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प्रियजन, श्री गुरु रविदास जी दयामेहर से वचन कर रहे हैं 'संत तुझी तनु संगति प्रान, सतिगुर गिआन जानै संत देवा देव' कि हे परमात्मा, संत तेरे मूर्त रूप हैं, संतजन की संगत तेरे प्राण हैं। लेकिन हे देवाधिदेव परमात्मा, सतगुरु के द्वारा प्रदान किए ज्ञान से ही संतों की पहचान हो सकती है। मुझे संतों की संगत, संतों के सत्संग का रस, संतों का प्रेम बख्श। संतरुप आचरण, संतों का मार्ग, मुझे संतों के सेवकों की सेवा का दान कर। एक और विनती है कि मुझे भक्तिरुप, सभी इच्छा पूर्ण करने वाली चिंतामणि की बख़्शीष कर।
श्री गुरुसाहेब सचेत कर रहे हैं 'रविदासु भणै जो जाणै सो जाण, संत अनंतहि अंतरु नाही' कि सच्चा जानकार वही है जो इस बात की समझ रखता है की संतजन में और अनंतहि कि अनन्त में कोई अंतर नहीं है।🙏