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संजरी सब गन्धर्व और मध्यम
पंचम रे व्रतनिषाद
प्राण प्रष्ठित हुए सृष्टि में
छाया नव अलहाड़
पर साथिया नंद बना
सब है अपूर्ण संगीत बिना
सब है अपूर्ण संगीत बिना
सब है अपूर्ण संगीत बिना...
भूमि तरंगित दशो दिशाए
पवन लगी जब गाने
झूम उठी ये सारी धरती
गगन लगा मुस्काने
वृक्ष लताये, नदिया झरने
मचल उठे सब नृत्य सा करने
जब अनहद का नाद सुना
सब है अपूर्ण संगीत बिना
सब है अपूर्ण संगीत बिना
सब है अपूर्ण संगीत बिना
सब है अपर्ण संगीत बिना
सब है अपर्ण संगीत बिना
सब है अपर्ण संगीत बिना...