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रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुध इस्तेमाल से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है | जहां खेतों की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है, वहीं मिट्टी में लाभदायक जीव और जीवाणुओं की संख्या कम होती जा रही है । ऐसा अनुभव किया गया है कि किसानो का मित्र कहे जाने वाले केंचुआ अब रसायन के अमर्यादित प्रयोग के कारण तालाब और बगीचों तक ही सिमट कर रह गया है इसलिए मृदा स्वास्थ को ठीक रखने के लिए यह आवश्यक हो गया है की या तो केचुओं की संख्या बढाई जाय या फिर खेती में वर्मीकम्पोस्ट के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाय | जिससे कि मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढे साथ ही कम लागत में अच्छी और पौष्टिक फसल भी किसान उपजा सकें | इसके उपयोग से हमारी रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी साथ ही इसके आयात पर होने वाले खर्च में भी बचत होगी | इसके अलावा पर्यावरण प्रदुषण को कम करने में भी यह सहायक है |
क्या है समृद्ध वर्मीकम्पोस्ट आइये जानते हैं ......... दरअसल कूड़ा कचरा, फसल अवशेष और गोबर को जब केंचुए खाते हैं और खाने के बाद जो मल त्याग करते हैं वही हमें खाद के रूप में प्राप्त होती है, जिसे हम केंचुआ खाद या वर्मी कंपोस्ट कहते हैं। यदि इस वर्मीकम्पोस्ट को हानिरहित खनिज पदार्थों और जैव उर्वरकों के माध्यम से समृद्ध किया जाय तो उस वर्मीकम्पोस्ट का पोषक मान बढ़ जाता है जिसे समृद्ध वर्मीकम्पोस्ट की संज्ञा दी जाती है | यहाँ यह ध्यान देना जरुरी है की वर्मी कम्पोस्ट और समृद्ध वर्मी कम्पोस्ट के पोषक मानो में काफी अंतर पाया जाता है और जिसके कारण खेती करने के लिए कम वर्मीकम्पोस्ट की आवश्यकता होती है | इसके सम्रिधिकरण से इसमें सामान्य वर्मीकम्पोस्ट की तुलना में नाइट्रोजन , फोस्फोरस और पोटाश क्रमशः 40, 200, और 25 प्रतिशत बढ़ जाता है | परिणाम स्वरुप हमारे किसान सहज खेती में इनका प्रयोग कर सकते हैं जबकि अभी गोबर की खाद, कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट की अनुशंसित मात्र अधिक होने के कारण इनका प्रयोग काफी संकुचित है |