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॥ ॐ श्री भगवत्यैनम: ॥
॥ जय भगवतिदेवि नमो वरदे ॥
हे वरदायिनी देवि ! हे भगवति ! तुम्हारी जय हो । हे पापोंको नष्ट करनेवाली और अनन्त फल देनेवाली देवि ! तुम्हारी जय हो ! हे शुम्भनिशुम्भके मुंण्डोंको धारण करनेवाली देवि ! तुम्हारी जय हो । हे मनुष्योंकी पीडा हरनेवाली देवि ! मै तुम्हे प्रणाम करता हुँ ॥ १ ॥ हे सूर्य-चन्द्रमारूपी नेत्रोंको धारण करनेवाली ! तुम्हारी जय हो । हे अग्निके समान देदीप्यमान मुखसे शोभित होनेवाली ! तुम्हारी जय हो । हे भैरव-शरीरमें लीन रहनेवाली और अन्धकासुरका शोषण करनेवाली देवि ! तुम्हारी जय हो, जय हो ॥ २ ॥ हे महिषासुरका मर्दन करनेवाली,शूलधारिणी और लोकके समस्त पापोंको दूर करनेवाली भगवती ! तुम्हारी जय हो । ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्रसे नमस्कृत होनेवाली देवि ! तुम्हारी जय हो, जय हो ॥ ३ ॥ सशस्त्र शङ्कर और कार्तिकेयजी द्वारा वन्दित होनेवाली देवि ! तुम्हारि जय हो । शिवके द्वारा प्रशंसित एवं सागरमें मिलनेवाली गङ्गारूपिणी देवि ! तुम्हारी जय हो । दु:ख और दरिद्रताका नाश तथा पुत्र-कलत्रकी वृद्धि करनेवाली हे देवि ! तुम्हारी जय हो, जय हो ॥ ४ ॥ हे देवि ! तुम्हारी जय हो । तुम समस्त शरीरोंको धारण करनेवाली, स्वर्गलोकका दर्शन करानेवाली और दु:खहारिणी हो । हे व्याधिनाशिनी देवि ! तुम्हारी जय हो । मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवाञ्छित फल देनेवाली अष्ट सिद्धियोंसे सम्पन्न परा देवि ! तुम्हारी जय हो ॥ ५ ॥ जो कहीं भी रहकर पवित्र भावसे नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्रका पाठ करता है अथवा शुद्ध भावसे घरपर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं ॥ ६ ॥ प्रीता भगवती सदा ॥ ॐ श्री भगवती देव्यै नम: ॥