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अगर आप कोई ऐसी खेती करना चाहते हैं जिसमें एक बार पौधे लगाए जाएं और 50 से 100 साल फल आते रहे तो आप सुपारी की खेती कर सकते हैं। सुपारी की खेती में लागत भी लगभग न के बराबर होती है। एक पेड साल में औसतन 1000 से 2000 रुपए की आमदनी देता है।
न्यूज पोटली आज के इस वीडियो में आपको सुपारी की खेती के बारे में विस्तार जानकारी दे रहा है। भारत दुनिया में सुपारी का सबसे बडा उत्पादक और उपभोक्ता है। सुपारी एक नगदी फसल है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार देश में 775 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती होती है और करीब 14 हजार मीट्रिक टन उत्पादन होता है। सुपारी को अंग्रेजी में एरेका नेट Areca Nut या बीटल नट Betel Nut भी बोलते हैं। सुपारी का पौधा एक बार लगाया जाता है तो वो 50 से 100 साल तक फल देता है। किसानों के मुताबिक आमतौर पर एक पौधा 5 से 7 साल में फल देने लगता है और व्यस्क पौधा 20-30 किलो तक औसतन फल देता है। किसानों के घर से सुपारी आसानी 40-60 रुपए किलो तक में बिक जाती है ऐसे में एक किसान को औसतन एक पेड 1200-1500 रुपए देता है। अक्सर पूरे बाग ही बिक जाते हैं, तोडने का झँझट नहीं करना होता।
केरल, कर्नाटक, असम और मेघालय जैसे राज्यों में सुपारी की बडे पैमाने पर खेती होती है। नार्थ ईस्ट के राज्यों में सुपारी, नारियल एक तरह से कह सकते हैं कि यहां के किसानों की आजीविका का जरिया है। हर घर में, आंगन और दरवाजे पर आपको 10-20 सुपारी के पेड दिख जाएंगे। जबकि जिन्हें पास जगह होती है वो बाकायदा सुपारी की बाग लगाते हैं। एक एकड में सुपारी के किस्म के अनुरूप 600-800 पौधे लगाए जाते हैं। सुपारी में जून-जुलाई में फ्लावरिंग शुरु होती है और अक्टूबर नवंबर तक फल टूटने शुरु हो जाते हैं। ज्यादातर किसान फलो को तोडने या फिर गिरे फलों को समेटने के बाद कारोबारियों को बेचते हैं जो इसकी प्रोसेसिंग करते है। इसकी प्रोसेसिंग से पहले ग्रेडिंग और प्री प्रोसेसिंग होती है।
किसानों से खरीदी गई सुपारी को ऐसे बोरों और बास के खांचों में भरकर कुछ दिन से लेकर कई महीनों तक पानी में भिगोया जाता है। इनका खोल नर्म होने के बाद इनकी ग्रेडिंग होती है, जिस सुपारी का रंग फीका या बंदरंग हो जाता है उसे कम रेट मिलता है। ऐसे सेंटरों से तैयार सुपारी को प्रोसिंगिंग के लिए भेजा जाता है।
वैसे तो सुपारी की खेती में खर्च ने बराबर होता है, लेकिन आप की मिट्टी में पोषक तत्व कम होने पर उन्हें उर्वरक देने होते हैं। असम के किसानों के मुताबिक वो सिर्फ पौधे लगाते हैं। इसके बाद कोई लागत नहीं लगाते। सुपारी में रोग भी न के बराबर लगते हैं लेकिन कर्नाटक और केरल समेत कई राज्यों में कुछ कीटों और रोगों की पहचान हुई है, वैज्ञानिकों उनसे बचाव के लिए उपाय बताते हैं।
सुपारी अभी तक पूर्वोत्तर भारत या फिर समुद्र तटीय इलाकों में ही पैदा होती थी लेकिन सुपारी की बढती मांग को देखते हुए केरल के कासरगोड में स्थित केंद्रीय रोपण फसल अनुसंधान संस्थान यानि सीपीसीआरआई CPCRI ने कुछ ऐसी किस्में विकसित की हैं जो देश के किसी भी हिस्से में हो सकती है। इन किस्में के नाम वीटीएलएच-1 और वीटीएलएच-2 हैं। जिनके पौधे 4 मीटर लंबे होने पर ही फल देने लगते हैं। सुपारी के बारे में ज्यादा जानकारी सीपीसीआरआई से प्राप्त की जा सकती है।
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