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तालबेहट के किले की नींव राजा रामशाह ने रखी एवं 1618 ई० में बार तथा चन्देरी के दूसरे नरेश राजा भरतशाह ने इस किले का निर्माण करवाया था। किसी समय वैभव का प्रतीक रहे इस किले में राजभवन व अन्य छोटे-बड़े भवनों के भग्नावशेष ही बचे हैं। यह किला मराठा दुर्ग स्थापत्य एवं लौकिक स्थापत्य का एक अप्रतिम उदाहरण है। यह किला उत्तर की ओर स्थित एक विशाल तालाब के किनारे है एवं तालाब के किनारे पक्के घाटों का भी निर्माण हुआ है। किले में प्रवेश हेतु चार दरवाजे हैं जिनमें दो मुख्य दरवाजे हैं एवं चारो तरफ फैला हुआ विशाल परकोटा भी है। किले के अन्दर कुछ मंदिरों के भग्नावशेष आज भी दृष्टिगोचर है जिसमे मुख्य रूप से विष्णु को समर्पित एक मंदिर है, जिसकी दीवारों पर सुन्दर फूल पत्तियों की आकृतियाँ, पशुओं के चित्रों के साथ-साथ मानवाकृतियां भी बनायी गयी हैं। इसके अलावा बावली व कुआं भी है जो मध्यकाल में किले में रहने वाले राजपरिवार व सैनिकों के दैनिक प्रयोग हेतु प्रयुक्त था, इनमें आज भी वर्षभर जल का संचय बना रहता है। 1857 के प्रथम स्वाधीनता के संग्राम के दौरान इस किले के शासक राजा मर्दन सिंह ने रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष किया था।