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Saharanpur (सहारनपुर उत्तर प्रदेश) भारत के छोटे शहरो की अनछुई कहानियां, कुछ इतिहास और रोचक तथ्य। EP#2
समय बीतने के साथ, इसका नाम तेजी से बदल जाता है इल्तुतमिश के शासनकाल में सहारनपुर गुलाम वंश का एक हिस्सा बन गया। ... सहारनपुर की जागीर को राजा सहा रणवीर सिंह को सम्मानित किया गया जिन्होंने सहारनपुर शहर की स्थापना की थी| उस समय सहारनपुर एक छोटा सा गांव था और सेना का केन्ट क्षेत्र था।
ईस्ट इंडिया कंपनी से पहले सहारनपुर पर मुगल व मराठा शासन था। शिवालिक तलहटी में होने के कारण सहारनपुर में मुगल या मराठी या ब्रिटिश, शिकार खेलने व मनोरंजन करने आते थे। उस दौरान सहारनपुर में सैकड़ों ऐसी इमारत बनवाई गई, जो तत्कालीन वास्तुकला का खास नमूना पेश करती हैं। 15वीं, 16वीं, 17वीं और 18वीं सदी की सैकड़ों इमारतें रखरखाव के अभाव में ध्वस्त हो रही हैं। कहीं सभ्यता के निशान समाप्त हो गए हैं तो कहीं पर ऐतिहासिक इमारतें खंडहर में तब्दील हो गई हैं। सहारनपुर के चर्च कंपाउंड स्थित ओल्ट ब्रिट्रिश सिमिट्री, बेहट क्षेत्र स्थित बादशाही महल, बादशाही बाग एवं खेड़ा की बांदी, ओल्ड सिमिट्री लोधीपुर व ओल्ड रोहिला फोर्ट को संरक्षित स्मारक घोषित करते हुए पुरातत्व विभाग ने इसके आसपास के दो सौ मीटर क्षेत्र को 'विनियमित' श्रेणी में अधिसूचित कर दिया है। ओल्ड रोहिला फोर्ट के पास जिला जेल का निर्माण हो चुका है, अन्य के पास भी बड़ी संख्या में अवैध कब्जे हैं।
छह सप्ताह में कैसे हटेगा कब्जा
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने मेरठ के आरटीआइ कार्यकर्ता मनोज चौधरी की जनहित याचिका पर सुनवाई करके आदेश दिया है कि प्रदेश में एएसआइ से संरक्षित ऐतिहासिक इमारतों पर जितने भी लोगों ने अवैध कब्जा किया है उसे छह सप्ताह के भीतर ध्वस्त करके कोर्ट में अनुपालन आख्या पेश की जाए। सहारनपुर में ऐसे चार संरक्षित क्षेत्रों के पास 155 से अधिक अवैध निर्माण हैं, जिनका कोर्ट के आदेश के अनुपालन में छह सप्ताह में ध्वस्तीकरण होना है। खास बात यह है कि अभी तक इस मामले में एएसआइ ने आज तक कब्जों के मामले में एफआइआर तक नहीं कराई है, ऐसे में अवैध कब्जे पर बुलडोजर कैसे चलेगा? अपने आप में ही यक्ष प्रश्न है।
शाहजहां ने जहां फैलाए थे प्रेम के पंख, वह खंडहर में तब्दील
बेहट (सहारनपुर) : दुनिया को ताजमहल जैसी नायाब इमारत सौंपने वाले मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने प्रेम के पंख सहारनपुर में भी फैलाए थे। सन् 1636 में अलीमरदान खां ने शिवालिक तलहटी में बादशाह शाहजहां के लिए शिकार खेलने के लिए बादशाही महल व बेहद खूबसूरत शिकारगाह बनवाई थी। यमुना के पूर्वी किनारे पर बादशाह महल के नाम से विख्यात इस महल में शिकार करने के दौरान शाहजहां इसी इमारत में आकर आराम फरमाते थे। यदि उन्हें दिल्ली जाना होता था तो वह इसी यमुना के पश्चिमी किनारे से होकर चले जाते थे। इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित करते हुए पुरातत्व विभाग