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राग धनाश्री ★
भादों सुदी आटें उजियारी ।
श्रीवृषभानगोपके मंदिर प्रगटी राधा प्यारी ||१||
नाचत नारि नवेली छबिसों पैंहरे रँग रँग सारी ।
घर घर मंगल देखि बरसानें कहत रमा हों वारी ॥ २॥
एक आई एक आवति गावति एक साजत सुनि नारी |
चंचल कुंडल ललके झलके करन बिराजत थारी ॥३॥
भई बधाई कही न जाई छबि छाई अति भारी ।
रसभरि खोरि पौरि भई दधि घृत बहि चली उमगि पनारी ॥४॥
कीरति की कुल कीरति जगमें भाग सुहाग दुलारी ।
दामोदर हित वृंदावनमें बिहरत लाल बिहारी ॥५॥
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