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भांडीर वन आज भी राधा-कृष्ण विवाह की गाथा को जीवंत कर रहा है। ब्रह्मवैवर्त पुराण, गर्ग संहिता और गीत गो¨वद में भी राधा-कृष्ण के भांडीरवन में विवाह का वर्णन किया गया है। मथुरा से करीब तीस किलोमीटर दूर मांट के गांव छांहरी के समीप यमुना किनारे भांडीरवन है। करीब छह एकड़ परिधि में फैले इस वन में कदंब, खंडिहार, हींस आदि के प्राचीन वृक्ष हैं। भांडीरवन में बिहारी जी का सबसे प्राचीन स्थल माना गया है। यहां मंदिर में श्री जी और श्याम की अनूप जोड़ी है। जिसमें कृष्ण का दाहिना हाथ अपनी प्रियतमा राधा की मांग भरने का भाव प्रदर्शित कर रहा है। मंदिर के सामने प्राचीन वट बृक्ष है। जनश्रुति है कि इसी वृक्ष के नीचे राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। वट वृक्ष के नीचे बने मंदिर में राधा-कृष्ण और ब्रह्मा जी विराजमान हैं। भांडीरवन में राधा-माधव एक दूसरे को वरमाला पहना रहे हैं। आज भी वह वृक्ष मौजूद है।
क्या कहती है कथा
पुराणों में वर्णन है कि एक दिन नंदबाबा बालक कृष्ण को गोद में लिए भांडीरवन पहुंच गए तभी भगवान कृष्ण की इच्छा से वन में बहुत तेज तूफान आ गया। यह देखकर नंद बाबा डर गए। वे कृष्ण को गोद में लेकर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। उसी समय वहां पर देवी राधा आ गईं। नंद बाबा कृष्ण और राधा के देव अवतार होने की बात जानते थे। वह देवी राधा को देखकर स्तुति करने लगे और बालरूपी कृष्ण को राधा के हाथों में सौंपकर वहां से चले गए। नंद बाबा के जाने के बाद भगवान कृष्ण ने दिव्य रूप धारण कर लिया। उनकी इच्छा पर ब्रह्माजी आ गए और भांडीर वन में देवी राधा और भगवान कृष्ण का विवाह करवाया।
वंशीवट मथुरा जिले में वृंदावन के यमुना के किनारे स्थित है। कहते हैं कि यहां इसी स्थान पर द्वापर युग में श्रीकृष्ण अपने बालपल में अपने गोप सखाओं और गायों के साथ खेला करते थे और गायों को चराते हुए विश्राम करते थे। और थक जाने पर इसी वृक्ष पर बैठ कर घंटों वेणुवादन करते थे और उस वंशी की मीठी ध्वनि सुनकर ग्वाल वाल ,गोपियाँ और गायें मंत्र मुग्ध हो जाते थे। इसी जगह पर ठाकुर श्री कृष्ण जो कि रास बिहारी भी थे ,ने तरह-तरह की लीलाएं कीं। माना जाता है कि इस वटवृक्ष से आज भी कान लगाकर ध्यान से सुनने पर आपको ढोल, मृदंग और वंशी की आवाज सुनाई देगी। परन्तु इस बात का अत्यन्त ही दुःख ह ने इस पौराणिक धरोहर को संजोने के लिए किसी भी प्रकार का कोई कदम नहीं उठाया है। परन्तु इस बात का अत्यन्त ही दुःख है कि प्रशासन ने इतनी खूबसूरत श्री कृष्ण के धरोहर को सँभालने के लिए कोई विशेष प्रयोजन नही किया। परन्तु इन सबसे अलग आज भी करोड़ों दर्शनाभिलाषी इस सूंदर स्थान का दर्शन करने आते हैं और यहाँ की दैवीयता और भक्ति का लाभ उठाते हैं, माना जाता है कि इस वटवृक्ष से आज भी कान लगाकर ध्यान से सुनने पर आपको ढोल, मृदंग और वंशी की आवाज सुनाई देगी। ऐसा आप वह प्रत्यक्ष जाकर स्वयं महसूस कर सकते हैं.
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