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$ देव चालीसा $
।।श्री देवाय नमः।।
श्री गणेश सुमिरन करूँ, प्रथम पुष्परज लेव।
ध्यान तुम्हारा फिर धरूँ, हे कलियुग के देव।।दोहा।।
मतिमंद मोहि जानिके, करो क्षमा सब भूल।
जड़ता रोग विकार का, कर दो नाश समूल।।दोहा।।
।।चौपाई।।
जय भगवान देव गुण आगर।
धन बुद्धि विद्या बल सागर।।
शांति प्रेम सुख के तुम दाता।
बड़भागी नर दर्शन पाता।।
तुम जग पालक तुम भव तारक।
तुम ही हो जग के उद्धारक।।
हुई पुनीता भू जब आये।
कमल पुष्प में प्रकटे जाये।।
गिरि मालासेरी अति पूजित।
बाल रूप जहाँ धरा समुचित।।
दुखियों के ख़ातिर तुम आए।
पीपलदे के प्राण बचाए।।
दुःख दर्द संकट सब मिटते।
देव देव नित नाम जो रटते।।
शक्ति तुम्हारी अज़ब अनूपा।
पीपलदे को किया सुरूपा।।
दुख हरता सुख के तुम दूता।
साढ़ू माँ के परम सपूता।।
तुम अवतार विष्णु के दाता।
तुम हो जग के प्राण विधाता।।
जो नित तेरा सुमिरन करते।
निकट नहीं जिन-प्रेत भटकते।।
तुम रक्षक दीनों के स्वामी।
भय खाते तुमसे खल कामी।।
राणा ने भेजे संहारक।
रूप दिखाए तुम अति घातक।।
तुम राणा का अहम मिटाए।
राण शहर को धूल चटाए।।
रहें तुम्हारे संग अघोरा।
अगवानी में काला गोरा।।
भूत-प्रेत पास नहीं आवें।
जो नित तेरे शीश नवावें।।
माता साढ़ू अतिशय धीरा।
पिता भोज तुम्हरे गंभीरा।।
तीन लोक में नाम तुम्हारा।
कर देते तम में उजियारा।।
दुर्जन ख़ातिर हो अति खारे।
सत्पुरुषों के तुम रखवारे।।
जो भी भक्ति तुम्हारी करता।
भव सागर से वो जन तरता।।
बगड़ावत कुल के तुम तारे।
चहुँदिशि गूँजें तुम्हरे नारे।।
भटकत निकट न कोई थारे।
साथ चलत है नाग तुम्हारे।।
जो जन तुम्हरी फड़ को सुनते।
उनके कष्ट तुरत ही मिटते।।
है परताप महा अति तोरा।
चरणन पूजें काला गोरा।।
गिरि ऊपर जब तुम थे जाये।
भवन राण तक थे थर्राये।।
तेज तुम्हारा भानु समाना।
जो न किसी से जग में छाना।।
जो जन भजन तुम्हारे गावें।
रोग दोष उनके मिट जावें।।
लूले लँगड़े जो भी आते।
चलकर पैरों से घर जाते।।
जो भी काम विवश के आते।
संकट से तुम उन्हें छुड़ाते।।
निर्जन वन का हो तुम पोषण।
किया नाम गोठा का रोशन।।
कुल हत्या का बदला लीन्हा।
राण शहर का मर्दन कीन्हा।।
तुम साक्षात दया के सागर।
करुणा करना हे करुणाकर।।
वीर न तुमसा कोई दूजा।
दर्शन तुम्हरे है ज्यों पूजा।।
रण में अतुलित शौर्य दिखाये।
इसीलिए तुम वीर कहाये।।
कृपा तुम्हारी होती जिस पर।
उसे न होते घबराहट डर।।
दिव्य मुकुट धारे तुम सर में।
सुरभित कमल पुष्प नित कर में।।
जो तुम्हरे सम्मुख नत होते।
पूरे सकल मनोरथ होते।।
जय जय जय श्री देव उचारे।
जनम-जनम के पाप निवारे।।
नित्य पढ़े जो यह चालीसा।
कारज उनके हों इक्कीसा।।
दास 'प्रकाश प्रियम' गुण गावे।
कृपा तुम्हारी निशि दिन पावे।।
तेरे चरणों में धरूँ, मैं अपना ये भाल।
दो मुझको आशीष हे, साढ़ू माँ के लाल।।दोहा।।
-Prakash Priyam
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