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Song Title : CHUGLA | SAAMA CHAKEVA |
Original Composition : Sharda Sinha
Produced By : Anshuman Sinha @anshumansinha
Directed By: Deep Shresth
Creative Inputs : Vandana Bharadwaj Sanju Kumar
Music Arrangement : Kapil Kumar
Mixing & Mastering : Uddipan Sharma
Vocal Recording: Ranjay Babla @symphonystudio4476 Patna
Music Label : Swar Sharda : Sharda Sinha Art & Culture Foundation
©2022 Sharda Sinha
All Rights Reserved
बात 1978 की है जब शारदा जी ने HMV के तवे वाले रेकोर्डस पर छठ और सामा चकेवा के गीत गाए थे I उन दिनो इन गीतों को commercial platforms पर गाना बिलकुल नयी बात थी I वो गीत था " सामा खेले गेलियई हो भैया ॰॰॰॰॰॰जीसके अंत में तेज लय का एक टुकड़ा आता था जिससे गाना अंत होता था॰॰॰॰ "साम चक साम चक अबिह हे, जोतला खेत मे बैसिह हे "। फिर 1986 में T-Series se छठी मइया album में "सामा खेले चलली भौजी संग सहेली " और " गाम के अधिकारी तोहे बड़का भैया हो", "छाऊर, छाऊर, छाऊर, चुगला घर में छाऊर भैया घर चाऊर " चुगला करे चुगली बिलैया करे म्याऊँ " 1978 ke HMV वाले गीत और इन दोनो गीतों को अपार सफलता मिली थी I
इस वर्ष यानी 2022 मेन शारदा जी ने फिर से एक सामा चकेवा का गीत गाया है "चुगला बड़ अकान छै, भैया बड़ विद्वान छै, चुगला मुँह में चून तमाकुल भैया मुँह में पान छै I
शारदा जी मिथिला की मूल निवासी हैं इसलिए इस संस्कृति को बखूबी आपने जिया है I उनके मन के अंदर यह प्रबल इच्छा रही की इस बेहद खूबसुरत मिथिला की संस्कृति को संरक्षित करना अनिवार्य है सो बिना संकोच उन्होंने पहले के तरह ही छठ गीत के साथ साथ एक सामा चकेवा गीत गया है इसबार जिसकी Full Video आपके सामने है I
लोक आस्था के महापर्व छठ समाप्त होने के बाद मिथिलांचल में भाई-बहनों के अटूट स्नेह और प्रेम का प्रतीक सामा-चकेवा के पर्व की शुरुआत हो जाती हैI सामा-चकेवा की मूर्ति निर्माण में मिथिला के घर-घर में बच्ची और नवयुवती तन्मयता से लग जाती हैं I ग्रामीण क्षेत्रों का चप्पा-चप्पा सामा-चकेवा की गीतों से अनुगूंजित है. मिथिलांचल में भाईयों के कल्याण के लिए बहने यह पर्व मनाती है. इस पर्व की चर्चा पुराणों में भी है. सामा-चकेवा पर्व की समाप्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन होगी. इस पर्व के दौरान बहनें सामा, चकेवा, चुगला, सतभईयां को चंगेरा(डलिया)में सजाकर पारंपरिक लोकगीतों के जरिये भाईयों के लिए मंगलकामना करती हैं. सामा-चकेवा का उत्सव पारंपरिक लोकगीतों से है.
संध्याकाल होते ही लोकगीत और जुमले के साथ जब बहन चुगला दहन करती हैं, तो वह दृश्य मिथिलांचल की मनमोहक पावन संस्कृति की यादें ताजा कर देती है.
कार्तिक शुक्ल पंचमी से प्रारंभ हुआ यह पर्व पूर्णिमा तक मनाया जाता है I
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