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नमो श्री वल्लभभाधीश स्वामी। अखंड अवतार जुगधार लीलाकरी आसुरी जीव सब मोह पामी ॥ नमु० ।।
निगम करजोर के करत स्तुति सदा सनक शुक व्यास नहीं पारपामी। शेष अज रुद्र सुर तेंतीस ध्यावत सदा रटत हे मुनि सकल दीवस जामी ॥ नमु० ॥ देखके दीनपर अतुल करुणाकरी भाग्य विधि प्रकट भये गुरुडागामी। नंदगृह प्रकट भुव भक्त आरत हरी तैलंग कुल तिलक शिरछत्र छामी ॥ नमु० ॥ वेदमथ सकल सिद्धान्त नवनीतरस दैवीजन दूर किये हृदय भ्रमी ॥ नमु० ॥ कपट कली दंड सबग्रंथ खंडन किये व्यासनंदन वचन पार ग्रामी ।। कोटि ब्रह्माण्ड तन रोमही रोम प्रति जगत आधार धर धीर धामो। पुष्टिपथ प्रकट कर नाम नौका करी पार संसार जे शरन आमी। कोउ कहे विप्र कोउ विविध पंडित कहे कोउ कहे अश कोउ आत्मारामी। स्वकीयजन एक निर्धार निश्चेकये वस्तुतः कृष्णजो बंधे दामी । कोन गुण कहि शके अखिल व्रजइशके दीन व्हे चरनतर शीशनामी। शरन वल्लभही भाग्य को पार नहीं भजो कृष्णदास प्रभु अंतरजामी ।। नमु० ।।