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निर्देशक सूरज प्रकाश की फिल्म “पतंग” (1960) एक औसत दर्जे की फिल्म थी. साधारण सी कथा. पर उस ज़माने में फिल्में अभिनय करने वाले सितारों के, गीत संगीत के भरोसे सफल हो ही जाती. जुबिली स्टार राजेंद्र कुमार और खूबसूरत माला सिन्हा ने इस फिल्म में अपना पूरा योगदान दिया.
इस फिल्म की पटकथा और गीत राजिंदर कृष्ण ने लिखे और मधुर संगीत दिया चित्रगुप्त ने. हम बात करेंगे चित्रगुप्त जी की. बहुत कम लोग चित्रगुप्त जी के नाम से परिचित होंगे. हां अगर उन्हें ये बताया जाए कि “क़यामत से क़यामत तक” के मशहूर संगीतकार आनंद-मिलिंद के वो पिताजी थे तो थोड़ी पहचान बनेगी. उन्हें वो मक़ाम हासिल नहीं हो पाया जो नौशाद, सी रामचंद्र, मदन मोहन, सचिन देव, शंकर जयकिशन, लक्ष्मी-प्यारे, वगैरा संगीतकारों ने हासिल किया.. सच कहें तो चित्रगुप्त जी को उस तरह की पहचान ही नहीं मिली जिस के वो हक़दार थे. शुरू में छोटे बैनर की पौराणिक फ़िल्में, फिर स्टंट फ़िल्में करते करते उन्हें AVM का बैनर मिला जिसने उन्हें शोहरत तो दिलाई ही साथ ही उन में छुपे गुणी संगीतकार को बाहर आने का मौका दिया. प्रस्तुत गीत “रंग दिल की धड़कन भी ..” उनकी पोटली से निकला हुआ एक ऐसा ही Gem है. इस गीत की सबसे बड़ी ख़ासियत लता दी की आवाज़ है जो एक निश्छल बच्ची की आवाज़ लगती है. चित्रगुप्त जी के संगीत की एक और ख़ासियत थी. पश्चिमी वाद्यों पर आधारित interlude और फिर भारतीय ताल वाद्यों पर आधारित अंतरे. कुछ कुछ OP नैय्यर जी जैसा. इस गीत में भी आप को ये स्पष्ट नज़र आएगा. चित्रगुप्त जी के प्रसिद्ध गीतों की लिस्ट वैसे बहुत लम्बी है. पर हर साल मकर संक्रांति को जब पूरे देश में पतंगबाजी का बुखार चढ़ता है तो हर जगह उनके “चली चली रे पतंग मेरी चली रे...” (फिल्म : भाभी) गीत की गूँज सुनाई देती है, जिस के बिना संक्रांति अधूरी है. फिल्म भाभी का ही “चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देस हुआ बेगाना..” गीत किसी भी तारीफ़ या पहचान का मोहताज़ नहीं.