यह फिल्म मैंने 1963 में आकोला शहर के रिगल थियेटर में अपने जिजाजी के साथ देखीं थीं। इस फिल्म के सभी गीत अच्छे थे।पर दो गीत पंख होते तो उड़ आतीं रे। और तकदीर का फ़साना। बहुत अच्छैथे।
@SubhashsharmsRDSharma-hb7pr19 сағат бұрын
पुरानी चित्र पट के शौकीन ही इसको देखना पसन्द करते है और नई पीढ़ी को तो सिर्फ हाय हुक हाय हुक हाय रे ही पसन्द करते है 📽️✔️