राहु के नवम भाव में सटीक फल - आचार्य वासुदेव जी

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वैदिक ज्योतिष में नवम भाव को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि यह आपकी कुंडली का भाग्य भाव है। यदि भाग्य भाव प्रबल हो तो मनुष्य भाग्यशाली होता है धन और वैभवशाली होता है। कालपुरुष की पत्रिका में नवम भाव में धनु राशि आती है जिसके स्वामी ग्रह देवगुरु बृहस्पति है जो वैदिक ज्योतिष में सबसे अधिक शुभ ग्रह है। इस भाव के कारक ग्रह देवगुरु बृहस्पति और सूर्य देव है। इस भाव को त्रिकोण भाव भी कहा जाता है। इस भाव का मुख्य कार्य जीवन प्रदान करना और जीवन को प्रेरित करना है। यह भाव जीव की महत्वकांक्षाओं से जुड़ा होता है। यह भाव सम्पूर्ण विश्वास, श्रद्धा और आस्था से जुड़ा होता है क्योंकि यह धर्म का भाव है आस्था का भाव है। इस भाव से हम उच्च कोटि का ज्ञान (जो समस्त संसार को एक मार्गदर्शन प्रदान करता है) देखा जाता है। इस भाव से हम पिता, गुरु, परिवार के बड़े बुजुर्ग, पब्लिशर्स, कथावाचक, पादरी, डिप्लोमेट्स, और धर्मगुरु के विषय में अनुमान लगा सकतें है। इस भाव से हम शरीर के विभिन्न अंगों जैसे जाँघे,कूल्हे, नितंब तंत्रिका तंत्र, और नितम्ब से संबंधित रोगों के विषय में जानकारी ले सकतें है। यदि ये भाव प्रबल हो तो ऐसे लोग लेखक, दार्शनिक, प्रकाशक, वकील, जज, राजनायिक, कथावाचक,अध्यापक,ज्योतिषाचार्य भेदक, मनोविज्ञान, आयात निर्यात का व्यापार, धार्मिक स्थानों पर कार्य करना, धार्मिक यात्रा से सम्बंधित कार्य जैसे धार्मिक यात्राएं ले जाना इत्यादि है। इस भाव से हम भाग्य, धर्म, पवित्र बंधन और आशीर्वाद, महत्वकांक्षा, उच्च कोटि की बुद्धि और जागरूकता, विदेश यात्रा भी दर्शाता है।
आचार्य वासुदेव जी
ज्योतिषाचार्य,हस्तरेखा विशेषज्ञ
संपर्क सूत्र- 9560208439,9870146909
Email- neerajnagar427381@gmail.com

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राहु का रहस्य भाग-२ (आचार्य वासुदेव जी  )
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