हरियाणवी बोली (भाषा), ३६ बिरादरी का आपसी भाईचारा, हरियाणवी संस्कृति और रीति-रिवाज शनै: शनै: समाप्त होते जा रहे हैं। अपनी संस्कृति को जीवंत बनाये रखना और इसे सहेज कर रखना हम सब हरियाणवी मूल के लोगों की जिम्मेदारी है। बिना किसी पक्षपात के गलत बात कहने वाले और गलत कार्य करने वाले के मुंह पर खरी बात कहना हरियाणा वालों की विशेषता थी, परन्तु अब वह बात नहीं रही। आज लोग अपने पराये में भेद करके पक्षपात और लीपा-पोती करने लगे हैं। मेलों और उस अवसर पर दंगल का आयोजन, कबड्डी, खो खो, हॉकी जैसे स्वदेशी खेलों के मैदान, कुऐं, जोहड़, तालाब, बावड़ी, बाग-बगीचे, लम्बी-चौड़ी बणी (उपवन क्षेत्र), नहर और बदरों (बरसाती नाला) अतिक्रमण करने के कारण लुप्त होते जा रहे हैं। सावन में आने वाले *तीज* के त्यौहार पर अब झूलें भी नहीं दिखाई देती। शिक्षाप्रद हरियाणवी *सांग और रागिनी* प्रतियोगिता अब नहीं होती। उसका स्थान अब अश्लीलता ने ले लिया है। गुंडागर्दी को रोकने तथा सामाजिक सुधारों के लिए निष्पक्ष फैसले लेने वाली अब वो ३६ बिरादरी की पंचायतें भी नहीं होती। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि जो लोग अपनी भाषा और संस्कृति को छोड़ देते हैं, इतिहास से नष्ट हो जाते हैं।
@malkitkumar15713 жыл бұрын
Bhai tune ek dum shi baat khi hai hum jitna apne riti riwaj ko bhule gay utna hi piche hote jai gay