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श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चॅवलेश्वर , जिला-भीलवाडा (राजस्थान जैन मंदिर )Rajasthan jain trith
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चॅवलेश्वर , जिला-भीलवाडा (राजस्थान जैन मंदिर )
इतिहास :-
बिजोलियाँ तीर्थ क्षेत्र पर उपलब्ध शिलालेखो की प्रमाणिकता विश्व प्रसिद्ध है। उसके अनुसार देवाधिदेव 1008 भगवान पार्श्वनाथ के केवलज्ञान व प्रथम समवशरण की रचना बिजोलिया क्षेत्र पर हुई तदनान्तर देवाधिदेव बिहार कर चवलेश्वर की उतंग पहाडी पर पधारे जहां कुबेर ने सौधर्म इन्द्र के आदेशानुसार द्वितीय बार समवशरण की रचना की। अतः यह तीर्थक्षेत्र साक्षात् भगवान पार्श्वनाथ के चरण कमल एंव समवशरण से पवित्र हुआ, तभी से यह क्षेत्र जनमानस की श्रृद्धा का केन्द्र बना हुआ है।
अरावली पर्वतमाला की उत्तंग पहाड़ी पर देवाधिदेव 1008 भगवान पार्श्वनाथ के प्रकट होने की भी बड़ी आश्चर्यजनक सुन्दर घटना है। राजस्थान के भू-भाग पर मेवाड़ प्रान्त में अरावली पर्वतमाला के इन्ही पहाड़ी (जिन्हे काली घाटी के नाम से जाना जाता है) के आस पास दरीबा नाम का एक शहर था जहां के खण्डहर आज भी किसी नगर के वैभव की याद दिलाते है। इसी नगर में दिगम्बर जैन श्रेष्ठी श्री श्यामा शाह नाम के एक सेठ रहते थे । उनके एक पुत्र का नाम नथमल शाह जो बडे ही धर्मपरायण व वैभवशाली थे। दिगम्बर जैन श्रेष्ठी श्री नथमल शाह के एक धेनु (गाय) प्रतिदिन इन जंगलो में चरने को जाया करती थी । सायंकाल वापस लौटने पर जब गाय दूध नही देती थी तो सेठ नथमल शाह को बड़ी चिन्ता हुई। इस बारे मे ग्वाले से पूछा तो ग्वाले ने अनभिज्ञता प्रकट करते हुऐ कहा कि सेठजी मैं आज इस गाय पर ही नजर रखूंगा, सायंकाल वापस आने पर ही मैं आपको कुछ बता पाऊंगा। ग्वाला गाये चराने के लिए गया। उक्त धेनु पर पूरी निगाह रखी जब सायंकाल गोधुलि बेला मे गायों को वापस बाहर लाने का समय हुआ तो ग्वाला देखता है वह गाय सबसे ऊचे पहाड के उत्तंग शिखर पर चढ़कर वहाँ एक स्थान पर स्वतः दूध झरा रही है। उसका दूध अपने आप झर रहा है। यह देख ग्वाला बड़े आश्चर्य में पड़ गया। सेठजी के प्रश्न का यथोचित उत्तर पाकर ग्वाले को बड़ी प्रसन्नता हुई और सोचने लगा यह कोई साधारण बात नही हैं यहां कोई चमत्कार है। सायंकाल जब गायों को वापस नथमल शाह जी के यहां ले गया तो उसने अपनी आंखो देखा सारा हाल सेठजी को सुना दिया। धर्मपरायण दिगम्बर जैन श्रेष्ठी की चिन्ता दूर हुई साथ ही मन में यह विचार उठने लगा कि यह गाय वहां जाकर स्वतः अपना दूध क्यों झराती है। यह कोई साधारण बात नही है। काफी सोच विचार के बाद श्रेष्ठी को इसका समाधान नजर नही आ रहा था, वे बडे चितिंत थे । रात्रि के पिछले पहर में सेठजी को बडा सुन्दर स्वप्न आया कि जहाँ गाय दूध झराती है वहा भगवान की बहुत ही मनोज्ञ एवं अद्वितीय प्रतिमा विद्यमान है।
आप उसे सावधानी पूर्वक वहां से निकाल कर एक भव्य मन्दिर का निर्माण करवाऐं । श्रेष्ठी की चिन्ता दूर हुई बडी प्रसन्न मुद्रा से प्रातःकाल उठे व अपने को बड़ा भाग्यशाली समझ उक्त स्वप्न को साकार रूप देने के लिऐ दृढ़ संकल्पित हुये । प्रातःकाल उठकर श्री जिनेन्द्र देव का स्मरण करते हुऐ सेठ नथमल शाह जी उस पहाड़ी के उस उत्तंग शिखर पर पहुचें जहां पर गाय दूध झराती थी। सेठ नथमल जी ने उस स्थान की सावधानीपूर्वक खुदाई करवाकर सर्व प्रथम भगवान की प्रतिमा को बाहर निकलवाई व इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया। सेठजी को स्वप्न मे यह भी आदेश मिला कि धन की तनिक भी चिन्ता न करें। सेठजी ने वहां एक भव्य शिखरबंद मंदिर का निर्माण कराया व देवाधिदेव की प्रतिमा को वहां विराजमान किया। यह वृतांत आज का नही ग्यारहवीं शताब्दी का है।
क्षेत्र का वैभव एवं प्राचीनता :-
अरावली पर्वतमाला कि इन पहाड़ियों में काली घाटी पहाड़ी अपना अलग ही स्थान रखती हैं- इसी घाटी के आस पास के पहाड़ो में अनेक खनिज सम्पदा के भण्डार है-धिया पत्थर (सोप स्टोन) की एशिया की सबसे बड़ी खदान व चायना क्ले (खडिया) की खदान भी इन्ही पर्वत श्रंखलाओं में विद्यमान है तथा एक भिणाय की बावड़ी नामक स्थान है जो विश्व पुरातत्व में अपना विशेष स्थान रखती है।
ऐसे विशाल पहाड के उत्तंग व दुर्गम स्थान पर वैशाख बुदी 03 वि.स. 1272 में विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ देवाधिदेव की मूल प्रतिमा मूल वेदीं मे विराजमान की गई साथ ही मूलनायक प्रतिमा के दाहीने भाग मे एक श्याम पाषाण की चौबीसों भगवान की सुन्दर व आकर्षक प्रतिमा भी विराजमान है।
यात्रा मार्ग :-
1 चॅवलेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थक्षेत्र नीमच बडोदरा व नीमच आगरा फोर्ट (बड़ी लाइन पर) माण्डलगढ़ रेल्वे स्टेशन से 35 कि.मी. तथा राजस्थान के भीलवाड़ा से वाया कोटड़ी होते हुए 55 कि.मी. दूरी पर स्थित है।
2 - अतिशय क्षेत्र बिजोलियाँ से 60 कि.मी., केशवरायपाटन से 135 कि.मी. तथा कोटा से वाया बिजौलियाँ पार्श्वनाथ होते हुऐ 150 कि.मी., जयपुर से वाया देवली, जहाजपुर स्वस्तिधाम, खजुरी होते हुए 230 किमी. पर स्थित है। एक बार अवश्य पधार कर धर्म लाभ लेवेl
पता-
श्री चैवलेश्वर पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय तीर्थ क्षेत्र ,चैनपुरा, तह. माण्डलगढ़, जिला - भीलवाड़ा (राज.)
मो. नं. : 9828685505, 6350455950
Email:
chaitanyaautosagar@gmail.com
Blog:
/ abhishek jain Shastri
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