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A Talk on Sri Aurobindo’s Savitri in Hindi.
Savitri (B01 C03, Summary Talk-2/3), "The Yoga of the King: The Yoga of the Soul's Release" (P031/ L20 - P037 L09)
सावित्री, पर्व-०१, सर्ग-०३, सर्ग का सार २/३ "राजा का योग: आत्मा की मुक्ति का योग" (P031/ L20 - P037 L09)
यह तीन वीडियोस की श्रंखला का द्वितीय अंक है | इस श्रंखला में इस सर्ग की महत्वपूर्ण पंक्तियों को आधार बनाते हुए इस सर्ग के सत्यों का वर्णन किया गया है | जो लोग इससे पूर्व दी गई १२ वीडियोस की श्रृंखला को, जिनमें इस सर्ग का पंक्तिश पठन किया गया है, किसी कारण पढने में असमर्थ हैं, वे इन तीन वीडियोस के माध्यम से सर्ग के सभी महत्वपूर्ण सत्यों का और लगभग सभी महत्वपूर्ण पंक्तियों का ध्यान और मनन कर सकेंगे |
इस श्रृंखला में पिछले विडियो का लिंक नीचे दिया गया है।
Savitri (B01 C03, Summary Talk-1/3), "The Yoga of the King: The Yoga of the Soul's Release" (P022 L01 - P031 L19)
• Savitri (B01 C03, Summ...
इस अंक का सारांश:
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इस अंश में जो मुख्य सत्य और भाव हमारे समक्ष रखे गए हैं वे क्रमश: इस प्रकार हैं -
१) जड़, प्राण, और मन के लोकों से परे अश्वपति नीरव आत्मलोक में प्रवेश करते हैं। वहाँ अश्वपति को एक परम दृष्टि प्राप्त होती है और वे सकल जगत् से एकात्म हो जाते हैं। अश्वपति की चेतना पार्थिव मन से ऊपर उठ जाती और एक ऐसी परम शांति उनके अंगों में भर जाती है।
२) उस आत्मलोक में घोर एकत्व था। एक विशाल एकात्मता में जीवन के सभी विवाद समाप्त हो जाते हैं। जगत् की शक्तियाँ और उनके संघर्ष जो जगत् को जन्म और जीवन देते हैं एक परम सत्य में विलीन हो जाते हैं। वहाँ कामनाओं के चक्र, और विचारों और शक्तियों के संघर्ष समाप्त हो जाते हैं। काल का चक्र और भाग्य समाप्त जाते हैं।
३) इस प्रकार अश्वपति की आत्मा मुक्त हो जाती है - वह अब साक्षी और राजा के समान थी। काल के प्रवाह से ऊपर अश्वपति अब अविभाजित त्रिकाल में निवास करते हैं। वे अतीत, वर्तमान, और भविष्य, तीनों को एक साथ देख सकते थे।
त्रिकाल दृष्टि पाने के पश्चात् अश्वपति के लिए जगत् का अर्थ बदल जाता है। यह विशाल भौतिक जगत् अब एक महान शक्ति का एक छोटा सा परिणाम प्रतीत होता था।
४) अश्वपति का मन शांत हो जाता है; प्रज्ञा अवतरित होती है और उनकी आत्मा विचारों की सीमा के पार चली जाती है। अश्वपति की सत्ता में एक नए मन का जन्म होता है और अश्वपति शाश्वतता पर आधारित एक नया जीवन प्राप्त करते हैं।
५) आरम्भ में हमारी चेतना केवल कुछ समय के लिए ही स्वर्गिक लोकों में ठहर सकती है और ये स्वर्गिक अवस्थाएँ शीघ्र अथवा धीरे-धीरे धीरे-धीरे समाप्त हो जाती हैं। निम्न अंगों का विद्रोह, पुराने और परिचित परिवेश का आकर्षण, और जड़त्व आरोहण के संकल्प को क्षीण कर देते हैं।
६) परन्तु ये पतन निष्फल नहीं रहते; भगवान् हमारे पतन का भी उपयोग कर लेते हैं - एक अदृश्य दिव्य-कर्ता हमारे अंध भागों में प्रवेश करता है और अन्धकार में गोपित रहते हुए हमारी निम्न सत्ता के रूपांतरण का कार्य करता है।
हमारी सत्ता के सभी अंगों को उच्चतर विधान का पालन सीखना होगा अन्यथा अर्द्ध-रक्षित जगत् को छोड़ आत्मा अकेले ही अपने स्रोत को लौट जाएगी और यह विशाल सृष्टि विफल और निराश हो बिखर कर डूब जाएगी।
७) चेतना के आरोहण और अवरोहण के इस क्रम से होते हुए अश्वपति की आत्मा पूर्णता को प्राप्त करती है और अंतत: परम शाश्वत् के लोक में एक स्थायी निवास प्राप्त कर लेती है।
८) इसके पश्चात् दिव्य-शक्तियाँ अश्वपति की सत्ता में कार्य करती हैं और उसकी निम्न सत्ता का रूपांतरण करती हैं।
क्रमश: - - -
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अश्वपति की यह अध्यात्मिक यात्रा आगे बढती रहती है। अगले अंक में हम देखेंगे कि अश्वपति की सत्ता में अंतर्ज्ञान का अवतरण होता है जो उसकी सत्ता का रूपान्तरण करता है। अंतत: अश्वपति की आत्मा अज्ञान से मुक्त हो जाती है।