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आज इस मॉडल की मदद से हम राहु और केतु की खगोलीय स्थिति के बारे में समझने की कोशिश करेंगे।
Let us understand the concept with the help of a model.
सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं
हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण
ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु।
ये नौ ग्रहोंमेसे राहु और केतु ग्रह हमारे सौरमंडल में प्रत्यक्ष रूप में मौजूद नहीं है बल्कि यह एक स्थिति है,
ये स्थिति क्या है ये जानने पहले थोडासा रिवीजन हो जाए
जैसा की आपको पता होगा कि चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाती है और पृथ्वी चन्द्रमा के साथ सूर्य का .
जिस निश्चित पथ पर प्रथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है उसे पृथ्वी की कक्षा कहा जाता है
और जिस निश्चित पथ पर चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है उसे चंद्रमा की कक्षा कहा जाता है
लेकिन दोनों कक्षां ओ का प्लेन (सतह) एक ही नहीं है, दोनों के बीच लगभग पांच डिग्री का कोण बनता है.
अमावस्या तब होती है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच होता है,
पूर्णिमा तब होती है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच होती है
अब जानेगे की राहु और केतु कौनसी स्थिति है
समझने में आसानी हो इसलिए ये मॉडल में पृथ्वी को स्थिर और सीधा रखा है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है
ये छोटासा मोती चन्द्रमा है
ये दो बिंदुओंको सफ़ेद और लाल टेप से निशान करेंगे
पृथ्वी और चन्द्रमा की कक्षा इन्ही दो बिन्दुओ में कटती है
ये डिस्क पृथ्वी और सूर्य का प्लेन या सतह है ऐसा समझते है
चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए कभी पृथ्वी -सूर्य के प्रतल (plane) से नीचे रहता है या कभी ऊपर. लेकिन दो बिंदु के सिवा
जब चंद्रमा अपनी कक्षा से नीचे उतरते समय जिस बिंदु पर पृथ्वी की कक्षा को काटता है वह केतु है .
अंग्रेजी में केतु की स्थिति को साउथ लूनर नोड कहते है
लाल लाइन केतु बिंदु को दर्शाती है
जब चंद्रमा की कक्षा ऊपर चढ़ते हुए पृथ्वी की कक्षा को काटती है तो उसे राहु कहा जाता है
सफ़ेद लाइन राहु बिंदु को दर्शाती है
अंग्रेजी में इसे नाॅर्थ लूनर नोड कहा जाता है।
लाल लाइन केतु बिंदु को दर्शाती है
एक चान्द्रमास दो बार चन्द्रमा पृथ्वी की कक्षा को काटेगा।
वैदिक ज्योतिष में इसी दो बिन्दुओ को महत्वपूर्ण छाया ग्रह माना गया है.
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चन्द्रमा अगर अपनी कक्षा में राहु या केतु के बिंदु पर या उस बिंदु के आसपास हो तो ग्रहण होता है
चुकी दोनों प्लेन मे पांच डिग्री का अंतर है, इसलिए ऐसा हर बार नहीं होता.
मान लीजिये की पूर्णिमा का दिन है, लेकिन तीनो पिंड एक सतह मे नहीं है, तो धरती की छाया चाँद पर नहीं पड़ेगी, ऊपर-नीचे या इधर-उधर छाया पड़ेगी, और चन्द्र ग्रहण नहीं होगा. जब चाँद राहू या केतु के स्थान होता है, तब यह दोनों कक्षा के प्लेन मे एक साथ होता है, और पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा एक ही सतह मे होते है. तब अगर पूर्णिमा या अमावस्या हो तो तभी ग्रहण होगा.
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अब चन्द्रमा की कक्षा के बारे में थोड़ा जान लेते है.
यह कक्षा भी घूमती रहती है जैसे पृथ्वी अपने आस के चक्कर काटती है। लेकिन ये बहोत ही धीमी गति से होता है.
यहापर एक सफ़ेद निशान लगाएंगे जिससे पता चलेगा की राहु का बिंदु कितना आगे गया
पृथ्वी का पूरा चक्कर काटने पर एक साल हो गया.
इसी एक साल में राहु का बिंदु करीबन २० डिग्री से आगे घूमता है।
हर साल लगभग बिस डिग्री आगे बढ़ता है और अठारा साल के बाद उसी जगह पर आता है
कक्षा की ये गति को और अच्छी तरह देखने के लिए मॉडल को निकालते है। इस गियर को हात से घुमाएंगे
राहु के ऐसे एक चक्कर काटने में वो सूर्य से १९ बार मिलता है. अगर इस वक्त चाँद मौजूद हो तो ग्रहण होता है
कक्षा का घूमना clockwise है और चन्द्रमा का घूमना anticlockwise.
आशा करता हु की मॉडल की मदद से राहु और केतु की खगोलीय स्थिति, ग्रहणोंसे उनका रिश्ता सरल तरीके से बता पाया
धन्यवाद
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