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सूरज का सातवाँ घोड़ा
डॉ. धर्मवीर भारती द्वारा रचित लघु उपन्यास 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' की कथा सात खण्डों में विभाजित है। माणिक मुल्ला अपने दोस्तों को हर दोपहर एक इस तरह सात दोपहर कहानियाँ सुनाते हैं।
उपन्यास के पात्र : माणिक मुल्ला, जमुना, तन्ना, महेसर दलाल, रामधन तांगेवाला, लिली, सत्ती, चमन ठाकुर
यह सम्पूर्ण कथानक सात खण्डों में विभाजित है |
पहली दोपहर में सुनाई गई - 'नमक की अदायगी' कहानी है जमुना की। जमुना के पड़ोस में ही महेसर दलाल रहते थे, जिनके बेटे तन्ना से जमुना की अच्छी मित्रता थी। उनके विवाह की बात भी चली परंतु दोनों एक ही बिरादरी के होने के बावजूद विवाद-बंधन में न बँध सके क्योंकि तन्ना का गोत्र जमुना की अपेक्षा कुछ नीचे था| जमुना के पिता साधारण क्लर्क थे, दहेज नहीं दे सकते थे, इसलिए कहीं उसकी शादी तय नहीं कर सके।
दूसरी दोपहर की कहानी भी जमुना से ही संबंधित है जिसका नाम है- 'घोड़े की नाल' । इस कहानी में जमुना का विवाह और वैवाहिक जीवन के प्रसंग हैं। दहेज के अभाव में उच्च गोत्र के किसी युवक से जमुना का विवाह नहीं हो पाता, फिर उनकी दूर की एक रिश्तेदार रामो बीवी जमुना से अपने भतीजे के विवाह का प्रस्ताव रखती है| उसका भतीजा उम्र में जमुना के पिता से केवल चार पांच बरस छोटा था जिसकी दो पत्नियाँ पहले ही मर चुकी थीं, परंतु खानदान नामी था, घर में धन-संपत्ति बहुत थी। जमुना को उस बूढ़े से विवाह करना पड़ता है। काफी समय तक जमुना के कोई संतान नहीं होती तब व्रत-अनुष्ठान का सहारा लिया जाता है। बीमारी के कारण पति साथ नहीं जा सकते, इसलिए रामधन तांगेवाले की सहायता लेती है। रामधन एक और उपाय सुझाता है, कि घोड़े के पैर की घिसी हुई नाल की अंगूठी चंद्रग्रहण के समय पहनने से मनोकामना पूरी होती है। तांगेवाला रामधन सुबह पूजा के बहाने जमुना को तांगे में ले जाता| घोड़े की नाल घिस जाती है, उसकी अंगूठी बनवा कर जमुना पहनती है और उसे पुत्रप्राप्ति होती है। कुछ ही समय में उसके पति चल बसते हैं। कुछ दिन रोने-धोने के बाद जमुना घर-बार सँभालती है और घर में ही एक कमरा रामधन तांगेवाले को देती है। स्पष्ट था कि जमुना के बच्चे का बाप रामधन था और पति की मृत्यु के बाद अब रामधन मालिक बन बैठा था।
‘तीसरी दोपहर' का कोई शीर्षक नहीं है| इसमें कहानी है, तन्ना की - वही तन्ना जिसके साथ जमुना विवाह करना चाहती थी। परंतु दोनों का विवाह नहीं होता। जमुना का विवाह बूढ़े धनिक से होता है और तन्ना का विवाह एक धनी की बेटी से। । तन्ना रेलवे में नौकरी करता था, फिर भी घर की जिम्मेदारियाँ और खर्चों को पूरा नहीं कर सकता था। पत्नी घर छोड़ कर चली जाती है। इन सब परिस्थितियों से जूझते तन्ना बीमार रहने लगता है। इस बीमारी में डयूटी करते हए वह चलती रेलगाडी से गिर पड़ता है और उनके दोनों पाँव कट जाते हैं और उसीमें उसकी मृत्यु होती है |
