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एक कवि का स्वदेशाभिमान
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मुगलों के शासन-काल में भी बहुत से कवि तथा सहित्यकार ऐसे थे
जिन्होंने अपना स्वाभिमान बनाये रखा तथा विदेशी हमलावरों के सामने सरनहीं झुकाया।
महाकवि भूषण ऐसे ही रचनाकार थे। भूषण जैसे ही एक और कवि गंग थे जो अकबर के शासन काल में हुए थे। गंग भगवान कृष्ण के परम भक्त थे।
उनका यह दृढ विश्वास था कि उस परमशक्ति के आगे सभी बौने हैं। अकबर के दरबार में जो चाटुकार कवि थे उन्हें यह बात फूटी आँख नहीं सुहाती थी कि कवि गंग ने कभी अकबर के सम्मान में कुछ नहीं लिखा।
इन सभी चाटुकार कवियों ने मिलकर एक षड़यंत्र किया और काव्य में समस्या पूर्ति हेतु विषय रखा-"करौ सब आस अकब्बर की" इसमें कवि को ऐसे कवित्त की रचना करनी थी जिसकी अंतिम पंक्ति 'करौ सब आस अकबर की हो।'
समस्या पूर्ति हेतु कवि गंग को भी अकबर के दरबार में आमंत्रित किया गया। सभी चाटुकार कवि खुश हो रहे थे कि अब तो गंग को अकबर की प्रशंसा करनी ही होगी। लेकिन |
जिस कवि में स्वदेशाभिमान कूट-कूट कर भरा हो वह एक विदेशी की प्रशंसा कैसे करता। कवि गंग ने समस्यापूर्ति में यह कवित्त लिखा
एकही को छोड बिजा को भजै, रसना जु कटौ उस लब्बर की।
अब तौ गुनियाँ दुनियाँ को भजै, सिर बाँधत पोट अटब्बर की॥
कवि 'गंग तो एक गोविंद भजै, कुछ संक न मानत जब्बर की।
जिनको हरि की परतीत नहीं, सो करौ मिल आस अकबर की॥
रचना सुनकर सभी चाटुकारों के चेहरे देखने लायक थे।
उपरोक्त रचना की अंतिम पंक्ति अकबर को अपमानजनक लगी इसलिए अकबर ने कवि गंग को उसका साफ अर्थ बताने के लिए कहा। कवि गंग इतने स्वाभिमानी थे कि उन्होंने अकबर को यह जवाब दियाः
एक हाथ घोडा एक हाथ खर
कहना था सा कह दिया करना है सो कर
कवि गंग अत्यन्त स्वाभिमानी थे। उनकी स्पष्टवादिता के कारण ही उन्हें हाथी से कुचलवा दिया गया था। कुचलने से पूर्व अकबर ंे समझाया माफी मांग ले । नहीं तो ये गजराज तुझे कुचलने को तैयार खड़ा है
गंग कवि ंे एक छंद पढ़ा
सब देवन को दरबार जुरयो तहँ पिंगल छंद बनाय कै गायो।
जब काहू ते अर्थ कह्यो न गयो तब नारद एक प्रसंग चलायो
मृतलोक में है नर एक गुनी कवि गंग को नाम सभा बतायो।
सुनि चाह भई परमेसर को तब गंग को लेन गनेस पठायो
अपनी मृत्यु के पूर्व कवि गंग ने कहा थाः
कबहुँ न भड़घआ रन चढ़े, कबहुँ न बाजी बंब।
सकल सभाहि प्रनाम करि, बिदा होत कवि गंग
हमारे देश के राजा और कवी गंग की तरह स्वाभिमानी होते तो अकबर को कबर में कब के पहुंचा देते .
किशोर पारीक "किशोर"
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