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NARAYAN DAN RATNU OLD VOICE
चिरजा
तेमड़ाराय री (मूलजी मोतीसर रचित)
रक्षा कीजे माढ रैणी, मही त्रिलोक ही मण्डनी।
वन्दना गढ दासौडी मां, तेमड़ा धरणी धनी ॥ टेर ॥
आदि शक्ति अनन्त अम्बे, दुष्ट खल दल भंजनी।
ब्रह्मा विष्णु महेश शेष सव, रचन हार निरंजनी ॥१॥
पूत मत लोकन पठायो वंश ख्यातिक रक्षणी।
पुत्र वचनां करण पूरण तू बरण चारण तणी ॥2||
हिगला गिरि हिंगलाजा, विकट पहाड़ा बाजणी।
मात चारण आप श्रीमुख प्रात मांग संपूरणी ॥३॥
मांग सतइक वेर मामड़, जनम मो घर जोगणी।
सात रूपां धार शगती, बहन सातूं ही बणी ४॥
पातशाह कर कोप पूरण, लार फोजा लगगणी।
सीर सातू तीर नावत, नीर तज भई नागणी ॥१॥
वार लख भये पिता व्याकुल, अधर वाहन उड्डणी।
पार अपरम देख परचो, निज पिता द्रढता बणी ॥६॥
चंडी भैसो कियो चूरण, बहत मग सिंहबाहणी।
वीर महरख श्राप बणियो, पीण निज डसियो फणी ॥७॥
आठ सौ लख्ख कोस आडो, समन्द विनती ना सुणी।
हाकड़ो हेकण हथाली, जल समायो जोगणी ॥८॥
भेज इमि कज बहन खोड़ल, लाय बन्धू जीवावणी।
लोवडी निज हाथ आवड़, मात जद ढकियो मणी ॥९॥
तूं ही मामड़ तूं ही मैलड़, स्वेत तूं बीजा सणी।
तूं ही चालक नेच आवड़, शुम्भ निशुम्भ संहारणी ॥१०॥
रावतसर तूं डूंगरेची, राश चौसट रम्मणी।
आवड़ा आवो अखाड़े, बीच नवलख ब्राजणी ॥११॥
तेमड़ो हण हाक देवी, जीत कर जंग जननी।
ब्राजिये मढ पिछम वसुधा, माढ धर आणंद भणी ॥१२॥
अरि खल दल कीन हमलो, विपत भूपत में वणी।
ले सरण रतनेश सिवरे, आवो भू नृप तारणी ॥१३॥
तज गरुड़ हरि धाये गज कज, आवो वरण उजासणी ॥
करुण सुण जेसाणपत री.
आरत ने हणी ॥१४॥
आई सुण जद टेर आयल, बेग मृगपत वाहणी।
दो मुझे वरदान देवी जाण बालक जन्ननी ॥१५॥
रतन को निज पूत रखकर, हाणि देरज की हणी
देवी द्विज पलटाय तिण दिन, देवकुल चारण तणी ॥१६॥
रतन वंश री साख रतनू मेर जेसल मेदणी।
राज पद तब पाय सिरवो, पौल आदव थापनी ॥१७॥
पड़ाई मढ करंद पूजा, बांध कंकण बन्धनी।
आखवे मुख शगत आवड़, रेहु तव कुल रक्षणी ॥१८॥
दासोडी शुभ नजर देवी, बीस हथ राखो बणी।
जियावत नित अटल सम्पत, रचित आनंद रंजनी ॥१९॥
कीजिये विपती किनारे, अरज सर नीरज तणी।
मूलो शरणे थारे मैया, तू नैया भवतारणी ॥२०॥