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एक बार राजा जनक बड़ी विचित्र दशा में पहुंच गए। वे राजा से भिखारी बन गए और फिर वे दुबारा राजा बने। ये सब दो अवस्थाओं का परिणाम था, पर राजा जनक इस पशोपेश में पड़ गए कि यह सच है या वह सच था? तब ऋषि अष्टावक्र जी ने उनकी दुविधा का समुचित हल प्रदान किया। यह कहानी माण्डुक्य उपनिषद की नहीं है पंरतु उपनिषद की स्थापनाओं को समझने में बहुत ही सहायता करती है। मांडूक्य उपनिषद ईश्वर और ॐ के चार पादों की व्याख्या करते हुए जीव कौन है या मैं कौन हूं को समझाने का प्रयास करता है। Who am I? यह दर्शनशास्त्र का महत्वपूर्ण प्रश्न है। इस वीडियो में हम ईश्वर कौन है और Who Am I को डीप में समझने की कोशिश करेंगे।
Janak Ashtavakra Story
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