चौथी दोपहर की कहानी ‘मालवा की युवरानी देवसेना' अर्थात् लिली की कहानी है। यह लिली वही लड़की है जिसका विवाह तन्ना से हुआ था। लिली और माणिक परस्पर प्रेम करते थे। किसी और से विवाह करने और माणिक से बिछुड़ने की कल्पना मात्र से लिली व्याकुल थी। माणिक उसे समझाता है कि प्रेम किसी को बाँधता नहीं। लिली स्वयं को सँभाल कर परिस्थितियों को स्वीकार करें। इसलिए वह तन्ना के साथ विवाह- स्वीकार करती है।
‘पाँचवी दोपहर' की कहानी का शीर्षक है ‘काले बेंट का चाकू'। इसमें सत्ती की कहानी है। वह चमन ठाकुर नाम के एक व्यक्ति के साथ रहती थी जिसे वह चाचा कहती थी। चमन ठाकुर आर्मी में भर्ती हो कर बलूचिस्तान गया था। जहाँ यह अनाथ लड़की उसे मिली थी। सत्ती साबुन बनाने, काटने और बेचने का काम कर अपना और चाचा का पेट पालती थी। सत्ती तेज -तर्रार किंतु सहज स्वभाव वाली लड़की है जो अपनी चाल-ढाल, बातों और स्वभाव से किसी को भी आकृष्ट कर लेती थी। परंतु उसकी प्रतिष्ठा आत्मसम्मानी लड़की के रूप में थी जो कमर में बँधे काले बेंट के चाकू से किसी भी बुरी नज़र का सामना कर सकती थी। माणिक और सत्ती में मित्रता होती है और सत्ती माणिक पर भरोसा करने लगती है। माणिक भी उसके प्रति आकर्षण और प्रेम अनुभव करने लगते हैं। एक दिन सत्ती को पता चल जाता है कि उसका बूढा चाचा पैसे के लालच में उसका विवाह बूढ़े महेसर दलाल के साथ करानेवाला है| वह माणिक के भरोसे अपना चाकू, गहने और रूपये लेकर आती है और भाग चलने को कहती है| यह भी कहती है कि " अगर नहीं चलोगे तो आज या तो मेरी जान जाएगी या और किसी की" पर माणिक धोखे से उसे रोके रखता है और चमन ठाकुर तथा महेसर दलाल को सौंपता है। लोगों में चर्चा है की चमन और महेसर ने उसी रात सत्ती को मार दिया|
छठी दोपहर में कोई कहानी नहीं है, सत्ती की कहानी और उसकी मृत्यु की प्रतिक्रिया है। माणिक स्वयं को सत्ती की मृत्यु के लिए उत्तरदायी मानकर बीमार होता है। पर एक दिन सत्ती और चमन ठाकुर को देखता है| सत्ती की गोद में बच्चा था। माणिक को क्रोध और घृणा से उसे देखती हुई वह वहाँ से चली जाती है। सत्ती को जीवित पा और यह देखकर कि वह ‘बाल बच्चों सहित है' माणिक की निराशा दूर हो जाती है| । तन्ना की मृत्यु से जो जगह रेलवे में खाली हुई थी वह नौकरी उसे मिल जाती है, और वह सुख से जीवन व्यतीत करता है।
सातवीं दोपहर में कोई नयी कहानी नहीं है बल्कि उस सभी कहानियों का निष्कर्ष है। इन सभी कहानियाँ को प्रेम कहानियाँ भले ही कहा गया है, परंतु ये सब प्रेम कहानियाँ न होकर निम्न मध्यवर्ग की जीवन गाथाएँ हैं। इस वर्ग के जीवन में इतने संघर्ष, इतनी कटुता, इतनी लाचारी और इतने समझौते हैं परंतु इतने घने अंधेरे के बीच कहीं एक झिलमिलाती रोशनी भी है जो आगे बढ़ने, लक्ष्य को प्राप्त करने, विघ्न-बाधाओं से लड़ने और व्यवस्था को बदलने का साहस प्रदान करती है। यह साहस, उत्साह और आशा ही सूरज का सातवाँ घोड़ा हैं।