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चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की परंपरा में महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के द्वितीय शिष्य समाधिस्थ आचार्य कल्प 108 श्री विवेकसागर जी महाराज की पंचम शिष्या मेवाड़ की महाव्रती 105 आर्यिका श्री विज्ञान मति माताजी ने अपने अंतस में श्रद्धा- ज्ञान -चरित्र को समाहित करके जिन भक्ति सरिता की अनुपम लहरें समूची जन मेदनी के पाप - ताप - संताप को शीतल करने के लिए प्रवाहित की है |
आइए हम सभी उन लहरों में सराबोर होकर करें तन मन को शीतल |