तेरे गले को हार जंजीरों रे, सतगुरु सुलझावेगा | तेरे काया नगर में हीरो रे, हेरे से पावैगा || कारीगर का पिंजरा रे भाई , तने घडल्यायो करतार | शायर करसी सोधना रे, मूरख करे रे मरोड़ | रोष मन मायले में ल्यावेगा || १ || मन लोभी मन लालची रे भाई , मन चंचल मन चोर | मन के मत में न चालिए रे , पलक पलक मन और | जीव के जाळ घालावणा || २ || ऐसा नान्हा चालिए रे भाई , जैसी नान्ही दूब | और घास जळ ज्यायसी रे , दूब रहेगी खूब | फेर सावन कद आवेगा || ३ || साईं के दरबार में जी भाई, लम्बी खड़ी खजूर | चढ़े तो मेवा चाख ले रे , पड़े तो चकनाचूर | फेर उठण कद पावैगा || ४ || जैसे शीशी कांच की रे भाई, वैसी नर के देह | जतन करंता जायसी रे, हर भज लावा लेय | फेर मौसर कद आवेगा || ५ || चन्दा गुडी उड़ावता रे भाई, लम्बी देता डोर | झोलों लाग्यो प्रेम को रे, कित गुडिया कित डोर | फेर कुण पतंग उड़ावणा || ६ || ऐसी कथना कुण कथी रे भाई, जैसी कथी कबीर | जलिया नाही, गडिया नाही रे , अमर भयो शरीर | पैप का फूल बरसावेगा || ७ || तेरे गले को हार जंजीरों रे, सतगुरु सुलझावेगा, तेरे काया नगर में हीरो रे, हेरे से पावैगा ..