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जय श्री राम जय मां वैष्णवी दवी
आज षष्टम दिवस श्री रामलीला इग्यारदेवी सुमंत का दशरथकोप भवन निराश होकर वापस आना महाराज दशरथ का प्राण त्यागना भरत का दुखी होकर माता कैकई एवं सत्रुघनका मंथरा पर क्रोध करना और गुरू वशिष्ठ जी और भरत का वन को जाना और वशिष्ट जी द्वारा श्री राम जी को राजादशरथ की मृत्यु का शोक समाचार बताना श्री राम विलाप एवंअन्य लीलाओं का मंच अभिनय किया जाएगा
राजा दशरथ ने अपने पुत्र राम के वियोग में प्राण त्याग दिए थे:
जब सुमंत अयोध्या लौटे, तो उन्होंने राजा दशरथ को बताया कि राम, लक्ष्मण, और सीता में से कोई भी उनके साथ नहीं लौटा है.
यह सुनकर राजा दशरथ बहुत दुखी हुए और राम-राम कहते हुए प्राण त्याग दिए.
अयोध्या नगरी में शोक की लहर दौड़ गई.
भरत और शत्रुघ्न को कोई समाचार नहीं मिलने पर, दूत उन्हें तुरंत अयोध्या आने के लिए कहते हैं.
भरत और शत्रुघ्न दुखी मन से अयोध्या आते हैं.
राजमहल के द्वार पर केवल कैकेयी ही भरत का स्वागत करती हैं और उसे पूरी कहानी सुनाती हैं.
भरत दुखी हो जाते हैं और माता कौशल्या के पास जाकर क्षमा मांगते हैं.
भरत प्रण लेते हैं कि जब तक राम वापस नहीं आ जाते तब तक वह कैकेयी से बोलेंगे नहीं.
सभी लोग मिलकर राजा दशरथ के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करते हैं.
इस बीच, जब मंथरा घटनास्थल पर आती है, तो शत्रुघ्न उसे अपने शक्तिशाली हाथ से पकड़ लेता है, उसे दंडित करने की धमकी देता है और कैकेयी को भी गाली देता है। जब कैकेयी अपने बेटे के साथ दया की भीख मांगती है, तो भरत हस्तक्षेप करते हैं और शत्रुघ्न मंथरा को छोड़ देते हैं।
रामायण के मुताबिक, भरत ने राम को वन से मनाकर वापस अयोध्या लाने के लिए वन जाने का फ़ैसला किया था. भरत अपने पूरे दल-बल के साथ चित्रकूट की ओर चले थे. निषादराज गुह को जब भरत की सेना दिखी, तो उन्हें कुछ संदेह हुआ. लेकिन, सही स्थिति का पता चलने के बाद उन्होंने भरत की आगवानी की.
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