ने इसके आसपास के दो सौ मीटर क्षेत्र को 'विनियमित' श्रेणी में अधिसूचित कर दिया है, इसके बाद भी अवैध कब्जों के कारण यह इमारत अपन बदहाली पर आंसू बहा रही है। इमारत की 200 मीटर की परिधि में भी निर्माण हुए हैं। यमुना किनारे ऊंचाई पर बनी इस इमारत का निर्माण लाखौरी ईटों से किया गया है। बेहद ऊंचाई पर होने के कारण यह स्थल किसी हवामहल से कम नहीं है। इस समय यहां दो कमरे मौजूद हैं। मुख्य इमारत का बचा अवशेष करीब चार हजार वर्ग गज में फैला है। यहां से पूरी यमुना और शिवालिक पहाडि़यों का दिलकश नजारा देखा जा सकता है। इसके बाद भी ऑरकेयोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इसकी देखभाल नहीं कर रहा है।
यहां इतिहास खंडहर में तब्दील
गंगोह (सहारनपुर) : राजा गंग की बसाई गंगोह नगरी में किले का अवशेष आज भी मौजूद है। गौंसगढ़ मुगलकाल के शासकों का केंद्र रहा। लखनौती का इतिहास मुगलकाल की गवाही दे रहा है। सन् 1526 ई. में बाबर यहां आए और यहीं पर इब्राहीम लोदी से उनका युद्ध हुआ तभी लखनौती की नींव पड़ी। यह तुर्कमानों के अधिकार में था यहां 79,694 बीघा में खेती होती थी और 17,96,058 दाम मालगुजारी वसूल होती थी। उसी समय लखनौती को बाबर ने अपने एक सिपहसालार को सौंप दिया था। उसके बाद ही यहां विभिन्न इमारतों का निर्माण हुआ। लखनौती में प्रवेश करते ही मुगल काल का किला आज भी विद्यमान है। मुगल ाल के हुजरे भी यहां कई स्थान पर बने हैं। लखनौती, सरकड़ व शकरपुर मार्ग पर इनके अवशेष आज भी मौजूद हैं। मुगलकाल में बनाई गई भूलभुलैया भी यहां है। इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित करते हुए पुरातत्व विभाग ने इसके आसपास के दो सौ मीटर क्षेत्र को 'विनियमित' श्रेणी में अधिसूचित कर दिया है। इसके बाद यह इमारत खंडहर में तब्दील हो गई है। अधिकतर स्थानों पर अवैध कब्जे हैं। परिसर उपले पाथने के काम आ रहा है तो कही पर पशु भी बंध रहे हैं। गंगोह से दिल्ली तक की सुरंग भी बंद हो गई है। मुगल शिल्प कला का यह अद्भुत नमूना खंडहर बन गया। इसकी सीढि़यों के अवशेष आज भी इसकी कहानी बता रहे हैं। पुरानी इमाम बारगाह भी यहां मौजूद है। 9 साल पहले केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय ने गंगोह को ग्रामीण पर्यटन स्थल का दर्जा दिया इसके बाद भी यहां कुछ नहीं हुआ।
सहारनपुर जिला यमुना-गंगा दोआब क्षेत्र का एक हिस्सा है। इसकी भौतिक विशेषताएं मानव निवास के लिए सबसे अनुकूल हैं। पुरातत्व सर्वेक्षणों ने युगों में कई बस्तियों के प्रमाण प्रदान किए हैं। जिले के विभिन्न हिस्सों, जैसे अंबाखेड़ी, बड़ागांव, हुलास और नसीरपुर और हरिद्वार जिले के बहादराबाद में खुदाई की गई। इन खुदाई के दौरान खोजी गई कलाकृतियों के आधार पर, मानव निवास का पता लगाया जा सकता है क्योंकि 2000 ई.पू. सिंधु घाटी सभ्यता और यहां तक कि पहले की संस्कृतियों के भी निशान पाए गए हैं। पुरातात्विक रूप से, अंबाखेड़ी, बड़ागांव, नसीरपुर और हुलास हड़प्पा सभ्यता के केंद्र थे।
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