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परम पुरुष पूरण धनी हुजूर पुष्कर जी महाराज अपनी मौज से आये अपनी मौज मे रहे और अपनी मौज से निज धाम चले गए
13-05-39 --- 13:05:21
संतो के वचन वसीयत के समान होते हैं
इस संसार में हर व्यक्ति दुखी है। गृहस्थी की उलझनों में उलझ कर तो हर व्यक्ति जीवन भर घुट-घुट कर मरता रहता है। वह यही सोचता रहता है कि इस दुख से छुटकारा कब मिलेगा? गुरू कहता है कि इससे छुटकारा तब मिलेगा जब मनुष्य गृहस्थी का स्वभाव समझेगा। जब गृहस्थी का स्वभाव समझ में आयेगा तब मनुष्य अपने जीवन के असली उद्देश्य अर्थात् ईश्वर अनुभूति के बारे में सोचेगा। मनुष्य जन्म का अर्थ है मनुष्य शरीर में रहते हुए अपने स्वभाव को जानना और अपने निज देश को वापस लौट जाने का प्रयास करना। चूंकि आत्मा, बगैर शरीर के व्यक्त नहीं हो सकती और न कोई कर्म ही कर सकती है इसलिए आत्मा को देह धारण करने को दी गई है। यह देह तो जड़ है परंतु इसमें जो चैतन्य सत्ता है वह ईश्वर की अंश है। ईश्वर आनन्द स्वरूप है इसलिए मनुष्य भी जीवन भर इस संसार में इस देह के माध्यम से आनन्द ढूंढ़ता रहता है। लेकिन उसे वह शाश्वत् आनन्द प्राप्त नहीं होता l यही बात समझाने सन्त अवतार लेकर आते हैं l