Sri Krishna Janamashtami Katha (SB 1.8.35) By HH Vrindavan Chandra Goswami Maharaj |Day-7| JHANSI

  Рет қаралды 256

Krishna Kathaamrita

Krishna Kathaamrita

Күн бұрын

SB 1.8.25
विपदः सन्तु ताः शश्वत्तत्र तत्र जगद्‌गुरो ।
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम् ॥ २५ ॥
शब्दार्थ
विपदः - विपत्तियाँ; सन्तु आने दो; ताः सारी; शश्वत् पुनः पुनः; तत्र वहाँ; तत्र तथा वहाँ; जगत्-गुरो- हे जगत के स्वामी; भवतः आपकी; दर्शनम् भेंट; यत्- जो; स्यात् हो; अपुनः फिर नहीं; भव-दर्शनम् - जन्म- मृत्यु को बारम्बार देखना कर सकें,
क्योंकि आपके दर्शन का अर्थ यह है कि हमें बारम्बार होने वाले जन्म तथा मृत्यु को नहीं देखना पड़ेगा।
तात्पर्य : सामान्यतया दुखी, जरूरतमन्द, बुद्धिमान तथा जिज्ञासु लोग, जिन्होंने कुछ पुण्य कर्म किये हैं, वे भगवान् की पूजा करते हैं या पूजा करना प्रारम्भ करते हैं। अन्य लोग, जो दुष्कर्म से ही फलते-फूलते हैं, चाहे वे जिस स्तर के हों, माया द्वारा भ्रमित होने के कारण भगवान् के पास नहीं पहुँच पाते। अतएव पुण्यात्मा के लिये संकट आने पर भगवान् के चरणकमलों का आश्रय लेने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होता। भगवान् के चरणकमलों का निरन्तर स्मरण करने का अर्थ है, जन्म-मृत्यु से छूटने की तैयारी करना। अतः भले ही तथाकथित आपत्तियाँ आयें, उनका स्वागत करना होगा, क्योंकि वे हमें भगवान् के स्मरण का अवसर प्रदान करती हैं जिसका अर्थ है मुक्ति।
जिसने अविद्या के सागर को पार करने के लिए सर्वोत्तम नाव के समान भगवान् के चरणकमलों की शरण ली है, वह उतनी ही सरलता से मुक्ति प्राप्त करता है, जितनी सरलता से बछड़े के खुर के निशान को लाँघा जा सकता है। ऐसे लोग भगवद्धाम में रहने के अधिकारी हैं और उन्हें ऐसे स्थान से कोई प्रयोजन नहीं रह जाता, जहाँ पग-पग पर संकट हो।
भगवद्‌गीता में भगवान् ने इस भौतिक जगत् को आपत्तियों से भरा कष्टप्रद स्थान बताया है। अल्पज्ञानी व्यक्ति इन आपत्तियों के साथ समझौता करने की योजना बनाते हैं, लेकिन वे जानते नहीं हैं कि इस स्थान का प्रकार ही ऐसा है कि वह आपत्तियों से भरा है। उन्हें भगवान् के उस धाम का बिल्कुल ही ज्ञान नहीं होता, जो आनन्द से भरपूर है और जहाँ तनिक भी आपत्ति नहीं है। अतएव प्रबुद्ध मनुष्य का यह कर्तव्य है कि भौतिक आपत्तियों से अविचलित रहे, क्योंकि आपत्तियाँ तो सभी परिस्थितियों में आती ही हैं। सभी प्रकार की अपरिहार्य विपत्तियों का सामना करते हुए मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार में प्रगति करते रहना चाहिये, क्योंकि मानव जीवन का यही उद्देश्य है। चूंकि आत्मा समस्त भौतिक आपत्तियों से परे है, अतएव तथाकथित आपत्तियाँ मिथ्या बतलाई गई हैं। स्वप्न में कोई मनुष्य अपने को बाघ द्वारा निगला जाता देख सकता है और वह इस आपत्ति के कारण चिल्ला सकता है, किन्तु वास्तव में न तो बाघ रहता है, न आपत्ति; यह तो कोरा स्वप्न है। इसी प्रकार जीवन की सारी आपत्तियाँ स्वप्न-तुल्य कही जाती हैं। यदि कोई भक्ति मय सेवा द्वारा भगवान् का सान्निध्य प्राप्त कर सकता है, तो लाभ ही लाभ है। नवधा भक्ति में से किसी एक के द्वारा भगवान् का सान्निध्य भगवद्धाम जाने की दिशा में सदा एक अग्रिम पग
है।

Пікірлер: 1
@harshukhbhaivaghasiya4545
@harshukhbhaivaghasiya4545 10 күн бұрын
🎉🎉🎉
Фейковый воришка 😂
00:51
КАРЕНА МАКАРЕНА
Рет қаралды 7 МЛН
ПРИКОЛЫ НАД БРАТОМ #shorts
00:23
Паша Осадчий
Рет қаралды 5 МЛН
Bhishma Stuti Day-2 | ISKCON Mayapur | Bhakti Ashraya Vaisnava Swami is live
1:34:30
Bhakti Ashraya Vaisnava Swami
Рет қаралды 2,2 М.