतरपुर के ग्राम गढ़ा में है। जो छतरपुर से लगभग 35 किमी दूर खजुराहो पन्ना मार्ग पर स्थित है। कहा जाता है कि बागेश्वर धाम कई तपस्वियों और सादकों की तपोभूमि है। यहाँ लगभग तीन सौ वर्ष प्राचीन बाला जी (हनुमान जी) की स्वयंभू मूर्ति विराजमान है। यह पूर्णतः हनुमान जी को समर्पित धाम है। बालाजी महाराज की कृपा और आशीर्वाद से यहाँ लोगों के सभी कष्टों और समस्याओं का निवारण केवल दर्शन मात्र से हो जाता है।
बागेश्वर धाम का इतिहास:
भक्तों बागेश्वर का इतिहास बहुत पुराना है। कभी यहाँ घनघोर जंगल था, यहाँ सैकड़ों हिंसक तथा नरभक्षी शेर और बाघ विचरण करते हुए यहाँ रहकर कुलांचे भरते हिरणों और मृगशावकों आहार करते थे, इसीलिये अनेकों ऋषि, मुनि और तपस्वी यहाँ आकर अपनी साधना और तपस्या करते थे।अतः बागेश्वर तपस्वियों की प्राचीनतम तपोभूमि भी है।
बागेश्वर शिव मंदिर:
भक्तों बागेश्वर धाम में लगभग १२०० वर्ष पुराना भगवान् शिव का मंदिर है जो बागेश्वर शिव मंदिर के नाम से प्रसिद्द है।इस शिव मंदिर का निर्माण तत्कालीन चंदेल राजाओं ने खजूरवाह यानि खजुराहो के मंदिरों का निर्माण के दौरान ही करवाया था। उस समय यहाँ कोई साधारण व्यक्ति यहाँ पूजा पाठ करने नहीं आ सकता था क्योंकि तब मंदिर के चारों तरफ बाघों और शेरों का साम्राज्य था इसलिए इस शिव मंदिर को बाघेश्वर शिव मंदिर कहा जाने लगा।बाघेश्वर मंदिर के कारण इस स्थान का नाम बाघेश्वर पड़ गया।जो कालांतर अपभ्रंश होकर बागेश्वर हो गया।
बागेश्वर बाला जी (हनुमान जी) का प्राकट्य:
भक्तों बागेश्वर धाम में विराजमान बाला जी (हनुमान जी) स्वयंभू हैं। इनका प्राकट्य लगभग तीन सौ वर्ष पहले प्रकट हुआ था। कहा जाता है कि उस समय परम तपस्वी और परम हनुमान भक्त भक्त सन्यासी बाबा इसी स्थानपर रहते हुए कलियुग के राजा हनुमान जी महाराज की साधना कर रहे थे।उनकी साधना से प्रसन्ना होकर हनुमान जी ने उन्हें यहाँ दर्शन दिया। हनुमान जी के दर्शन से अभिभूत सन्यासी बाबा ने अपने आराध्य हनुमान जी से यहीं विराजमान होने की प्रार्थना की।भक्तवत्सल हनुमान जी अपने भक्त सन्यासी बाबा की प्रार्थना स्वीकार करते हुए यहीं मूर्तिमंद हो गए।जहाँ कालांतर मंदिर बना दिया गया।
प्रेतराज वृक्ष:
भक्तों बागेश्वर धाम के प्रांगन में एक पेड़ है जिसे प्रेतराज वृक्ष कहा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भूत प्रेत और नकारात्मक ऊर्जा से ग्रस्त कोई व्यक्ति यदि इस प्रेतराज वृक्ष को छूता है, लिपटता है और आलिंगन करता हैं तो उसकी समस्त नकारात्मक ऊर्जा को ये प्रेतराज वृक्ष अपने अन्दर खींच लेता है।
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर:
भक्तों बागेश्वर धाम में लगभग 300 वर्ष पहले सन्यासी बाबा ने मानव कल्याण और जनसेवा की एक परंपरा शुरु की थी, उसे कई अन्य संतों ने आगे बढ़ाया लेकिन परम तपस्वी भगवान् दास जी महाराज अर्थात दादा गुरु जी साधना और तपस्या से यह धाम अनगिनत लोगों के कल्याण का केंद्र बन गया। अब इस लोक कल्याणी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं हनुमान जी महाराज के परमभक्त, जगतगुरु रामानन्दाचार्य तुलसी पीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य जी के कृपापात्र और श्री दादा गुरु जी महाराज के उत्तराधिकारी पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी, जिन्हें लोग बागेश्वर धाम सरकार के नाम से संबोधित करते हैं। जिनकी ख्याति की गवाही तो उनकी कथाओं और उनके दरबारों में लाखों श्रद्धालुओं भारी भीड़ देती है।
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री यानि बागेश्वर धाम सरकार का परिचय:
भक्तों पंडित धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री यानि बागेश्वर धाम सरकार का जन्म, 4 जुलाई 1996 को मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के ग्राम गढ़ा में गर्ग गोत्रीय सरयूपारीय ब्रह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता पंडित रामकृपाल गर्ग और माता श्रीमती सरोज गर्ग है। इनके एक भाई और एक बहन हैं। इनका बचपन अत्यधिक गरीबी और तंगहाली में बीता। कर्मकांडी ब्राह्मण होने के नाते पूजा पाठ में जो दक्षिणा मिल जाती उसी से येन केन प्रकारेण 5 लोगों का परिवार चलता। अतः अपनी शिक्षा भी अधूरी छोड़नी पड़ी। तीन भाई-बहन में सबसे बड़े होने के कारण इनका पूरा बचपन परिवार के भरण-पोषण की व्यवस्था करने में ही गुज़र गया।भक्तों कहा जाता है कि एक दिन बालाजी महाराज की आज्ञा और कृपा से उन्हें उनके दादा जी श्री भगवान दास जी यानि दादा गुरु जी ने उन्हें अपने सानिध्य में ले लिया। दादा गुरु के आशिर्वाद और आदेश से धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री श्री बालाजी (हनुमान जी) महाराज की सेवा में जुट गए। सन्यासी बाबा और इस धाम की महिमा को दुनिया भर में फैलाया और आज इसका नतीजा है धाम पर हर मंगलवार और शनिवार को पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालुओं की भीड़।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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